अरावली की जंग सड़कों तक पहुंची, कल एनएसयूआई निकालेगी पैदल मार्च, सचिन पायलट होंगे साथ

जयपुर : अरावली पर्वत श्रृंखला के संरक्षण को लेकर कांग्रेस अब निर्णायक संघर्ष की राह पर आगे बढ़ती नजर आ रही है। लंबे समय से SIR जैसे मुद्दों पर गांव, ब्लॉक और प्रदेश स्तर पर आंदोलनों के बाद पार्टी अब अरावली को केंद्र में रखकर बड़े जनआंदोलन की तैयारी में है। कांग्रेस नेतृत्व का मानना है कि यह सिर्फ राजनीतिक विषय नहीं, बल्कि पर्यावरण और भविष्य से जुड़ा सवाल है। इसी वजह से पार्टी ने इस मुद्दे को लेकर केंद्र सरकार और भाजपा के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा और पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट समेत कई वरिष्ठ नेता लगातार सरकार को कठघरे में खड़ा कर रहे हैं। अरावली पर्वतमाला को दिल्ली, हरियाणा और राजस्थान के लिए पर्यावरणीय जीवनरेखा माना जाता है।

कांग्रेस नेताओं का कहना है कि मनरेगा के नाम में बदलाव और नेशनल हेराल्ड जैसे मामलों पर पार्टी ने आंदोलन किए, लेकिन उन विषयों पर अपेक्षित जनसमर्थन नहीं बन पाया। इसके उलट, अरावली पर्वत श्रृंखला से जुड़े सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लेकर आम लोगों में भी असंतोष साफ दिख रहा है। पर्यावरणविद, सामाजिक संगठन और स्थानीय समुदाय इस पर खुलकर अपनी नाराजगी जता रहे हैं। यही वजह है कि कांग्रेस ने अब अपना पूरा राजनीतिक और संगठनात्मक फोकस अरावली के मुद्दे पर केंद्रित कर दिया है। खास बात यह भी है कि अरावली का लगभग 90 प्रतिशत हिस्सा राजस्थान से होकर गुजरता है, जिससे राज्य की जिम्मेदारी और भी बढ़ जाती है।

प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा पहले ही ऐलान कर चुके हैं कि अरावली के समर्थन में प्रदेश के 19 जिलों में जिला, ब्लॉक और राज्य स्तर पर धरना-प्रदर्शन किए जाएंगे। इसी क्रम में कांग्रेस के अग्रिम संगठन भी मैदान में उतर चुके हैं। आंदोलन की शुरुआत शुक्रवार से एनएसयूआई ने कर दी है। राजस्थान एनएसयूआई ‘अरावली बचाओ, जीवन बचाओ’ अभियान के तहत एक बड़े पैदल मार्च का आयोजन करने जा रही है, जिसमें कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव और पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट की मौजूदगी भी तय है।

एनएसयूआई के प्रदेशाध्यक्ष विनोद जाखड़ ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर वीडियो संदेश जारी कर जानकारी दी कि 26 दिसंबर को ‘अरावली बचाओ, भविष्य बचाओ’ मार्च निकाला जाएगा। यह पैदल मार्च सुबह 10 बजे जयपुर के जालूपुरा थाने से शुरू होकर गवर्नमेंट हॉस्टल होते हुए कलेक्ट्रेट सर्किल तक पहुंचेगा। इस दौरान राजस्थान एनएसयूआई के पदाधिकारी, कांग्रेस कार्यकर्ता और बड़ी संख्या में युवा शामिल होंगे। जाखड़ ने प्रदेश के पर्यावरण प्रेमियों और जागरूक नागरिकों से भी इस अभियान में जुड़ने की अपील की। उन्होंने कहा कि अरावली केवल पहाड़ों की श्रृंखला नहीं, बल्कि हमारी सांस्कृतिक विरासत और आने वाली पीढ़ियों की सुरक्षा का प्रतीक है। इसे बचाने के लिए समाज के हर वर्ग को आगे आना होगा।

राजनीतिक विश्लेषकों की राय: अरावली कांग्रेस के लिए बन सकती है टर्निंग पॉइं

इस पूरे घटनाक्रम पर राजनीतिक जानकारों का मानना है कि कांग्रेस के लिए लाभकारी मुद्दा मान रहे हैं। वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक मनीष गोधा का कहना है कि मनरेगा जैसे विषयों से कांग्रेस को कोई ठोस राजनीतिक फायदा मिलने वाला नहीं है। उनके मुताबिक, योजना के नाम में बदलाव या केंद्र और राज्य के बीच 60-40 प्रतिशत की हिस्सेदारी आम लोगों की रोजमर्रा की प्राथमिकताओं को सीधे प्रभावित नहीं करती। मनरेगा से जुड़े मजदूरों और कर्मचारियों तक इस बदलाव की गंभीरता समझाने में ही कम से कम एक साल का समय लग जाएगा। ऐसे में कांग्रेस भी इस मुद्दे को लंबे समय तक प्रभावी ढंग से नहीं उठा पाएगी।

इसके उलट, अरावली का सवाल बेहद संवेदनशील और जमीनी है, जो सीधे जनता की भावनाओं से जुड़ा हुआ है। खासकर राजस्थान के 19 जिलों में अरावली को लेकर लोगों की भावनात्मक और पर्यावरणीय चिंता साफ नजर आती है। यदि कांग्रेस इस आंदोलन को सुनियोजित और निरंतर तरीके से आगे बढ़ाती है, तो उसे व्यापक जनसमर्थन मिल सकता है। गोधा का मानना है कि यह मुद्दा केवल राजस्थान तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि दिल्ली, गुजरात और हरियाणा जैसे राज्यों में भी कांग्रेस के लिए खोया हुआ जनाधार वापस लाने का जरिया बन सकता है। हालांकि इसके लिए पार्टी को लगातार सड़कों पर उतरकर दबाव बनाए रखना होगा।

दूसरी ओर, भाजपा के लिए अरावली का मुद्दा धीरे-धीरे गले की फांस बनता जा रहा है। पार्टी इस मसले पर पूरी तरह रक्षात्मक मुद्रा में दिखाई दे रही है। केंद्रीय स्तर के भाजपा नेता भी इस पर खुलकर बयान देने से बच रहे हैं। भूपेंद्र यादव को छोड़ दिया जाए तो कोई बड़ा नेता कांग्रेस के सवालों का ठोस जवाब देता नजर नहीं आ रहा है। राजनीतिक हलकों में यह चर्चा है कि भाजपा नेतृत्व को भी यह अहसास है कि यह मुद्दा अनजाने में ही कांग्रेस के पक्ष में मजबूत हथियार बन गया है।

कांग्रेस नेतृत्व को भी अब यह स्पष्ट हो चुका है कि नेशनल हेराल्ड और मनरेगा जैसे मुद्दों पर ऊर्जा खर्च करने के बजाय जनहित और पर्यावरण से जुड़े अरावली के सवाल पर फोकस करना ज्यादा फायदेमंद है। यही वजह है कि राजस्थान कांग्रेस के साथ-साथ अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी भी इस विषय में सक्रिय दिलचस्पी दिखा रही है। कई केंद्रीय नेताओं ने सोशल मीडिया के जरिए भी अरावली बचाओ अभियान को हवा देनी शुरू कर दी है। इस मुद्दे ने पार्टी संगठन में नई ऊर्जा और उत्साह भर दिया है।

पार्टी नेताओं को उम्मीद है कि यदि अरावली के संरक्षण का मुद्दा मजबूती से उठाया गया, तो कांग्रेस को आम जनता, सामाजिक संगठनों और पर्यावरणविदों का व्यापक समर्थन मिल सकता है। अब कांग्रेस केवल राज्य स्तर पर ही नहीं, बल्कि राष्ट्रीय मंच पर भी ‘अरावली बचाओ’ आंदोलन को विस्तार देने की तैयारी में है। इसे लेकर पार्टी के शीर्ष स्तर पर रणनीति और रोडमैप तैयार किया जा रहा है। राजनीतिक विश्लेषक भी मान रहे हैं कि अरावली कांग्रेस के लिए फायदे का सौदा साबित हो सकती है। इसी के साथ पार्टी नेतृत्व को अरावली के जरिए राजस्थान, गुजरात, दिल्ली और हरियाणा जैसे राज्यों में नई राजनीतिक संभावनाएं नजर आने लगी हैं।

अरावली को लेकर गहलोत की पहल, घर-घर तक पहुंचा मुद्दा

अरावली पर्वत श्रृंखला का सवाल सबसे पहले पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने पूरी ताकत के साथ उठाया। उन्होंने न केवल केंद्र और राज्य सरकार पर तीखे हमले किए, बल्कि सीधे तौर पर जवाब भी मांगे। गहलोत ने इस अभियान को जन-जन तक पहुंचाने के लिए अपने सोशल मीडिया प्रोफाइल की डीपी बदलकर ‘सेव अरावली कैंपेन’ की शुरुआत की। उनके इस कदम के बाद कांग्रेस के कई नेता और कार्यकर्ता खुलकर इस मुहिम से जुड़ते चले गए। यही नहीं, पर्यावरण और सामाजिक सरोकारों से जुड़े अनेक संगठनों ने भी पूर्व मुख्यमंत्री के इस प्रयास को समर्थन दिया। देखते ही देखते अरावली का मुद्दा राजनीतिक दायरे से निकलकर सामाजिक आंदोलन का रूप लेने लगा।

डोटासरा और जूली के तेवर भी सख्त, सरकार पर लगातार हमले

प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा और नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली भी अरावली के सवाल पर सरकार को घेरने में पीछे नहीं हैं। टीकाराम जूली खुद अलवर जिले से आते हैं, जहां से केंद्रीय वन मंत्री भूपेंद्र यादव सांसद हैं, जबकि अलवर से विधायक संजय शर्मा राजस्थान सरकार में पर्यावरण मंत्री हैं। ऐसे में जूली के निशाने पर केंद्र और राज्य, दोनों सरकारों के ये चेहरे बने हुए हैं। डोटासरा और जूली ने अरावली के महत्व को धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी जोड़ते हुए कहा है कि अलवर, सीकर, जयपुर समेत कई जिलों के प्रसिद्ध धार्मिक स्थल अरावली की गोद में बसे हैं। ऐसे में पर्वत श्रृंखला को नुकसान पहुंचाना आस्था और विरासत दोनों पर चोट के समान है।

भारत जोड़ो यात्रा की तर्ज पर ‘अरावली बचाओ यात्रा’ की तैयारी

अरावली का मुद्दा अब केवल राजस्थान कांग्रेस तक सीमित नहीं रहा है। पार्टी के राष्ट्रीय नेतृत्व ने भी इसे एक प्रभावी जन आंदोलन के रूप में देखने की रणनीति बनाई है। इसी कड़ी में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी भारत जोड़ो यात्रा की तर्ज पर ‘अरावली बचाओ यात्रा’ निकालने की तैयारी कर रही है। पार्टी सूत्रों के अनुसार, यह यात्रा गुजरात से शुरू होकर राजस्थान और हरियाणा होते हुए दिल्ली तक जाएगी। कांग्रेस गलियारों में चर्चा है कि 15 जनवरी के बाद गुजरात के पालनपुर से यात्रा की शुरुआत हो सकती है। लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी समेत कई राष्ट्रीय और प्रदेश स्तर के नेता इस पदयात्रा में शामिल हो सकते हैं। बताया जा रहा है कि 27 दिसंबर को दिल्ली में होने वाली कांग्रेस वर्किंग कमेटी की बैठक में इस यात्रा के रोडमैप पर अंतिम मुहर लग सकती है। गुजरात से यात्रा शुरू करने के पीछे एक अहम वजह यह भी मानी जा रही है कि वहां अगले साल विधानसभा चुनाव प्रस्तावित हैं और कांग्रेस अरावली के मुद्दे के जरिए अपना खोया जनाधार वापस पाने की कोशिश करेगी।

राजस्थान के 19 जिलों में फैली अरावली पर्वतमाला

राजस्थान के जिन 19 जिलों से होकर अरावली पर्वत श्रृंखला गुजरती है, उनमें अलवर, झुंझुनू, सीकर, जयपुर, अजमेर, दौसा, टोंक, भीलवाड़ा, राजसमंद, चित्तौड़गढ़, उदयपुर, ब्यावर, सलूंबर, प्रतापगढ़, डूंगरपुर, बांसवाड़ा, सवाई माधोपुर और पाली शामिल हैं। कांग्रेस ने इन सभी जिलों में ब्लॉक और वार्ड स्तर तक धरना-प्रदर्शन करने का ऐलान किया है। पार्टी नेताओं को उम्मीद है कि अरावली का मुद्दा आगामी निकाय और पंचायत चुनावों में कांग्रेस के लिए लाभदायक साबित हो सकता है। उनका कहना है कि खासकर इन 19 जिलों में जनता में गहरी नाराजगी है, जिसका सीधा फायदा कांग्रेस को मिल सकता है।

भाजपा के लिए बन सकता है नुकसान का कारण

सिविल सोसाइटी से जुड़ीं निशा सिद्धू का मानना है कि अरावली का सवाल केवल राजनीतिक नहीं, बल्कि व्यापक जनहित और पर्यावरण से जुड़ा मुद्दा है। अरावली में न सिर्फ इंसान, बल्कि लाखों पशु-पक्षियों का जीवन निर्भर है। यदि अरावली को नुकसान पहुंचा, तो वन्यजीवों का अस्तित्व भी खतरे में पड़ जाएगा। उनका कहना है कि इसी कारण आम जनता इस मुद्दे पर भाजपा सरकार के खिलाफ मुखर हो रही है। केंद्र और राज्य दोनों में ‘डबल इंजन’ सरकार होने के बावजूद खनन को लेकर दी जा रही सफाइयों पर लोग भरोसा नहीं कर पा रहे हैं। आम धारणा है कि भले ही खनन सीमित क्षेत्र में हो, लेकिन पर्यावरण पर उसका असर व्यापक और गंभीर होगा। यही वजह है कि जनता खुलकर विरोध कर रही है, और इसका राजनीतिक नुकसान भाजपा को उठाना पड़ सकता है।