भारत की आज़ादी किसी एक व्यक्ति के कारण नहीं मिली, बल्कि लाखों लोगों के संघर्ष का परिणाम है: मोहन भागवत

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के प्रमुख मोहन भागवत शुक्रवार को नागपुर में एक पुस्तक विमोचन समारोह में उपस्थित थे, जहां उन्होंने भारत की आज़ादी को लेकर महत्वपूर्ण बयान दिया। उन्होंने स्पष्ट कहा कि अंग्रेजों से भारत को आज़ाद करवाने का श्रेय किसी एक व्यक्ति या संस्था को नहीं दिया जा सकता। भागवत ने जोर देकर कहा कि यह सफलता असंख्य लोगों, समूहों और संघर्षों की मेहनत का परिणाम है।

भागवत ने उन आलोचकों की बातों का जवाब दिया जो लंबे समय से यह दावा करते रहे हैं कि RSS ने स्वतंत्रता आंदोलन में कोई भागीदारी नहीं निभाई। हालांकि, RSS के समर्थक इस दावे को हमेशा से नकारते आए हैं।

भागवत ने कहा कि 1857 की क्रांति ने भारत में आज़ादी की ज्वाला को जन्म दिया, जिसने पूरे देश में स्वतंत्रता संग्राम की लपटें भड़काईं। उन्होंने बताया कि स्वतंत्रता आंदोलन किसी एक व्यक्ति या समूह की उपलब्धि नहीं, बल्कि पूरे देश के लोगों के सामूहिक प्रयास का फल है। 1857 के विद्रोह के बाद से शुरू हुआ यह संग्राम धीरे-धीरे अंग्रेजों के खिलाफ एक बड़ी क्रांति बन गया, जिसकी वजह से भारत आज़ाद हुआ।

RSS के आलोचकों ने एम एस गोलवलकर के बयान का हवाला देते हुए कहा कि उन्होंने उपनिवेशवाद-विरोधी आंदोलन का विरोध किया और इसे अस्थायी करार दिया था। उनका मानना था कि असली दुश्मन आंतरिक हैं, और अंग्रेजों से लड़ाई उनकी प्राथमिकता नहीं थी। आलोचकों का कहना है कि गोलवलकर का यह रुख इस बात को दर्शाता है कि उनका मकसद भारत को एक हिंदू राष्ट्र बनाना था, जो तत्कालीन कांग्रेस के धर्मनिरपेक्ष आंदोलन से अलग था।

भागवत से सवाल किया गया कि RSS में सर्वोच्च पद कौन सा होता है? इस पर उन्होंने उत्तर दिया कि RSS में सर्वोच्च पद कोई एक व्यक्ति नहीं, बल्कि “सामान्य स्वयंसेवक” का होता है। संघ का पूरा संगठन निस्वार्थ भाव से देश और समाज की सेवा करता है। उन्होंने यह भी कहा कि संघ की खूबियां और कमियां सभी के लिए स्पष्ट नहीं हो पातीं, लेकिन जो लोग संघ को समझने के लिए समय देते हैं, वे इससे गहरा प्रभाव लेते हैं और बताते हैं कि RSS ने उन्हें बहुत कुछ सिखाया है।

भागवत ने अंत में कहा कि RSS की ताकत उसके स्वयंसेवकों में है, जो मिलकर देश सेवा में लगे रहते हैं और इसी में संगठन की सबसे बड़ी शक्ति निहित है।