शिवसेना (यूबीटी) की सांसद प्रियंका चतुर्वेदी ने हाल ही में संसद में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के भाषण पर तीखा प्रहार किया है। उन्होंने कहा कि चुनाव सुधारों पर हो रही चर्चा के दौरान मुद्दों से ध्यान भटकाकर लगातार कांग्रेस और नेहरू-गांधी परिवार को घसीटना उचित नहीं है। चतुर्वेदी ने इसे सरकार के अहंकार और नाराजगी का प्रतीक बताया।
प्रियंका चतुर्वेदी के बयान से यह साफ है कि विपक्ष चुनाव सुधारों पर सार्थक चर्चा की उम्मीद कर रहा है, जबकि सरकार इस मुद्दे को नेहरू-गांधी परिवार तक सीमित करके असली बहस से भटक रही है। आने वाले दिनों में इस बहस के और भी तीखे होने की संभावना है।
मुद्दों से भटक रही है सरकारसांसद प्रियंका चतुर्वेदी ने कहा कि गृह मंत्री का भाषण मुख्य रूप से चुनाव सुधार पर केंद्रित होना चाहिए था, लेकिन उन्होंने इसका उपयोग व्यक्तिगत कटाक्ष और कांग्रेस व गांधी परिवार पर निशाना साधने के लिए किया। चतुर्वेदी ने कहा, “गुस्सा दिखाना और अहंकार में जवाब देना यह स्पष्ट करता है कि चुनाव सुधार पर सरकार के पास ठोस जवाब नहीं हैं। प्रियंका गांधी पहले ही कह चुकी हैं कि अगर सरकार को नेहरू-गांधी परिवार पर चर्चा करनी है, तो एक बार में पूरी कर ले, ताकि देश के वास्तविक मुद्दों पर ध्यान दिया जा सके। इसके बावजूद कल भी वही दृश्य दोहराया गया।”
गृह मंत्री को व्यक्तिगत प्रहार से बचना चाहिएचतुर्वेदी ने आरोप लगाया कि गृह मंत्री ने जवाहरलाल नेहरू से लेकर सोनिया गांधी तक पूरे परिवार पर टिप्पणी में अधिक समय लगाया, जबकि चुनाव सुधार जैसे अहम मुद्दे पर गंभीर और संतुलित चर्चा की अपेक्षा थी। उन्होंने कहा कि संसदीय परंपरा यह मांग करती है कि लोकतंत्र और देश के संवैधानिक सुधारों पर चर्चा के दौरान व्यक्तिगत हमले से बचना चाहिए।
चुनाव सुधार पर स्पष्ट जवाब की आवश्यकतासांसद ने कहा कि चुनाव सुधार देश के भविष्य और लोकतंत्र की मजबूती से जुड़े हैं। जनता जानना चाहती है कि सरकार पारदर्शी और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने के लिए क्या ठोस कदम उठाएगी। लेकिन इसके बजाय विपक्ष को कोसकर बहस का स्तर गिराया गया। उन्होंने कहा, “लोकतंत्र मजबूत संवाद और जवाबदेही से बनता है, विपक्ष को कमजोर करने से नहीं।”
सदन में माहौल पर भी उठाई आपत्तिप्रियंका चतुर्वेदी ने संसद में बहस के स्तर पर भी चिंता जताई। उन्होंने कहा कि संसद देश के वास्तविक मुद्दों और आम लोगों की समस्याओं पर चर्चा का मंच है, लेकिन इसे राजनीतिक कटाक्ष और व्यक्तिगत आरोपों का अखाड़ा बना दिया गया है। उनका कहना है कि इस तरह की बहस लोकतंत्र के हित में नहीं है और इसे सुधारने की जरूरत है।