टोक्यो ओलंपिक के बाद पैरालंपिक में भी भारत का लाजवाब प्रदर्शन जारी है। भारतीय दिव्यांग एथलीटों ने एक से बढ़कर एक खेल दिखाकर देश का मस्तक गर्व से ऊंचा कर दिया है। आज शनिवार (4 सितंबर) को शटलर प्रमोद भगत ने बैडमिंटन पुरुष एकल एसएल3 स्पर्धा में गोल्ड मेडल जीत लिया है। एसएल3 क्लास में उन खिलाड़ियों को हिस्सा लेने की अनुमति होती है जिनके पैर में विकार हो। पैरालंपिक खेल के इतिहास में बैडमिंटन में भारत को यह पहला गोल्ड मेडल मिला है। टोक्यो गेम्स में भारत का यह चौथा गोल्ड है।
इसके साथ ही भारत के कुल पदकों की संख्या 16 हो गई है। प्रमोद ने फाइनल में डैनियन बेथेल को सीधे गेम में 21-14, 21-17 से मात दी। वे सेमीफाइनल में जापान के डाइसुके फुजीहारा पर 21-11, 21-16 से जीत दर्ज करने में सफल रहे थे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बधाई देते हुए लिखा कि प्रमोद भगत ने पूरे देश का दिल जीत लिया है, वे एक चैंपियन हैं, जिनकी सफलता लाखों लोगों को प्रेरित करेगी, उन्होंने उल्लेखनीय दृढ़ संकल्प दिखाया। उन्हें बैडमिंटन में गोल्ड जीतने के लिए बधाई। उन्हें उनके भविष्य के प्रयासों के लिए शुभकामनाएं।
प्रमोद के पास है एक और पदक जीतने का मौका
भुवनेश्वर के 33
वर्षीय प्रमोद अभी मिश्रित युगल एसएल3-एसयू5 क्लास में कांस्य पदक के लिए
चुनौती पेश करेंगे। प्रमोद और उनकी जोड़ीदार पलक कोहली रविवार को कांस्य
पदक के प्लेऑफ में जापान के दाईसुके फुजीहारा और अकिको सुगिनो की जोड़ी से
भिड़ेंगे। भगत-पलक को सेमीफाइनल में इंडोनेशिया की हैरी सुसांतो एवं लीएनी
रात्रि आकतिला से 3-21, 15-21 से हार का सामना करना पड़ा था। प्रमोद ने
विश्व चैम्पियनशिप में चार स्वर्ण समेत 45 अंतरराष्ट्रीय पदक जीते हैं।
सुहास यथिराज और कृष्णा नागर भी अपनी-अपनी क्लास में फाइनल में पहुंच चुके
हैं।
प्रमोद जब चार साल के थे तो पोलियो से खराब हुआ पैर
जीत
के बाद प्रमोद ने कहा कि यह मेरे लिए बहुत विशेष है, मेरा सपना सच हो गया।
बेथेल ने बहुत कोशिश की, लेकिन मैं संयमित रहा और बेहतर खेल दिखाया। मैं
इस पदक को माता-पिता और हर उस व्यक्ति को समर्पित करना चाहूंगा जिसने मेरा
समर्थन किया। मैं खुश हूं कि भारत को गौरवान्वित कर सका। मैं दो साल पहले
जापान में इन्हीं प्रतिद्वंद्वियों के खिलाफ खेला था और हार गया था। वो
मेरे लिए सीखने का मौका था। आपको बता दें कि प्रमोद के पिता रामा भगत गांव
में रहकर खेती करते थे। प्रमोद जब चार साल के थे तो पोलियो की वजह से उनका
बायां पैर खराब हो गया था। बहन किशुनी देवी की कोई संतान नहीं थी। ऐसे में
उन्होंने भाई को गोद ले लिया।