Womens Day Special : देश की पहली महिला इंजीनियर हैं सुधा नारायण मूर्ति

उत्तरी कर्नाटक के हुबली क्षेत्र के एक मध्यमवर्गीय परिवार में जन्मी सुधा कुलकर्णी पहली महिला इंजीनियर है, जिन्होंने अपने कौशल और ज्ञान के बूते टाटा के किले में सेंध लगायी थी। 80के दशक की बात है। सुधा कुलकर्णी नामक एक युवती अखबार में एक विज्ञापन पढ़ती है। पूरा विज्ञापन वह सहज भाव से पढ़ जाती है। लेकिन विज्ञापन की आखिरी पंक्तियां पढ़ कर वह बुरी तरह चौंक जाती है। आखिरी पंक्तियां थीं-इस पद के लिए महिलाएं आवेदन न करें।

यह टाटा के टेल्को का विज्ञापन था, जो भारी वाहनों का निर्माण करता है। इसमें युवा इंजीनियरों को आमंत्रित किया गया था। जाहिर है यह विज्ञापन महिलाओं को खुलेआम वर्जनीय बना रहा था। नौकरी को कौशल और क्षमता के आधार पर प्रस्तावित करने के स्थान पर खुले तौर पर यह घोषणा की गयी थी कि यह सिर्फ पुरुषों के योग्य है।

सुधा को लगा कि यह सरासर अनुचित है। लेकिन सुधा ने परेशान होने की बजाय टाटा समूह के अध्यक्ष जेआरडी टाटा को कड़े शब्दों में एक पत्र लिख कर उनकी इस पिछड़ी अवधारणा की निंदा की। उन्होंने इस पत्र में यह भी लिखा था कि लिंग के आधार पर योग्य महिला इंजीनियरों को नौकरी न देना सरासर अन्याय है। पत्र लिखने के बाद सुधा इस एपिसोड को लगभग भूल गयीं। उन्हें आश्चर्य हुआ जब उन्हें साक्षात्कार के लिए ऑफिशियल बुलावा आया। फिर भी उन्हें इस बात की उम्मीद नहीं थी कि नौकरी उन्हें मिल ही जाएगी।

सुधा कहती हैं- जब आप उम्मीद छोड़ देते हैं तो आपका डर खत्म हो जाता है। चयन समिति ने ढाई घंटे सुधा का इंटरव्यू लिया और उनसे तमाम तकनीकी सवाल पूछे, जिनके जवाब उन्होंने बारी-बारी से दिये। अंत में सुधा कुलकर्णी को यह नौकरी मिल गयी। वे पहली महिला इंजीनियर थीं, जिन्होंने अपने कौशल और ज्ञान के बूते टाटा के किले में सेंध लगायी थी।

उत्तरी कर्नाटक के हुबली क्षेत्र के एक मध्यमवर्गीय परिवार में 19 अगस्त 1950 को सुधा का जन्म हुआ। उनके पिता एच आर कुलकर्णी सरकारी डॉक्टर थे। स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद जब सुधा ने इंजीनियरिंग कॉलेज में प्रवेश लिया तो शहर के लोग उन्हें अचरज से देखा करते थे। खासकर इसलिये भी, क्योंकि तब तक हुबली या आस-पास के इलाकों की किसी भी लड़की ने इंजीनियरिंग कॉलेज में प्रवेश नहीं लिया था। उन दिनों को याद करते हुए सुधा बताती हैं- शुरू में सब कुछ बहुत तकलीफदेय था। कॉलेज में न तो कोई महिला कक्ष था और न ही कोई महिला शौचालय, क्योंकि कॉलेज में मेरे अलावा कोई लड़की नहीं थी। डेढ़ साल बाद अधिकारियों ने कॉलेज परिसर में एक महिला शौचालय बनवाया। वह बताती हैं, अपनी डिग्री पाने के पांच वर्षों में मैंने एक दिन भी छुट्टी नहीं ली, क्योंकि मैं जानती थी कि अगर मैंने एक दिन भी नागा किया तो उस दिन के नोट्स मुझे कोई नहीं दिखाएगा।

यही सुधा कुलकर्णी बाद में नारायण मूर्ति नामक एक युवक के साथ पहले प्रेम करने लगीं और बाद में उनसे शादी कर ली। 1981 में जब एन आर नारायण मूर्ति ने अपने छह दोस्तों के साथ इन्फोसिस कंसल्टेंट्स प्राइवेट लि. की नींव रखी तो सुधा ने ही अपनी जोड़ी हुई दस हजार रुपये की पूंजी अपने पति को दी थी।

सुधा ने खुद को समाज में केवल एक इंजीनियर के रूप में ही स्थापित नहीं किया, बल्कि उन्होंने समाज के विकास के भी बहुत से कार्य किये। उन्होंने ऐसी कहानियां लिखीं, जिनका फोकस आम आदमी है। साथ ही उन्होंने होस्पिटेलिटी, डोनेशन और संबंधों पर अपने नजरिये को लेकर भी कई किताबें लिखीं हैं। सुधा मूर्ति की पहल पर ही दिसंबर 1996 में समाज में पिछड़ों, खासकर महिलाओं और बच्चों की सहायता और सेवा के लिए इन्फोसिस फाउंडेशन की स्थापना की गयी। सुधा के नेतृत्व में इस फाउंडेशन ने कई प्रतिष्ठित पुरस्कार भी जीते हैं। सुधा के जीवन का एक ही मूल मंत्र है-आप जो भी करें, उसे पूरी क्षमता से सर्वश्रेष्ठ करें। वह कहती हैं, हर काम में मेरा लक्ष्य यही रहता है-जब आप अधीनस्थ हों तो अपने पेशे के प्रति ईमानदार व गंभीर रहें और जब आप बॉस हों तो पेशेवर बनें, पर अपने अधीनस्थों का ध्यान रखें।