इन कारणों से दिल्ली में कच्ची रह गई बीजेपी की दाल...

दिल्ली में बीजेपी अपने 22 साल के वनवास को इस बार भी खत्म नहीं कर सकी, जो अब उसे सत्ता के लिए पांच साल और भी इंतजार करना पड़ेगा। इस तरह से बीजेपी की दिल्ली के सिंहासन से दूरी 27 साल तक की हो गई है। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के मुफ्त बिजली-पानी की काट के लिए बीजेपी ने 2 रुपये किलो आटे, छात्राओं को मुफ्त स्कूटी, साइकल जैसे वादे किए। चुनाव प्रचार में बीजेपी ने केंद्रीय मंत्रियों और सांसदों की पूरी फौज को उतार दिया। चुनाव प्रचार की बागडोर पार्टी के 'चाणक्य' कहे जाने वाले अमित शाह ने खुद संभाली। मोदी-शाह की जोड़ी 2014 लोकसभा चुनाव के बाद से भारतीय जनता पार्टी के लिए जीत हासिल करने की गांरटी बन गई थी। देखते ही देखते देश के अधिकांश राज्यों में बीजेपी का कमल खिल गया। उत्तर से दक्षिण और पश्चिम से पूर्वोत्तर राज्यों तक बीजेपी की जीत का डंका बजने लगा और इसका श्रेय गया नरेंद्र मोदी और अमित शाह की जोड़ी को। लेकिन केंद्र सरकार के नाक के नीचे दिल्ली में 2015 और 2020 में दो बार चुनाव हुए। इन दोनों चुनावों में मोदी-शाह की जोड़ी केजरीवाल के सामने अपना असर नहीं दिखा सकी। ऐसे में सवाल उठता है कि बीजेपी आखिर दिल्ली का दिल क्यों नहीं जीत पाती है? कांग्रेस पिछली बार की तरह ही इस बार भी साफ हो गई।

चलिए समझने की कोशिश करते है कि आखिर मोदी-शाह की दाल दिल्ली में कच्ची क्यों रह गई...

- मजबूत चेहरे की कमी : दिल्ली में अरविंद केजरीवाल ने पूरे प्रचार अभियान को अपने चेहरे और अपनी सरकार के कामकाज के इर्द-गिर्द रखा। वहीं बीजेपी अपना सीएम कैंडिडेट का चेहरा साफ नहीं कर पाई। आम आदमी पार्टी के जिंगल्स से लेकर बैनर-पोस्टर और नारों तक में केजरीवाल ही छाए रहे। विरोधियों के पास उनके टक्कर का कोई चेहरा न होने के चलते केजरीवाल ने इसका भरपूर फायदा उठाया। वह सीधे-सीधे अमित शाह को अपना सीएम कैंडिडेट घोषित करने और बहस की चुनौती देते रहे। वह तकरीबन अपनी हर सभाओं में जोर देकर कहते रहे कि लोकतंत्र में सीएम जनता तय करती है, अमित शाह नहीं।

- मोदी VS केजरीवाल :
बीजेपी प्रचार के दौरन केजरीवाल पर सीधे हमले बोलती रही। बीजेपी ने अरविंद केजरीवाल के खिलाफ वही गलती की जो मोदी के खिलाफ उनके विरोधी समय-समय पर कर चुके हैं। यह गलती है- निजी हमले। बीजेपी के दिल्ली चुनाव प्रभारी और केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर, सांसद प्रवेश वर्मा जैसे नेताओं ने उन्हें आतंकवादी, नक्सली, अराजकतावादी तक कहा। दिल्ली बीजेपी चीफ मनोज तिवारी ने केजरीवाल के हनुमान मंदिर जाने का भी एक तरह से मजाक बनाया। वहीं दूसरी तरफ केजरीवाल ने अपने खिलाफ हुए इन निजी हमलों को ही हथियार बना लिया। वह चुनावी सभाओं में लोगों से पूछते रहे कि क्या 'दिल्ली का बेटा' आतंकवादी, देशद्रोही है। हनुमान मंदिर जाने पर मनोज तिवारी के तंज को भी उन्होंने भुनाया। पिछले साल लोकसभा चुनाव में दिल्ली में 56 प्रतिशत वोट पाने वाली बीजेपी विधानसभा चुनाव में 38-39 प्रतिशत पर सिमट गई जो साफ बताता है कि पीएम मोदी के लिए वोट देने वाले बहुत से लोगों ने असेंबली चुनाव में सीएम केजरीवाल को वोट दिया। बीजेपी ने चुनाव प्रचार में मनोज तिवारी को ज्यादा तरजीह दी कि पूर्वांचली वोटरों पर उनका प्रभाव होगा लेकिन नतीजों से साफ है कि तिवारी पूरबिया वोटरों को लुभाने में बुरी तरह नाकाम रहे।

- कांग्रेस का हथियार डालना : बीजेपी की हार की एक ओर सबसे बड़ी वजह है कांग्रेस का हथियार डालना। केजरीवाल के राजनीतिक उदय से पहले दिल्ली की सत्ता पर लगातार 15 सालों तक काबिज रही कांग्रेस इस बार भी खाता नहीं खोल पाई और उसका वोटशेयर भी घटकर आधा रह गया। 8-9 महीने पहले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस दिल्ली में अपने खिसकते जनाधार को कुछ हद तक वापस पाने में कामयाब रही थी। 2015 विधानसभा चुनाव में 9.7% वोट पाने वाली कांग्रेस इस बार 5% से भी कम वोटशेयर पर सिमट गई। कांग्रेस के कमजोर होने से दिल्ली का चुनाव त्रिकोणीय के बजाय सीधे-सीधे AAP बनाम बीजेपी की लड़ाई हो गई।

- राष्ट्रीय मुद्दों पर फोकस : बीजेपी ने दिल्ली चुनाव में स्थानीय के बजाय राष्ट्रीय मुद्दों पर फोकस रखा। पीएम मोदी भी अपनी सभाओं में नागरिकता संशोधन कानून, पाकिस्तान पर सर्जिकल स्ट्राइक, एयर स्ट्राइक से लेकर अपनी सरकार की उपलब्धियों को गिनाते रहे। लेकिन जनता ने बिजली, पानी, शिक्षा जैसे स्थानीय मुद्दों पर बटन दबाया।

- शाहीन बाग : बीजेपी को अपने नेताओं की गलत बयानबाजी भी भारी पड़ी। शाहीन बाग को लेकर प्रवेश वर्मा, अनुराग ठाकुर और कपिल मिश्रा जैसे नेताओं ने आपत्तिजनक बयान दिए। वर्मा ने शाहीन बाग की कश्मीर से तुलना कर दी और कहा कि ये प्रदर्शनकारी घरों में घुसकर बहन-बेटियों पर ज्यादती करेंगे। AAP से बीजेपी में आए कपिल मिश्रा ने तो दिल्ली चुनाव को भारत बनाम पाकिस्तान की लड़ाई करार दिया। केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर 'गोली मारो गद्दारों को' नारे लगवाते दिखे। सीएए विरोधी प्रदर्शनों का केंद्र बनकर उभरे शाहीन बाग को 'तौहीन बाग' कहा गया। बीजेपी नेताओं के साथ-साथ खुद केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह भी लगातार सभाओं में यह कहते रहे कि ईवीएम का बटन इतना तेज दबाना कि करंट शाहीन बाग तक पहुंचे। योगी आदित्यनाथ 'बिरयानी नहीं गोली' की बात करते रहे। बीजेपी का यह दांव उल्टा पड़ गया। लोकसभा चुनाव में जो मुस्लिम मतदाता AAP से छिटककर कांग्रेस की तरफ गए थे, वे BJP के खिलाफ उस AAP के पक्ष में पूरी तरह लामबंद हो गए जो शाहीन बाग के साथ कांग्रेस जितनी मुखरता से खड़ी भी नहीं थी।