नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को कहा कि आरोपों की गंभीरता के बावजूद प्रत्येक आरोपी को शीघ्र सुनवाई का अधिकार है। न्यायालय ने राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) को उस व्यक्ति की जमानत याचिका का विरोध करने पर फटकार लगाई जो गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम के तहत आरोप लगाए जाने के बाद चार साल से जेल में है।
दो जजों की बेंच की अध्यक्षता कर रहे जस्टिस जे बी पारदीवाला ने आरोपी जावेद गुलाम नबी शेख को ज़मानत देते हुए कहा, न्याय का मज़ाक मत बनाइए...आप राज्य हैं; आप एनआईए हैं...उस (आरोपी) को त्वरित सुनवाई का अधिकार है, चाहे उसने कोई भी अपराध किया हो। उसने गंभीर अपराध किया हो, लेकिन मुकदमा शुरू करना आपका दायित्व है। वह पिछले चार सालों से जेल में है। आज तक आरोप तय नहीं हुआ है।
यह देखते हुए कि केंद्रीय एजेंसी ने 80 गवाहों की जांच करने का प्रस्ताव दिया था, पीठ, जिसमें न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुइयां भी शामिल थे, ने पूछा, हमें बताएं कि उन्हें कितने साल जेल में रहना चाहिए?
हालांकि एनआईए के वकील ने अधिक समय के लिए प्रार्थना की, लेकिन अदालत ने सुनवाई स्थगित करने से इनकार कर दिया।
पीठ ने अपने आदेश में कहा, जैसा कि संविधान में निहित है, हर आरोपी को त्वरित सुनवाई का अधिकार है, चाहे अपराध कितना भी गंभीर क्यों न हो। साथ ही पीठ ने कहा कि इस मामले में, उसे विश्वास है कि इस अधिकार का हनन किया गया है, जिससे अनुच्छेद 21 का उल्लंघन हुआ है।
सुप्रीम कोर्ट ने इस तथ्य पर भी ध्यान दिया कि मामले में दो सह-आरोपियों को पहले ही जमानत मिल चुकी है।
एक गुप्त सूचना के आधार पर, मुंबई पुलिस ने 9 फरवरी, 2020 को शेख को गिरफ्तार किया और उसके पास से कथित तौर पर पाकिस्तान से आने वाली नकली मुद्रा बरामद की। इस साल फरवरी में, बॉम्बे हाई कोर्ट ने उसकी जमानत याचिका खारिज कर दी, जिसके बाद उसने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।