Chandrayaan2: लैंडर विक्रम की लैंडिंग में गड़बड़ी कहां, कैसे और क्यों हुई? 3 दिन बाद मिलेगा जवाब

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान यानी इसरो (ISRO) का चंद्रयान-2 (Chandrayaan 2) के लैंडर विक्रम (Lander Vikram) की लैंडिंग में गड़बड़ी कहां हुई, कैसे हुई और क्यों हुई? इन सब सवालों का जवाब वैज्ञानिकों के अनुसार आने वाले तीन दिनों में लग जायेगा। दरअसल ऑर्बिटर पर लगे अत्याधुनिक उपकरणों के सहारे जल्द ही इन सभी सवालों के जवाब ढूंढे जा सकते हैं। इसके लिए इसरो के वैज्ञानिकों ने लंबा-चौड़ा डाटा खंगालना शुरू कर दिया है। इसरो के वैज्ञानिक इस सवाल का जवाब तलाशने के लिए विक्रम लैंडर के टेलिमेट्रिक डाटा, सिग्नल, सॉफ्टवेयर, हार्डवेयर, लिक्विड इंजन का विस्तारपूर्वक अध्ययन कर रहे हैं।

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, इसरो के वैज्ञानिक 3 दिन बाद लैंडर विक्रम को ढूंढ निकालेंगे। दरअसल जहां से लैंडर विक्रम का संपर्क टूटा था, उस जगह पर आर्बिटर को पहुंचने में तीन दिन का समय लगेगा। वैज्ञानिकों के मुताबिक, टीम को लैंडिंग साइट की पूरी जानकारी है। आखिरी समय में लैंडर विक्रम रास्ते से भटक गया था, इसलिए अब वैज्ञानिक ऑर्बिटर के तीन उपकरणों के जरिये उसे ढूंढने की कोशिश करेंगे।' ऑर्बिटर में ऐसे उपकरण है कि जिनके पास चांद के सतह को मापने, तस्वीरें खींचने की क्षमता है। अगर ऑर्बिटर ऐसी कोई भी तस्वीर भेजता है तो लैंडर के बारे में जानकारी मिल सकती है।

इसरो के चेयरमैन के. सिवन ने दूरदर्शन को दिए अपने इंटरव्यू में कहा कि हालांकि हमारा चंद्रयान 2 के लैंडर से संपर्क टूट चुका है, लेकिन वो लैंडर से दोबारा संपर्क स्थापित करने के लिए अगले 14 दिनों तक प्रयास करते रहेंगे। उन्होंने कहा कि लैंडर के पहले चरण को सफलता पूर्वक पूरा किया गया। जिसमें यान की गति को कम करने में एजेंसी को सफलता मिली। हालांकि अंतिम चरण में आकर लैंडर का संपर्क एजेंसी से टूट गया।

विक्रम की लैंडिंग आखिरी पलों में गड़बड़ हुई। ये दिक्कत तब शुरू हुई जब विक्रम लैंडर चांद की सतह से मात्र 2.1 किलोमीटर ऊपर था। अब वैज्ञानिक विक्रम लैंडर के उतरने के रास्ते का विश्लेषण कर रहे हैं। रिपोर्ट के मुताबिक हर सब-सिस्टम के परफॉर्मेंस डाटा में कुछ राज छिपा हो सकता है। यहां लिक्विड इंजन का जिक्र बेहद अहम है। विक्रम लैंडर की लैंडिंग में इसका अहम रोल रहा है।

ऐसा होने पर ढूंढना होगा मुश्किल

वैज्ञानिकों ने कहा कि अगर लैंडर विक्रम ने क्रैश लैंडिंग की होगी तो वह कई टुकड़ों में टूट चुका होगा। ऐसे में लैंडर विक्रम को ढूंढना और उससे संपर्क साधना काफी मुश्किल भरा होगा। लेकिन अगर उसके कंपोनेंट को नुकसान नहीं पहुंचा होगा तो हाई-रेजॉलूशन तस्वीरों के जरिए उसका पता लगाया जा सकेगा। इससे पहले इसरो चीफ के। सिवन ने भी कहा है कि अगले 14 दिनों तक लैंडर विक्रम से संपर्क साधने की कोशिशें जारी रहेंगी। इसरो की टीम लगातार लैंडर विक्रम को ढूंढने में लगी हुई है। इसरो चीफ के बाद देश को उम्मीद है कि अगले 14 दिनों में कोई अच्छी खबर मिल सकती है।

सेंसर से डाउनलोड हुआ डाटा

विक्रम लैंडर जब चांद की सतह पर उतरने की कोशिश कर रहा था तो उसके सेंसर ने कई डाटा कमांड सेंटर को भेजे हैं। इनमें चांद के सतह की तस्वीर समेत कई दूसरे डाटा शामिल हैं। इस पर इसरो की टीम काम कर रही है।

आंतरिक चूक या बाहरी तत्व

इसरो विक्रम लैंडर की लैंडिंग में आई खामी का पता करने के लिए हर पहलू की जांच कर रहा है। इसरो की टीम अब ये जांच कर रही है कि क्या किसी किस्म की आंतरिक चूक हुई है या फिर कोई बाहरी तत्व का हाथ है।

दूसरी एजेंसियों से मदद

दुनिया भर की स्पेस एजेंसियों की निगाह चंद्रयान-2 की लैंडिंग पर थी। इसलिए इसरो इस पर भी विचार कर सकता है कि दूसरी एजेंसियों, जैसे कि स्पेस स्टेशन, टेलिस्कोप से विक्रम लैंडर से जुड़े जरूरी सेंसर डाटा को लिया जाए, ताकि विक्रम लैंडर का लोकेशन पता चल सके।

इसरो अब इस बात का अध्ययन कर रहा है कि क्या विक्रम की लैंडिंग के आखिरी फेज में कुछ परफॉर्मेंस विसंगति आई है। क्योंकि जब लैंडर चांद की सतह से 2.1 किमी दूर था तब तक लैंडर की इन्हीं मशीनों ने सटीक काम किया था।

7.5 सालों तक काम करेगा ऑर्बिटर

सिवन ने कहा कि पहली बार हम चंद्रमा के ध्रुवीय क्षेत्र का डाटा प्राप्त करेंगे। चंद्रमा की यह जानकारी विश्व तक पहली बार पहुंचेगी। चेयरमैन ने कहा कि चंद्रमा के चारों तरफ घूमने वाले आर्विटर के तय जीवनकाल को सात साल के लिए बढ़ाया गया है। यह 7.5 सालों तक काम करता रहेगा। यह हमारे लिए संपूर्ण चंद्रमा के ग्लोब को कवर करने में सक्षम होगा।