हम भूले नहीं हैं, बैलट पेपर से वोटिंग के समय क्या होता था: सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को वोटर-वेरिफिएबल पेपर ऑडिट ट्रेल (VVPAT) से निकलने वाली सभी पर्चियों का मिलान इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) से पड़े वोटों के साथ कराने की मांग वाली याचिकाओं पर सुनवाई की। दो घंटे से अधिक समय तक सुनवाई के बाद, न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और दीपांकर दत्ता की पीठ ने मामले को आगे की सुनवाई के लिए 18 अप्रैल तक टाल दिया। ज्ञातव्य है कि लोकसभा चुनाव 2024 के लिए पहले चरण की वोटिंग 19 अप्रैल को निर्धारित है। एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) और सोशल एक्टिविस्ट अरुण कुमार अग्रवाल ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करके ईवीएम के वोटों और वीवीपीएटी पर्चियों की 100 फीसदी मिलान की मांग की है।

शीर्ष अदालत में एडीआर की ओर से पेश वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने अपनी दलील के दौरान कहा कि अधिकांश मतदाता ईवीएम पर भरोसा नहीं करते। इस पर जस्टिस दीपांकर दत्ता ने उन्हें टोकते हुए पूछा, 'आपने कहा कि अधिकांश मतदाता ईवीएम पर भरोसा नहीं करते। आपको ये डेटा कैसे और कहां से मिला?' इसके जवाब में प्रशांत भूषण ने कहा- 'एक सर्वेक्षण हुआ था'। जस्टिस दत्ता ने कहा- 'हम निजी सर्वेक्षणों पर विश्वास नहीं करते'।

प्रशांत भूषण ने तर्क दिया कि अधिकांश यूरोपीय देश, जिन्होंने ईवीएम से मतदान का विकल्प चुना था, वापस बैलट पेपर पर लौट आए हैं। इस पर जस्टिस संजीव खन्ना ने कहा, 'हम अपनी जिंदगी के छठे दशक में हैं और जानते हैं कि जब बैलट पेपर से मतदान होता था, तब क्या समस्याएं आती थीं. हो सकता है आपको याद न हो, लेकिन हम भूले नहीं हैं।'

मतदान केंद्र पर ईवीएम मशीन के साथ एक और मशीन जुड़ी होती और उसके साथ एक ट्रांसपेरेंट बॉक्स रखा होता है। इसे VVPAT यानी वोटर-वेरिफिएबल पेपर ऑडिट ट्रेल कहते हैं। जब मतदाता ईवीएम के जरिए अपना वोट डालता है तो VVPAT से एक पर्ची निकलती है और बॉक्स में गिर जाती है। उस पर्ची पर मतदाता ने जिस पार्टी को वोट दिया होता है, उसका चुनाव चिन्ह दर्ज होता है। वीवीपैट पर्ची मतदाता को यह देखने में सक्षम बनाती है कि वोट सही तरीके से पड़ा है और वह जिस उम्मीदवार का समर्थन करता है, उसे ही गया है। अगर मतदाता को संदेह है तो वह पीठासीन अधिकारी से शिकायत कर पर्ची देख सकता है और यह सुनिश्चित कर सकता है कि उसने जिस पार्टी को वोट दिया है, उसे ही गया है या नहीं।

SC ने किया सवाल, प्राइवेट कंपनियां EVM बनाएं तो खुश होंगे आप

याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश एक वकील ने आरोप लगाया कि ईवीएम पब्लिक सेक्टर यूनिट की कंपनियां बनाती हैं. जो सरकार के नियंत्रण में होती हैं। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने पूछा- क्या प्राइवेट कंपनी ईवीएम बनाएगी तो आप खुश होंगे? सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वकील संजय हेगड़े ने शीर्ष अदालत से मांग की कि ईवीएम में दर्ज वोटों का मिलान वीवीपीएटी की 100 फीसदी पर्चियों से किया जाना चाहिए। इस पर जस्टिस संजीव खन्ना ने पूछा- क्या 60 करोड़ वीवीपीएटी पर्चियों की गिनती होनी चाहिए?

वकील गोपाल शंकर नारायण ने कहा कि चुनाव आयोग का कहना है कि सभी वीवीपीएटी पर्चियों की गिनती में 12 दिन लगेंगे। एक वकील ने वोट देने के लिए बारकोड का सुझाव दिया। जस्टिस संजीव खन्ना ने कहा, 'अगर आप किसी दुकान पर जाते हैं तो वहां बारकोड होता है। बारकोड से वोटों की गिनती में मदद नहीं मिलेगी, जब तक कि हर उम्मीदवार या पार्टी को बारकोड न दिया जाए और यह भी एक बहुत बड़ी समस्या होगी। मानवीय हस्तक्षेप से समस्याएं उत्पन्न होती हैं, जब सॉफ्टवेयर या मशीन में अनधिकृत परिवर्तन किए जाते हैं। यदि आपके पास इसे रोकने के लिए कोई सुझाव है, तो हमें बता सकते हैं।'

प्रशांत भूषण ने कहा, 'बेहतर तरीका ये है कि वोटर को वीवीपैट से निकलने वाली पर्ची दी जाए और वह इसे देखने के बाद खुद बॉक्स में डाले और फिर उसका ईवीएम से मिलान किया जाए। वर्तमान में चुनाव आयोग प्रति विधानसभा केवल 5 वीवीपैट मशीनों की गिनती कर रहा है, जबकि ऐसी 200 मशीनें लगती हैं. यह केवल 5 प्रतिशत है। मतदाता को वीवीपैट से निकलने वाली पर्ची लेने और उसे मतपेटी में डालने की अनुमति दी जा सकती है. जर्मनी में ऐसा ही होता है।'