हाथरस केस / ED का बड़ा खुलासा- राज्य में जातीय दंगा फैलाने के लिए मॉरीशस से भेजे गए 50 करोड़

हाथरस में दलित युवती के साथ गैंगरेप और मौत के मामला अब जातीय हिंसा की साजिश और राज्य सरकार की छवि बिगाड़ने में तब्दील होता दिख रहा है। जातीय दंगा फैलाने की साजिश में पापुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) का नाम सामने आ रहा है। ईडी ने दावा किया है कि पीएफआई के पास मॉरिशस से 50 करोड़ आए थे।

गौरतलब है कि हाथरस में दंगे की साजिश रचने के आरोप में मेरठ से चार संदिग्धों को गिरफ्तार किया गया था जिसमें एक केरल का पत्रकार भी शामिल है। चारों का पीएफआई संगठन से रिश्ता बताया जा रहा था। वहीं केरल यूनियन ऑफ वर्किंग जॉर्नलिस्ट ने सादिक कप्पन नाम के गिरफ्तार पत्रकार को छोड़ने के लिए सीएम योगी को पत्र लिखा है। यूनियन ने कहा कि कप्पन हाथरस में मौजूदा हालात की रिपोर्टिंग के लिए गए थे। पुलिस ने इनके पास से भड़काऊ साहित्य बरामद किया था। इससे पहले यूपी पुलिस ने एक वेबसाइट के जरिए दंगों की साजिश का दावा भी किया है।

हाथरस पीड़िता को इंसाफ के नाम पर बनाई गई इस वेबसाइट में कई आपत्तिजनक बातें कही गई थी। हाथरस में हिंसा की साजिश के पहलू पर ईडी ने भी केस दर्ज कर लिया है। ईडी की शुरुआती जांच में खुलासा हुआ है कि यूपी में जातीय हिंसा भड़काने के लिए 100 करोड़ रुपये से अधिक की फंडिंग की गई थी।

पीएफआई के चेयरमैन का नाम ओएम अब्दुल सलाम है जो केरल के बिजली विभाग में काम करता है। केरल राज्य बिजली बोर्ड (केएसईबी) में सीनियर असिस्टेंट के रूप में कार्यरत सलाम इस वक्त मंजरी (मलप्पुरम) एसईबी सर्किल ऑफिस में तैनात है। सीएए-एनआरसी को लेकर देशभर में फैली हिंसा में जब पीएफआई का नाम आया तो अब्दुल सलाम के सरकारी कर्मचारी के रूप में काम करने पर सवाल उठे। उस वक्त यह सवाल था कि क्या एक विवादों में रहने वाला संगठन का चेयरमैन किसी सरकारी पद पर रह सकता है? इस पर राज्य बिजली बोर्ड के अधिकारियों ने कहा था कि इस मामले में सलाम के खिलाफ कोई शिकायत या आपराधिक केस लंबित नहीं है, खासकर केरल में। यह भी कहा गया कि बिजली बोर्ड के सतर्कता विभाग ने इस मामले में पिछले साल कुछ छानबीन भी की थी लेकिन बाद में उन्हें रोक दिया गया था।

पीएफआई क्या है?

इसी साल फरवरी में सलाम को पीएफआई का चेयरमेन घोषित किया गया है। वह 2006 से इस संगठन से जुड़ा है। बता दें कि पीएफआई बाबरी विध्वंस के बाद बने केरल में तीन मुस्लिम संगठन नैशनल डिवलेपमेंट फ्रंट ऑफ केरल, कर्नाटक फोरम फॉर डिग्निटी और तमिलनाडु के मनिथा नीथि पसारी को मिलाकर 2006 में लॉन्च किया गया था। PFI के पॉलिटिकल फ्रंट का नाम SDPI है। पीएफआई खुद को पिछड़ों और अल्पसंख्यकों के हक में आवाज उठाने वाला संगठन बताता है। यह भी बताया जाता है कि संगठन की स्थापना 2006 में नैशनल डिवेलपमेंट फ्रंट (NDF) के उत्तराधिकारी के रूप में हुई थी। संगठन की जड़े केरल के कालीकट से हुई और इसका मुख्यालय दिल्ली के शाहीन बाग में स्थित है? पीएफआई का दावा है कि अब 22 राज्यों में उसकी यूनिट है। पीएफआई के अधिकतर नेता केरल से हैं और सदस्य बैन संगठन सिमी से हैं।

क्या था यूपी सरकार का दावा

यूपी सरकार के मुताबिक, प्रदेश में यूपी में जातीय दंगों की साजिश कराकर दुनिया मैं पीएम नरेंद्र मोदी और सीएम योगी आदित्यनाथ की छवि खराब करने के लिए जस्टिस फार हाथरस नाम से रातों रात वेबसाइट तैयार हुई। वेबसाइट में फर्जी आईडी के जरिए हजारों लोग जोड़े गए। यूपी सरकार का दावा है कि विरोध प्रदर्शन की आड़ में वेबसाइट पर देश और प्रदेश में दंगे कराने और दंगों के बाद बचने का तरीका बताया गया। मदद के बहाने दंगों के लिए फंडिंग की जा रही थी। फंडिंग की बदौलत अफवाहें फैलाने के लिए सोशल मीडिया के दुरूपयोग के भी सुराग मिले हैं। जांच एजेंसियों के हाथ वेबसाइट की डिटेल्स और पुख्ता जानकारी लगी है।

यूपी सरकार के मुताबिक, वेबसाइट में चेहरे पर मास्क लगाकर पुलिस व प्रशासनिक अधिकारियों को विरोध प्रदर्शन की आड़ में निशाना बनाने की रणनीति बताई गई। बहुसंख्यकों में फूट डालने और प्रदेश में नफरत का बीज बोने के लिए तरह-तरह की तरकीबें बताई गई। वेबसाइट पर बेहद आपत्तिजनक कंटेंट मिले।

पीएफआई का पहले भी आ चुका है नाम

धर्मांतरण को लेकर कई मामलों में PFI का नाम आता रहा है। दिल्‍ली में इसी साल फरवरी में हुई हिंसा में इस संगठन की प्रमुख भूमिका होने की बात सामने आई। दिल्‍ली पुलिस के अनुसार, PFI जैसे संगठनों ने प्रदर्शनकारियों को पैसे मुहैया कराए। प्रवर्तन निदेशालय PMLA के तहत PFI फंडिंग की जांच भी कर रहा है। उत्‍तर प्रदेश सरकार ने तो PFI पर प्रतिबंध लगाने की सिफारिश की थी। इसके बाद, सितंबर महीने में बेंगलुरु में हुई हिंसा में भी PFI के लोगों के शामिल होने की बात सामने आई।