केंद्र सरकार और असम सरकार के साथ उल्फा के त्रिपक्षीय शांति समझौते पर हुए हस्ताक्षर

नई दिल्ली। भारत सरकार, यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम (ULFA) और असम के बीच त्रिपक्षीय शांति समझौते पर आज शुक्रवार को हस्ताक्षर हो गए हैं। 40 साल में पहली बार सशस्त्र उग्रवादी संगठन उल्फा से भारत और असम सरकार के नुमाइंदे के बीच शांति समाधान समझौता मसौदे पर हस्ताक्षर हुए हैं। भारत सरकार के पूर्वोत्तर में शांति प्रयास की दिशा में यह एक बहुत बड़ा कदम है। कारण, उल्फा पिछले कई सालों से उत्तर पूर्व में सशस्त्र सुरक्षा बलों के खिलाफ हिंसात्मक संघर्ष कर रहा था।

इसको लेकर दिल्ली में अहम बैठक हुई, जिसमें पूर्वोत्तर में शांति समझौता के लिए उल्फा के साथ इस समझौते पर हस्ताक्षर किए गए। बैठक में गृह मंत्री अमित शाह, असम के मुख्यमंत्री हेमंता बिस्वा सरमा, गृह सचिव अजय भल्ला, असम के DGP जीपी सिंह सहित उल्फा ग्रुप के सदस्य मौजूद रहे।

परेश बरुआ के नेतृत्व वाला उल्फा का कट्टरपंथी गुट इस समझौते का हिस्सा नहीं है। कारण, उसने सरकार द्वारा प्रस्तावित समझौते में शामिल होने से इनकार कर दिया है।

गृह मंत्री अमित शाह ने इस मौके पर कहा, ''मेरे लिए बहुत हर्ष का विषय है कि आज असम के भविष्य के लिए एक सुनहरा दिन है। लंबे समय से असम ने हिंसा को झेला है, पूरे नॉर्थ-ईस्ट ने हिंसा को झेला है, जब से मोदी जी प्रधानमंत्री बने तब से (2014 से) दिल्ली और नॉर्थ-ईस्ट की दूरी कम करने के प्रयास हुए। मन खोलकर, खुले हृदय से सभी के साथ बातचीत की शुरुआत हुई और उनके (पीएम मोदी) मार्गदर्शन में ही उग्रवाद मुक्त, हिंसा मुक्त और विवाद मुक्त नॉर्थ-ईस्ट की परिकल्पना लेकर गृह मंत्रालय चलता रहा।''

उन्होंने कहा, ''पिछले पांच वर्षों में 9 शांति और सीमा संबंधित समझौते अलग-अलग राज्यों के पूरे नॉर्थ-ईस्ट में हुए हैं। इसके कारण नॉर्थ-ईस्ट के एक बड़े हिस्से में शांति की स्थापना हुई है।''

सभी हथियारी ग्रुप की बात को समाप्त करने में सफलता मिली है

गह मंत्री ने कहा, ''रिकॉर्ड पर 9 हजार से ज्यादा कैडर ने सरेंडर किया है और 85 प्रतिशत असम में से अफस्पा (AFSPA) को हटाया जा रहा है और आज भारत सरकार, असम सरकार और यूनाइटेड लिब्रेशन फ्रंट ऑफ असम (ULFA) के बीच में जो ट्राई पार्टी समझौता हुआ है, इससे असम के सभी हथियारी ग्रुप की बात को यहीं पर समाप्त करने में हमें सफलता मिली है...''

प्रोग्राम और कमेटी बनाई जाएगी

गृह मंत्री शाह ने कहा, ''पूरे नॉर्थ-ईस्ट और विशेषकर असम के लिए एक शांति के नए युग की शुरुआत होने जा रही है। मैं आज उल्फा के सभी प्रतिनिधियों को हृदय से विश्वास दिलाना चाहता हूं कि आपने जो भरोसा भारत सरकार पर रखा है, भारत सरकार के गृह मंत्रालय की ओर से आपकी मांग के बगैर ही इन सारी चीजों को पूरी करने के लिए एक टाइम बाउंड मैनर में प्रोग्राम भी बनाया जाएगा और हम गृह मंत्रालय के अंतर्गत एक कमेटी भी बनाएंगे जो असम सरकार के साथ रहकर पूरे समझौते को पूरा करने का प्रयास करेगी।

वहीं, असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने कहा, आज असम के लिए एक ऐतिहासिक दिन है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यकाल और गृह मंत्री अमित शाह के मार्गदर्शन में असम की शांति प्रक्रिया निरंतर जारी है...



एक हफ्ते से उल्फा के 20 नेता दिल्ली में थे मौजूद

दरअसल, उल्फा यानी यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम के एक धड़े के 20 नेता पिछले एक हफ्ते से दिल्ली में थे। भारत सरकार और असम सरकार के आला अधिकारी इस समझौते के मसौदे पर हस्ताक्षर के लिए उन्हें तैयार कर रहे थे। उल्फा के जिस धड़े ने शांति समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं वह अनूप चेतिया गुट का है। 2011 से उल्फा के इस गुट ने हथियार नहीं उठाए हैं लेकिन यह पहली बार है जब बकायदा एक शांति समझौते का मसौदा तैयार किया गया है और दोनों पक्षों के नुमाइंदों ने उस पर हस्ताक्षर किए हैं। पूर्वोत्तर में सशस्त्र उग्रवादी संगठनों से इस साल भारत सरकार का यह चौथा बड़ा समझौता है।

1979 में हुआ उल्फा का गठन


उल्फा का गठन 1979 में संप्रभु असम की मांग के साथ किया गया था। तब से, यह विध्वंसक गतिविधियों में शामिल रहा है जिसके कारण केंद्र सरकार ने 1990 में इसे प्रतिबंधित संगठन घोषित कर दिया था। उल्फा के साथ भारत सरकार ने कई बार बात करनी चाही, लेकिन उल्फा में आपस में टकराव से इस कोशिश में बाधा पैदा होती रही। आखिरकार 2010 में उल्फा दो भागों में बंट गया। एक हिस्से का नेतृत्व अरबिंद राजखोवा ने किया, जो सरकार के साथ बातचीत के पक्ष में थे और दूसरे का नेतृत्व बरुआ के नेतृत्व में था, जो बातचीत के विरोध में था। उल्फा, केंद्र और राज्य सरकारों के बीच सस्पेंशन ऑफ ऑपरेशंस (एसओओ) के समझौते पर हस्ताक्षर होने के बाद राजखोवा गुट 3 सितंबर, 2011 को सरकार के साथ शांति वार्ता में शामिल हुआ था।