गाय से जुड़े गांधीजी के ये विचार दर्शाते है उनकी भावना

आज के समय में देखा जा रहा हैं कि गाय की रक्षा अर्थात गौरक्षा के नाम पर कई असामाजिक तत्व अपना स्वार्थ साधते हैं और इसकी आड़ में मोब लिंचिंग जैसी कई घटनाओं को अंजाम देते हैं। यह पूर्ण रूप से अनैतिक और कानून के खिलाफ हैं जिसे एक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा हैं। ऐसे में लोगों को समझने और इंसानियत की राह अपनाने की जरूरत हैं। गांधीजी के भी गौरक्षा से जुड़े विचार थे जो उन्होनें 'भारत छोड़ो आन्दोलन' के दौरान अपने भाषण में व्यक्त किए थे।आज हम आपको भाषण के उसी अंश को आपके लिए लेकर आए हैं जो गाय से जुड़ी उनकी भावनाओं को व्यक्त करता हैं। तो आइये जानते हैं इसके बारे में।

गांधी जी ने कहा था कि मैं गौ पूजक हूं। फिर आज ऐसा क्या हो गया कि आज मैं मुसलमानों के लिए शैतान और अरुचिकर हो गया। क्या खिलाफत आंदोलन की हिंदू-मुस्लिम एकता मैंने किसी फरसे के जोर पर हासिल की थी। सच्चाई यह है कि मेरा अंतरात्मा कहती है कि ऐसा करने से मैं गोरक्षा भी कर सकूंगा। गांधी जी ने कहा था कि मैं यह मानता हूं कि मैं और गाय एक ही ईश्वर की संतान हैं।

गायों के प्राणों की रक्षा के लिए मैं अपने प्राण न्योछावार करने को तैयार हूं। उन्होंने कहा कि आज अली बंधु जीवित होते तो वे मेरी बात की सच्चाई के सबूत देते और बहुत से लोग यह भी बताते की मैंने यह काम गाय का जीवन बचाने के लिए मोलभाव के तौर पर नहीं किया था। गाय और खिलाफत दोनों का महत्व उनके अपने गुणों के आधार पर है। बापू ने अपने भाषण में जहां खुद को सच्चा गौरक्षक बताया तो वहीं मोहम्मद अली जिन्ना के लिए कड़े शब्दों का प्रयोग किया था। उन्होंने खुद को दलित रक्षक बताते हुए दलित हितों के लिए काम करने की प्रतिबद्धता दोहराई थी।