ये है वो कारण जो बन रहे है बाधा स्वच्छ भारत मिशन की कामयाबी में

भारत के राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने जून 2014 में संसद को संबोधित करते हुए कहा था कि एक स्वच्छ भारत मिशन शुरू किया जाएगा जो देश भर में स्वच्छता, वेस्ट मैनेजमेंट और स्वच्छता सुनिश्चित करने के लिए होगा। यह महात्मा गांधी की 150 वीं जयंती पर 2019 में हमारे तरफ से श्रद्धांजलि होगी। महात्मा गांधी के सपने को पूरा करने और दुनिया भर में भारत को एक आदर्श देश बनाने के क्रम में, भारत के प्रधानमंत्री ने महात्मा गांधी के जन्मदिन (2 अक्टूबर 2014) पर स्वच्छ भारत अभियान नामक एक अभियान शुरू किया। इस अभियान के पूरा होने का लक्ष्य 2019 है जो की महात्मा गांधी की 150 वीं जयंती है। स्वच्छ भारत अभियान तीन साल में ज़मीन पर कितना असर छोड़ पाया है, इसे कुछ रिपोर्ट से समझा जा सकता है। साथ ही ये भी समझा जा सकता है कि इस अभियान को पूरी तरह कामयाब बनाने की राह के अवरोध कौन से हैं?

1. प्रमाणित आंकड़े?

स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) के तहत अब तक 2,57,259 गांवों के खुले में शौच से मुक्त होने का दावा किया गया है। ये तय टारगेट का महज़ 43% है। हालांकि सरकारी वेबसाइट के मुताबिक इनमें से अभी तक सिर्फ 1,58,957 गांवों का ही आंकड़ा प्रमाणित हो पाया है।

वेबसाइट के मुताबिक स्वच्छ भारत मिशन (शहरी) में घरों के लिए 1।04 करोड़ शौचालय और 5।08 लाख सामुदायिक शौचालय बनाने का टारगेट है। घरों के लिए 30,74,229 शौचालय और 2,26,274 सामुदायिक शौचालय बनाए गए हैं। ये सभी आंकड़े अभी किसी स्वतंत्र या ग़ैर-सरकारी संस्था से प्रमाणित नहीं हैं।

विश्व बैंक ने इस अभियान के लिए 1.5 अरब डॉलर का कर्ज़ देने का दावा किया था लेकिन अभी तक इसकी पहली किस्त भी जारी नहीं की गई है। इसकी वजह यह है कि विश्व बैंक पहले किसी स्वतंत्र संस्था का सर्वे चाहता है, जिससे ये आंकड़े प्रमाणित हो सकें। लेकिन अब तक सरकार ने ऐसा कोई सर्वे नहीं कराया है।

2. क्या सभी शौचालय काम कर रहे हैं?


सेंटर फ़ॉर पॉलिसी रिसर्च ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि साल 2012 में 88 लाख शौचालय बेकार पड़े थे। उनमें से 99% अब भी ठीक नहीं कराए गए हैं। ऐसे सबसे ज़्यादा शौचालय उत्तर प्रदेश और तमिलनाडु में हैं।

नेशनल सैंपल सर्वे ऑर्गेनाइज़ेशन ने साल 2016 में आई अपनी रिपोर्ट में बताया था कि सिर्फ 42।5% ग्रामीण घरों के पास शौचालय के लिए पानी था। नेशनल फैमिली हैल्थ सर्वे (जनवरी 2015 से दिसंबर 2016) की रिपोर्ट के मुताबिक सिर्फ 51।6% लोगों ने शौचालय सुविधाओं को इस्तेमाल किया।

एक सर्वे के मुताबिक 47% लोगों ने बताया कि उन्हें खुले में शौच जाना ज़्यादा आसान और आरामदायक लगता है। जागरुकता के लिए भी स्वच्छ भारत मिशन में बजट रखा गया था लेकिन सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि किसी भी राज्य को अभी तक तय बजट का आधा भी नहीं मिला है।

3. बजट की किल्लत?

सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च की रिपोर्ट बताती है कि कई राज्यों को गाइडलाइंस के हिसाब से जितना पैसा जारी किया जाना था, उससे कम दिया गया। 18 जनवरी, 2017 तक राजस्थान को शहरी मिशन का 58% बजट दिया गया, वहीं असम को महज़ 6% मिला। उत्तर प्रदेश को शहरी मिशन में 15% तय बजट के बजाय 5% ही मिल पाया। स्वच्छता सर्वेक्षण 2017 में वाराणसी को छोड़कर उत्तर प्रदेश के बाकी सभी शहरों की रेटिंग 300 से कम है।

4. घर-घर से कचरा इकट्ठा करना

एक अनुमान के मुताबिक भारत में 1,57,478 टन कचरा हर रोज़ इकट्ठा होता है लेकिन सिर्फ 25.2% के निपटारे (ट्रीटमेंट एंड मैनेजमेंट) के लिए ही प्रबंध है। बाकी सारा कूड़ा खुले में पड़ा रहता है और प्रदूषण फैलाता रहता है। और दिल्ली के गाज़ीपुर में हुए हादसे जैसे ख़तरे भी पैदा करता है।

कचरे के प्रबंधन के लिए पहला कदम घर-घर से कूड़ा उठाना है लेकिन शहरों में अभी ये आंकड़ा सिर्फ 49% ही पहुंचा है। और बीते एक साल में इसमें महज़ 7% का ही सुधार आया है। कूड़ा प्रबंधन के लिए जो बजट रखा गया, वो राज्यों को 2016-17 में ही मिल पाया। इसकी वजह से शुरुआत धीमी रही। और गुजरात, असम, केरल जैसे राज्यों को इसके लिए अभी तक कोई पैसा नहीं दिया गया है।