केंद्र-राज्य की राजनीति में फंसे ब्लैक फंगस के लाचार मरीज, 48 घंटे से किसी अस्पताल में नहीं हैं जरूरी इंजेक्शन

कोरोना के बाद अब ब्लैक फंगस भी बड़ी परेशानी बनता नजर आ रहा हैं। कोरोना के आंकड़ों में कमी आने से अब बेड, ऑक्सीजन और दवाइयों की किल्लत खत्म हो गई। लेकिन ब्लैक फंगस के मरीज लगातार बढ़ रहे हैं और इसमें जरूरी इंजेक्शन लाइपोसोमल एम्फोटेरिसिन बी की शुरू से ही किल्लत रही हैं। केंद्र-राज्य की राजनीति में ब्लैक फंगस के लाचार मरीजोन को नुकसान हो रहा हैं। ब्लैक फंगस के 1400 मरीजों की जान सांसत में है। 48 घंटे यानी दो दिन से किसी अस्पताल को लाइपोसोमल एम्फोटेरिसिन बी का एक भी इंजेक्शन नहीं मिला है। ऐसे में जिन मरीजों को 24 घंटे में 8 डोज लगने थे उन्हें एक भी डोज नहीं लगा। इन मरीजों में संक्रमण का खतरा दिमाग तक फैलने की आशंका बढ़ गई है।

लाइपोसोमल एम्फोटेरिसिन बी की किल्लत एक महीने से चल रही है। सरकार और चिकित्सा विभाग इसकी पूर्ति नहीं करा पा रहे हैं। कहने को तो मामला केन्द्र पर डाला जा रहा है लेकिन राजस्थान सरकार कोई बड़ा दबाव नहीं बना पा रही है। राज्य स्तर पर मरीजों की संख्या को देखते हुए इंजेक्शन दिए जा रहे हैं। सवाल यह है कि क्या पिछले 48 घंटे (मंगलवार से बुधवार रात) तक अस्पतालों में ब्लैक फंगस के मरीज ही नहीं थे? और यदि थे तो उन्हें इंजेक्शन क्यों नहीं मिले? आरएमएससीएल के एमडी आलोक रंजन ने बताया कि केन्द्र सरकार से ही सप्लाई रुकी थी, इस कारण काफी परेशानी हुई। लेकिन लाइपोसोमल एम्फोटेरिसिन बी के विकल्प भी हैं, जो की दिए जा सकते हैं। बुधवार शाम को 1230 डोज मिली हैं, इन्हें वितरित की जाएंगी।

कई एक्सपर्ट्स का कहना है कि ब्लैक फंगस के मरीजों के लिए लाइपोसोमल एम्फोटेरिसिन बी के कई विकल्प बाजार में हैं और उन्हें दिया भी जा सकता है। इन दवाओं से इंफेक्शन को रोका जा सकता है लेकिन कई डॉक्टर्स का कहना है कि यदि विकल्प के रूप में दवा नहीं देने के दो कारण हैं। पहला यह कि यह इंफेक्शन को उस स्तर तक नहीं रोक पाता। दूसरा यह कि अन्य अंगों पर गंभीर प्रभाव डालता है। ऐसे में विकल्प भी उतने कारगर नहीं हैं। ऐसे में सिर्फ लाइपोसोमल एम्फोटेरिसिन बी ही दे सकते हैं।