सूरत हादसा : डॉक्टर ने कहा - 16 बच्चे ऐसे जले थे कि डीएनए के लिए बाल, हड्डी, नाखून तक नहीं मिले

सूरत के सरथाणा जकातनाका के तक्षशिला आर्केड में 24 मई को दोपहर 3:30 बजे आग लगी थी। इसमें 22 बच्चों समेत 23 लोगों की मौत हुई थी। इनमें से 16 जिंदा जल गए थे। तक्षशिला में आग लगी तब उनके रूम का दरवाजा बाहर से बंद था। इससे वे नहीं निकल सके। ऐसा बताया कि आग शॉर्ट सर्किट की वजह से लगी थी। घटना के समय 15 से 22 की उम्र के 60 छात्र-छात्राएं दूसरी और तीसरी मंजिल पर चलने वाली दो आर्ट-हॉबीज क्लासेज अटेंड कर रहे थे। स्मीमेर अस्पताल के डॉक्टर्स ने इनका 16 घंटे तक पोस्टमार्टम किया। इस काम में अस्पताल के 20 लोगों का स्टाफ लगा। उनका यह अनुभव बहुत भयावह था। 24 की रात को 8 बजे से 25 की दोपहर 12 बजे तक पोस्टमार्टम चला।

डॉक्टर ने बताया कि बच्चों के शरीर का हर अंग जल चुका था। ऐसा जला था कि हमें सैंपल नहीं मिल रहे थे। स्मीमेर मेडिकल कॉलेज के फॉरेंसिक मेडिसिन डिपार्टमेंट के एसोसिएट प्रो. डॉ. संदीप रालोटी ने बताया, उस रात 16 शवों का पोस्टमार्टम करना बहुत दर्दनाक था। डॉक्टरों को अपनी भावनाओं पर नियंत्रण करना मुश्किल हो रहा था। उनके करियर में इस तरह का मंजर कभी नहीं आया था। उनके लिए ऐसे बच्चों के शवों का पोस्टमार्टम करना बहुत बड़ी चुनौती थी। ऐसे शवों का पोस्टमार्टम कैसे किया जाए, समझ नहीं आ रहा था। हमारा काम है पोस्टमार्टम करना है, इसलिए हमारे लिए यह सिर्फ एक काम है, इसे हम उसी तरह लेते हैं, लेकिन तक्षशिला हादसे में जिंदा जले बच्चों के शवों की हालत देखकर हम सब अंदर से कांप गए थे। डॉ. ने आगे बताया इससे पहले भी कई बड़ी कैजुअलिटी हुई हैं। एक साथ कई शव आए हैं, लेकिन इतनी बड़ी संख्या में मासूम बच्चों के जले शव नहीं आए थे। बच्चों की पहचान तो दूर की बात, डीएनए के लिए सैंपल तक नहीं मिल रहे थे। इसलिए डीएनए जांच के लिए हमें उनके दांत के सैंपल लेने पड़े।