
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस अभय ओका ने बुधवार को वकीलों द्वारा काम का बहिष्कार करने की प्रथा की कड़ी निंदा की और इसे बहुत आपराधिक बताया। संविधान के 75 साल पूरे होने के उपलक्ष्य में सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स-ऑन-रिकॉर्ड एसोसिएशन (SCAORA) द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में बोलते हुए जस्टिस ओका ने इस बात पर जोर दिया कि इस तरह की हड़तालों का नागरिकों और न्यायपालिका पर बहुत बुरा असर पड़ता है।
न्यायमूर्ति ओका की यह टिप्पणी दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायाधीश यशवंत वर्मा के विवादास्पद स्थानांतरण को लेकर इलाहाबाद उच्च न्यायालय के वकीलों द्वारा घोषित हड़ताल के बीच आई है, जो अपने घर से बरामद नकदी को लेकर जांच के दायरे में हैं।
न्यायमूर्ति ओका ने वकीलों से अपनी जिम्मेदारियों पर विचार करने का आग्रह करते हुए कहा, कल्पना कीजिए कि 1,000 जमानत याचिकाएं हैं, 100 से 150 याचिकाएं ली जाएंगी और उन्हें जमानत मिल सकती है। यदि वकील काम से दूर रहेंगे, तो इन लोगों को बाद में जमानत मिल सकती है। इसके लिए कौन जिम्मेदार होगा?
ऐसी कार्रवाइयों के प्रभावों पर प्रकाश डालते हुए न्यायमूर्ति ओका ने कहा, भारत के किसी भी जिले में, प्रत्येक अदालत के पास 100 मामलों की सूची होती है, और इसलिए यदि वकील कार्यवाही का बहिष्कार करते हैं तो 1,000 मामलों में तारीखें दी जाएंगी। नागरिकों को होने वाले नुकसान और पूर्वाग्रह की कल्पना करें। इसका समाधान कैसे होगा?
न्यायमूर्ति ओका ने यह भी कहा, उस कानून को भूल जाइए जो कहता है कि अदालती काम से दूर रहना आपराधिक अवमानना है, अन्यथा यह बहुत आपराधिक है।
उन्होंने उपस्थित लोगों को डॉ. बीआर अंबेडकर की उस चेतावनी की भी याद दिलाई जो उन्होंने स्वतंत्र भारत में विरोध के असंवैधानिक तरीकों के खिलाफ कही थी। उन्होंने कहा कि अगर वकील किसी ऐसी चीज का सहारा लेते हैं जो पूरी तरह से असंवैधानिक है, तो उन्हें इसके परिणामों के बारे में सोचना चाहिए।