आज सुबह 11:30 बजे पृथ्वी के बेहद करीब से गुजरेगा शनि, खुली आंखों से दिखेगा ये अद्भुत नजारा

खगोल विज्ञान के लिए आज का दिन बेहद खास होने वाला है। दरअसल, आज सुबह 11:30 बजे शनि ग्रह पृथ्वी के बेहद नज़दीक होगा। जो हर किसी के लिए आकर्षण की वजह बनेगा। शनि एक ऐसा ग्रह है जिसके रहस्य हर कोई जानना चाहता है। तारामंडल में इस बार शनि से जुड़ी एक खगोलीय घटना होने जा रही है। जो हर किसी के लिए आकर्षण की वजह बनेगा। वैज्ञानिकों के मुताबिक आज सुबह 11:30 बजे पृथ्वी के सबसे करीब शनि ग्रह आएगा। इस अद्भुत नजारे को खुली आंखों से भी देखा जा सकता है। इस दौरान सूर्य की परिक्रमा करता हुआ शनि, पृथ्वी और सूर्य तीनों एक तरफ रहते हुए सीधी रेखा में होंगे। जिन जगहों पर भी रात होगी वहां, लोग शनि को नग्न आंखों से देख सकेंगे।

बताया जाता है कि शनि की यह स्थिति एक अगस्त से शुरू होगी और 2 अगस्त को भारतीय समयानुसार सुबह 11:30 बजे तक पीक पर पहुंच जाएगा।

पृथ्वी को सूर्य की परिक्रमा करने में लगभग 365 दिन लगते हैं जबकि शनि को सूर्य की एक पूर्ण परिक्रमा पूरी करने में लगभग 295 वर्ष लगते हैं। पठानी सामंत तारामंडल के उप निदेशक डॉक्टर सुवेंदु पटनायक ने समाचार एजेंसी ANI से बातचीत करते हुए कहा, ‘भारतीय समय के अनुसार, सुबह 11:30 बजे, शनि और पृथ्वी एक-दूसरे के सबसे करीब होंगे। भारत में ये दिन का समय होगा, लेकिन जहां भी रात होगी, वहां लोगों को एक चमकीला शनि दिखाई देगा।’

डॉक्टर सुवेंदु पटनायक ने बताया कि इसके बाद बृहस्पति आसमान में सबसे चमकीला ग्रह रह जाएगा और शनि की स्थिति बृहस्पति के पश्चिम में होगी। इसी दौरान आसमान में यह खगोलीय घटना होगी। हालांकि इसे देखने में मौसम की भी एक बड़ी भूमिका हो सकती है। वजह, बादल और बारिश के चलते आसमान साफ रहने की उम्मीद बेहद कम है।

बता दें कि हर साल एक बार पृथ्वी और शनि अपने कक्ष में घूमते हुए एक-दूसरे के करीब आते हैं। 1 वर्ष और 13 दिनों के समय में, वे एक-दूसरे के सबसे करीब आते हैं। इससे पहले 20 जुलाई, 2020 को दोनों ग्रह एक दूसरे के करीब आए थे। इसके बाद 14 अगस्त 2022 को एक बार फिर से ये नजारा दिखने को मिलेगा।

पिछले साल 21 दिसंबर को अंतरिक्ष में एक दुर्लभ खगोलीय घटना देखने को मिला था। ऐसा लग रहा था मानो बृहस्पति और शनि एक दूसरे में समा गए हों। वे एक ही चमकीले तारे की तरह दिखाई दे रहे थे, जिसे संयोजन कहा जाता है। ये घटना लगभग 400 वर्षों के बाद हुई और कोलकाता और पश्चिम बंगाल के अलग-अलग हिस्सों में दिखाई दे रही थी, हालांकि सर्दियों के कोहरे ने आंशिक रूप से दृश्य में बाधा डाली थी।