सरदार पटेल ने कहा था जरुरी है कश्मीर के लिए अनुच्छेद 370, दिया था ये तर्क

जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 और अनुच्छेद 35ए (Article 370 and Article 35A ) हटाए जाने के बाद राज्य को दो हिस्सों में बांट दिया गया है। जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 लागू करने के लिए पीछे पहले प्रधानमंत्री नेहरू को जिम्मेदार बताया जा रहा है और यह भी कहा जा रहा है कि सरदार पटेल इस पर सहमत नहीं थे, लेकिन अगर तथ्यों पर जाए तो वो कुछ और ही बयां कर रहे है।

एम.जे. अकबर की किताब 'कश्मीर बिहाइंड द वेल' और अशोक पांडेय की किताब 'कश्मीरनामा' के अनुसार 12 अक्टूबर 1949 को संविधान सभा में अनुच्छेद 370 पर तीखी बहस चल रही थी उस समय नेहरू देश से बाहर थे और सरदार पटेल ने इस पर चले बहस की जानकारी नेहरू को दी थी। खुद सरदार पटेल ने संविधान सभा में बहस के दौरान इस बारे में तर्क दिया था कि कश्मीर की विशेष समस्याओं को देखते हुए उसके लिए अनुच्छेद 370 जरूरी है। तीखी बहस के दौरान सरदार पटेल ने कहा था, 'उन विशेष समस्याओं को ध्यान में रखते हुए जिनका सामना जम्मू-कश्मीर की सरकार कर रही है, हमने केंद्र के साथ राज्य के संवैधानिक संबंधों को लेकर वर्तमान आधारों पर विशिष्ट व्यवस्था की है।'

भारत की संविधान सभा में जम्मू-कश्मीर राज्य के लिए चार सीटें रखी गई थीं। 16 जून 1949 को शेख अब्दुल्ला, मिर्जा अहमद अफजल बेग, मौलाना मोहम्मद सईद मसूदी और मोती राम बागड़ा संविधान सभा में शामिल हुए। अगले तीन महीनों तक कश्मीर के भारत से संबंधों से लेकर अनुच्छेद 370 (जिसे मसौदे में 306 ए कहा गया था) को लेकर गोपालस्वामी आयंगर, पटेल और शेख अब्दुल्ला तथा उनके साथियों के बीच तीखे-बहस मुबाहिसे चले।

कश्मीरनामा के अनुसार, 16 अक्टूबर को एक मसौदे पर सहमति बनी, लेकिन आयंगर ने बिना शेख को विश्वास में लिए इसकी उपधारा 1 के दूसरे बिंदु में परिवर्तन कर दिया और यही परिवर्तित रूप संविधान सभा में पास करा लिया गया। शेख अब्दुल्ला ने इस बदलाव पर आपत्त‍ि जताते हुए आयंकर को लेटर लिखा और संविधान सभा से इस्तीफे की धमकी दी।

18 अक्टूबर को शेख को लिखे एक जवाबी लेटर में आयंगर ने कहा कि यह बदलाव मामूली सा है। 3 नवंबर को नेहरू के अमेरिका से लौटने पर पटेल ने इसकी सूचना नेहरू को दी। अंतत: आयंकर द्वारा संशोधित 306 ए ही अनुच्छेद 370 के रूप में संविधान में शामिल हुआ। इस बदलाव की वजह से कश्मीर के किसी मुख्यमंत्री को बर्खास्त करना केंद्र सरकार के लिए संभव हो सका।

गौरतलब है कि कश्मीर को लेकर मोदी सरकार ने ऐतिहासिक फैसला किया है। सोमवार को गृहमंत्री अमित शाह ने सदन में अनुच्छेद 370 हटाने का संकल्प सदन में पेश किया। उन्होंने कहा कि कश्मीर में लागू धारा 370 में सिर्फ खंड-1 रहेगा, बाकी प्रावधानों को हटा दिया जाएगा। इसके अलावा नए प्रावधान में जम्मू कश्मीर पुनर्गठन का प्रस्ताव भी शामिल है। उसके तहत जम्मू कश्मीर अब केंद्र शासित प्रदेश होगा और लद्दाख को जम्मू-कश्मीर से अलग कर दिया गया है। उसे भी केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा दिया गया है। हालांकि वहां विधानसभा नहीं होगी। इस बिल के पास होते ही अब जम्मू-कश्मीर राज्य में पुड्डुचेरी की तर्ज पर विधानसभा होगी और उपराज्यपाल के अधीन मुख्यमंत्री रहेगा। वहीं लद्दाख केंद्र शासित प्रदेश की स्थिति चंडीगढ़ की तरह रहेगी, जहां विधानसभा नहीं होगी। लद्दाख के केंद्र शासित प्रदेश बनने के बाद सामरिक दृष्टि से अहम करगिल जिला केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर का हिस्सा नहीं रह जाएगा। जम्मू-कश्मीर राज्य पुनर्गठन विधेयक के प्रावधानों के मुताबिक करगिल और लेह जिले को मिलाकर लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश बनाया जाएगा। जम्मू-कश्मीर राज्य के बाकी बचे जिलों को मिलाकर जम्मू-कश्मीर केंद्र शासित राज्य बनाया जाएगा। रिपोर्ट के मुताबिक जम्मू-कश्मीर राज्य में कुल 22 जिले थे। करगिल जिला नियंत्रण रेखा के नजदीक स्थित है और पाक प्रशासित गिलगिट बाल्टिस्तान से घिरा हुआ है। करगिल जिला 1999 में भारत-पाकिस्तान के बीच हुई लड़ाई का पर्याय बन गया था। 1999 में करगिल युद्ध के दौरान पाकिस्तानी घुसपैठियों ने करगिल की चोटियों पर कब्जा कर लिया था। इस कब्जे को पाकिस्तान से मुक्त कराने के लिए भारत को भीषण रण करना पड़ा था। इस चोटी को पाकिस्तान के कब्जे से मुक्त कराने के बाद यहां पर तिरंगा फहराते भारतीय सैनिकों की तस्वीर करगिल की लड़ाई की पहचान बन गई थी।