क्या राजस्थान में भी दोहराई जा सकती है मध्य प्रदेश की कहानी?

राजस्थान की गहलोत सरकार पर खतरे के बादल मंडरा रहे है। दरअसल, मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने भाजपा पर अपनी सरकार गिराने की कोशिशों का आरोप लगाया है। विधायकों की खरीद-फरोख्त के लिए कांग्रेस विधायकों को 25 करोड़ रुपए देने के आरोप में दो लोगों को गिरफ्तार किया है लेकिन, इसके तुरंत बाद उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट की नाराजगी और समर्थक विधायकों के साथ सोनिया गांधी से मुलाकात की भी खबर आ गई। इन सबके बीच यह भी खबर आ रही है कि सचिन पायलट भाजपा नेताओं के संपर्क में हैं। उन्होंने 16 कांग्रेस और 3 निर्दलीय विधायकों के समर्थन का दावा किया है। उधर, भाजपा का कहना है कि पहले वह गहलोत सरकार गिराएं। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, भाजपा ने मुख्यमंत्री पद देने से इनकार कर दिया है।

इन सब सियासी उठापठक में यह बात सामने आ रही है कि भाजपा कांग्रेस के असंतुष्ट गुट के साथ मिलकर मध्य प्रदेश और कर्नाटक की कहानी राजस्थान में भी दोहरा सकती है?

दरअसल, मध्यप्रदेश और राजस्थान में विधानसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस पार्टी ने युवा चेहरों यानी मध्यप्रदेश में ज्योतिरादित्य और राजस्थान में सचिन पायलट को चेहरा बनाया था। लेकिन जैसे ही कांग्रेस के हाथ में इन दोनों राज्यों की सत्ता आई वैसे ही दोनों युवा नेताओं की उपेक्षा और नाराजगी की खबरें आईं। मध्य प्रदेश में जीत के बाद न तो सिंधिया को मुख्यमंत्री पद मिला और न ही प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद। हालाकि, राजस्थान में सचिन पायलट के हाथ में उपमुख्यमंत्री पद मिला लेकिन अक्सर गहलोत से उनकी खटपट की खबरें मीडिया में आती रहती हैं।

नतीजा क्या निकला मार्च में ज्योतिरादित्य ने भाजपा में शामिल हो गए। ऐसे में ज्योतिरादित्य के बीजेपी में शामिल होने के बाद यह कयास लगने लगे की उनके अच्छे दोस्त सचिन पायलट भी बीजेपी में शामिल हो सकते है। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि अगर गहलोत पर सरकार पर सियासी सर्जिकल स्ट्राइक होती है तो उसमें ज्योतिरादित्य की भूमिका को भी इंकार नहीं किया जा सकता है। क्योंकि, कमोबेश जो स्थिति कमलनाथ सरकार में ज्योतिरादित्य की थी। कुछ वैसी ही गहलोत सरकार में सचिन पायलट की है। बार-बार मुख्यमंत्री के साथ टकराव या अनबन की खबरें आती हैं।

समझे राजस्थान की सियासी गणित

अगर राजस्थान के सियासी आंकड़ों पर नजर डाले तो फ़िलहाल कांग्रेस के पास 107 विधायकों का समर्थन है। इसके अलावा सरकार को 13 निर्दलीय और एक राष्ट्रीय लोकदल के विधायक का भी समर्थन है यानी गहलोत सरकार के पास 121 विधायकों का समर्थन है और भाजपा के पास इस समय 72 विधायक हैं। 200 विधायकों वाली विधानसभा में फिलहाल कांग्रेस की स्थिति मजबूत दिखती है। वहीं, बीजेपी को बहुमत पाने के लिए 29 विधायक की और जरूरत है। ऐसे में अगर मान ले कि फिलहाल जो 13 विधायक गहलोत सरकार के साथ हैं, वह टूटकर भाजपा के साथ आ जाए तो भी आंकड़ा 85 तक ही पहुंचता है। इक्का-दुक्का और विधायकों को भी अपनी ओर करने के बाद भाजपा बहुमत के 101 के आंकड़े से दूर दिखती है। कांग्रेस के पास अपने दम पर बहुमत है। निर्दलीयों के अलग होने पर उस पर तुरंत कोई प्रभाव पड़ता नहीं दिखता। फिर भाजपा के बहुमत के आंकड़े तक पहुंचने के लिए जरूरी है कि कांग्रेस में टूट हो। कांग्रेस के पास 101 विधायक है और पार्टी में टूट के लिए दो तिहाई विधायक चाहिए। यानी दलबदल कानून के हिसाब से कांग्रेस में टूट के लिए 71 विधायक चाहिए जो संभव नहीं लगता। कांग्रेस के असंतुष्ट गुट के पास इतने विधायक नहीं हैं।

बता दे, कांग्रेस के दो तिहाई विधायक टूटना संभव नहीं दिखते और निर्दलीय विधायकों के समर्थन से बात नहीं बनती दिखती। अब गहलोत सरकार गिराने का वही तरीका दिखता है, जो मध्य प्रदेश में इस्तेमाल किया गया था। मध्य प्रदेश और राजस्थान में कांग्रेस की सियासत में समानता भी है। वहां ज्योतिरादित्य सिंधिया कमलनाथ सरकार से असंतुष्ट थे। राजस्थान में सचिन पायलट और गहलोत में तनातनी की खबरें आती रहती हैं।

पायलट के समर्थक में 24 विधायक

अगर मध्य प्रदेश की तर्ज पर कांग्रेस के कुछ विधायक विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे देते हैं और निर्दलीय भी कांग्रेस के बजाय भाजपा का समर्थन कर दें तो गहलोत सरकार अल्पमत में आ सकती है। चर्चा है कि सचिन पायलट के समर्थक 24 विधायक हैं। इनमें कुछ गुड़गांव-मानेसर के होटल में हैं। अगर मान लिया जाए कि सचिन पायलट की नाराजगी दूर नहीं होती है और उनके समर्थक सभी 24 विधायक इस्तीफा दे देते हैं। इससे कांग्रेस के विधायकों की संख्या 83 रह जाएगी। अब भी अगर कांग्रेस का समर्थन कर रहे निर्दलीय विधायक गहलोत के साथ बने रहते हैं तो उनकी सरकार बच सकती है। लेकिन, निर्दलीय विधायक आमतौर पर उसी के साथ जाते हैं, जिसकी सरकार बनती दिखती है। ऐसे में निर्दलीयों का साथ छोड़ने पर कांग्रेस सरकार सदन में बहुमत खो देगी। ऐसे में सचिन पायलट के 24 विधायक इस्तीफा दे देते हैं तो सदन में विधायकों की कुल संख्या 176 रह जाएगी और बहुमत साबित करने का आंकड़ा 101 से कम होकर 89 रह जाएगा। भाजपा के पास इस समय 72 विधायक हैं। अगर उसे 13 निर्दलीयों का भी समर्थन मिल जाए तो उसके समर्थक विधायकों की संख्या 85 तक पहुंच जाती है। आरएलडी और एकाध और विधायक का समर्थन जुटाकर भाजपा सरकार बनाने के करीब पहुंच जाएगी। हालांकि, इसमें विधानसभा अध्यक्ष और राज्यपाल की महती भूमिका होगी। मध्य प्रदेश और कर्नाटक में इसी फार्मूले पर काम कर भाजपा कांग्रेस की सरकारें पलट चुकी है।