सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव से हुए मतभेद के बाद कुंडा के बाहुबली विधायक राजा भैया एक बार फिर सुर्खियों में हैं। अब तक निर्दलीय चुनाव लड़ने वाले राजा भैया सवर्णों-पिछड़ों को गोलबंद कर नई पार्टी बनाने जा रहे हैं। जिसकी घोषणा नवरात्र के दौरान हो सकती है। सपा से रिश्ते खराब होने और भाजपा के तमाम बड़े नेताओं से नजदीकी होने के बाद भी योगी सरकार के मंत्रिमंडल में शामिल न होने के बाद राजा भैया के इस कदम को नए सियासी दांव के रूप में देखा जा रहा है।राजा भैया काफी दिनों से अपने लिए नई सियासी जमीन तलाश रहे थे। लंबे समय समर्थकों से बातचीत के बाद अब उन्होंने नई पार्टी बनाने का फैसला किया है। राजाभैया के करीबी एमएलसी अक्षय प्रताप सिंह गोपालजी और पीआरओ ज्ञानेंद्र सिंह ने बताया कि नई पार्टी के गठन पर विचार चल रहा है। जल्द ही कुछ फैसला लिया जा सकता है।
भाजपा और सपा सरकार में मंत्री रह चुके रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया लगातार आठवीं बार विधायक हैं। 1993 से वह कुंडा से निर्दलीय जीतते आ रहे हैं। 1997 में भाजपा की कल्याण सिंह की सरकार में वह पहली बार मंत्री बने थे। 2002 में बसपा सरकार में विधायक पूरन सिंह बुंदेला को धमकी देने के मामले में उन्हें जेल जाना पड़ा था। बाद में मुख्यमंत्री मायावती ने उन पर पोटा लगा दिया था। करीब 18 महीने वह जेल में रहे। 2003 में मुलायम सिंह ने मुख्यमंत्री बनने के बाद राजाभैया के ऊपर से पोटा हटा दिया और उन्हें अपने मंत्रिमंडल में शामिल किया, तब से वह लगातार सपा के साथ थे। अखिलेश सरकार में भी वह मंत्री बने रहे। इस बीच कुंडा में सीओ जियाउल हक की हत्या में नाम आने पर उन्होंने इस्तीफा दे दिया था।
सीबीआई जांच में बरी होने के बाद वह दोबारा मंत्री बने। 2017 के विधानसभा चुनाव से पहले सीएम अखिलेश यादव से उनके मनमुटाव की खबरें आई थीं। हालांकि मुलायम सिंह ने तब आगे आकर मामला संभाला था। 2017 में प्रदेश में भाजपा की सरकार बनने के बाद यह चर्चा तेज थी कि राजा भैया भाजपा में शामिल होने जा रहे हैं। राज्यसभा चुनाव के दौरान वोटिंग को लेकर सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव से रिश्तों में आई खटास के बाद इस कयास को और बल मिला, लेकिन राजा भैया भाजपा में शामिल नहीं हुए।
एससी-एसटी एक्ट को बनाएंगे सियासी मुद्दा नई पार्टी के गठन के बाद राजा भैया मोदी सरकार के एससी-एसटी एक्ट में सुप्रीम कोर्ट के संशोधन के फैसले को संसद में अध्यादेश लाकर पलटने को सियासी मुद्दा बना सकते हैं। राजा भैया से जुड़े सूत्रों ने बताया कि गैर दलित लोगों को लामबंद किया जाएगा। पिछड़ों और सवर्णों की खेमेबंदी के बाद नई पार्टी की घोषणा की जा सकती है। राजा भैया एससीएसटी एक्ट में बदलाव को लेकर सवर्णों में उपजे गुस्से को पूरी तरह से भुनाने की जुगत में हैं।
30 नवंबर को लखनऊ में दिखाएंगे ताकत नवरात्रि में नई पार्टी के गठन के बाद राजाभैया 30 नवंबर को लखनऊ में आयोजित कार्यक्रम में अपनी ताकत दिखाएंगे, जिसके लिए जोर-शोर से तैयारियां चल रही हैं। दरअसल, इसी दिन राजा भैया के राजनीति में 25 साल पूरे हो रहे हैं। सूत्रों के मुताबिक इसी बहाने राजा भैया अपना शक्ति प्रदर्शन करना चाहते हैं।
सीएम समेत भाजपा के कई बड़े नेताओं से नजदीकी रिश्तेपूर्व मंत्री राजा भैया के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, गृहमंत्री राजनाथ सिंह समेत कई बड़े नेताओं से करीबी रिश्ते हैं। योगी के मुख्यमंत्री बनने के बाद से वह लगातार उनके संपर्क में रहे। गृहमंत्री राजनाथ सिंह से भी उनकी नजदीकियां जगजाहिर हैं। इसके बाद भी वह भाजपा में शामिल नहीं हुए।
जोड़तोड़ की राजनीति के माहिर खिलाड़ी राजा भैया को जोड़तोड़ की सियासत का माहिर खिलाड़ी माना जाता है। 2003 में भाजपा-बसपा गठबंधन की सरकार के समय राजाभैया 37 विधायकों को लेकर अलग हो गए थे। उन्होंने मुलायम सिंह का समर्थन कर दिया था। माना जाता है कि सभी दलों के राजपूत विधायक राजा भैया को अपना नेता मानते हैं।
सोशल मीडिया पर समर्थकों ने दो महीने से छेड़ रखा था अभियान सोशल मीडिया पर राजा भैया के समर्थकों ने दो महीने से उनके पार्टी बनाने को लेकर अभियान छेड़ रखा था। लोगों से पूछा जा रहा था कि आखिर राजा भैया को क्या करना चाहिए। भाजपा में शामिल होना चाहिए, सपा के साथ रहना चाहिए या फिर अपनी पार्टी बनानी चाहिए। आखिर में राजाभैया के नई पार्टी बनाने के फैसले पर मुहर लगी।