जम्मू-कश्मीर में छह महीने का राज्यपाल शासन पूरा होने के बाद बुधवार मध्यरात्रि से राष्ट्रपति शासन लागू हो गया। अब केन्द्रीय कैबिनेट को आतंकवाद से ग्रस्त इस राज्य के बारे में तमाम नीतिगत फैसले लेने का मार्ग प्रशस्त हो जाएगा। महबूबा मुफ्ती नीत गठबंधन सरकार से जून में भाजपा की समर्थन वापसी के बाद जम्मू-मश्मीर में राजनीतिक संकट बना हुआ है। राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद ने एक अधिघोषणा पर हस्ताक्षर कर वहां केन्द्रीय शासन का मार्ग प्रशस्त कर दिया। उल्लेखनीय है कि राज्यपाल सत्यपाल मलिक द्वार राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू करने की सिफारिश संबंधित रिपोर्ट केंद्र सरकार को भेजी थी। इस रिपोर्ट पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने सोमवार को फैसला लिया। इस घोषणा के बाद राज्य विधानसभा की सभी शक्तियां संसद के अधीन हो जाएंगी। चूंकि राज्य का एक अलग संविधान है, ऐसे मामलों में जम्मू-कश्मीर संविधान के अनुच्छेद 92 के तहत छह महीने तक राज्यपाल शासन अनिवार्य होती हैं, इस अवधि के दौरान सभी विधायी शक्तियां राज्यपाल के अधिन होती हैं।
बुधवार को गजट में जारी अधिसूचना में कहा गया है कि राष्ट्रपति को राज्यपाल सत्यपाल मलिक से एक रिपोर्ट मिली है और इस पर तथा दूसरी सूचना पर विचार कर वह ‘‘संतुष्ट’’ हैं कि राज्य में राष्ट्रपति शासन की जरूरत है।
राज्य में चुनाव होना चाहिए : वहीं, जम्मू-कश्मीर में राष्ट्रपति शासन लागू किए जाने के आदेश पर फारूक अब्दुल्ला ने कहा कि राज्य में चुनाव होना चाहिए। मीडिया से बात करते हुए राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा, 'मुझे लगता है कि राज्य में गवर्नर और राष्ट्रपति का शासन खत्म होना चाहिए। यहां चुनाव होना चाहिए, ताकि राज्य के लोग अपना प्रतिनिधि चुन सकें, जो काम कर सकते हैं।' जम्मू-कश्मीर में राज्यपाल शासन के छह महीने मंगलवार को पूरे हो गए हैं।
राज्य संविधान के मुताबिक, राज्यपाल शासन छह महीने से ज्यादा समय तक लागू नहीं रखा जा सकता। अगर इस अवधि के बाद भी सरकार का गठन नहीं होने पर राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू किया जाता है। ऐसे हालात में राज्यपाल, राष्ट्रपति और केंद्र सरकार के प्रतिनिधि के रूप में सरकार के गठन तक राज्य का संचालन करेंगे। बता दें कि महबूबा मुफ्ती नीत गठबंधन सरकार से जून में बीजेपी की समर्थन वापसी के बाद जम्मू-कश्मीर में राजनीतिक संकट बना हुआ है।
गौरतलब है कि कांग्रेस और नेशनल कान्फ्रेंस के समर्थन के आधार पर पीडीपी ने जम्मू-कश्मीर में सरकार बनाने का दावा पेश किया था, जिसके बाद राज्यपाल ने 21 नवंबर को 87 सदस्यीय विधानसभा भंग कर दी थी।
तत्कालीन विधानसभा में दो सदस्यों वाली सज्जाद लोन की पीपुल्स कान्फ्रेंस ने भी तब भाजपा के 25 सदस्यों और अन्य 18 सदस्यों की मदद से सरकार बनाने का दावा पेश किया था। बहरहाल राज्यपाल ने यह कहते हुए विधानसभा भंग कर दी कि इससे विधायकों की खरीदो फरोख्त होगी और स्थिर सरकार नहीं बन पाएगी। अगर राज्य में चुनावों की घोषणा नहीं की गई तो वहां राष्ट्रपति शासन अगले छह महीने तक चलेगा।