PM मोदी को कभी था एक्‍टिंग का जबरदस्‍त शौक, खुद लिखते थे नाटक की स्क्रिप्ट

पिछले 6 सालों से दुनियाभर में सबसे लोकप्रिय प्रधानमंत्री बने नरेंद्र मोदी आज यानी 17 सितंबर को अपना 69वां जन्मदिन मना रहे हैं। पीएम मोदी के जन्मदिन के मौके पर देशभर से उन्हें शुभकामनाएं मिल रही हैं। पीएम मोदी अपने जन्मदिन के मौके पर आज अपने गृहनगर गुजरात में हैं। वह गांधीनगर के रायसण इलाके में अपने छोटे भाई पंकज के घर जाकर अपनी मां से मिलेंगे। पीएम मोदी के जन्मदिन पर पूरे गुजरात में नर्मदा महोत्सव मनाया जा रहा है। वैसे तो उनकी जिंदगी खुली किताब की तरह है। लेकिन कुछ ऐसी बातें भी हैं जिन्हें लोग कम जानते हैं। ये बहुत कम ही लोग जानते हैं कि उन्‍हें स्‍कूल के दिनों में नाटक और एक्‍टिंग में दिलचस्‍पी थी। उनकी इस बात की तस्‍दीक उनके ऊपर लिखी किताब में ‘The man of the moment: Narendra Modi by MV Kamath and kalindi Randeri’ में मिलती है। इसके अलावा पीएम मोदी की लिखी हुई किताब ‘Exam Warriors’ में भी उन्‍होंने खुद इस बात का जिक्र किया है। बता दें, ये किताब उस वक्त लिखी गई थी जब वह भारत के प्रधानमंत्री नहीं बने थे, लेकिन देश के बेहतरीन राजनीतिक नेता के रूप में उभर रहे थे।

एग्जाम वॉरियर्स (Exam Warriors) किताब के एक चैप्टर में लिखा है कि कैसे मोदी स्कूल प्ले के लिए रिहर्सल को याद करते हैं। किताब में लिखा कि मुझे एक स्‍पेशल डॉयलाग देना था लेकिन मैं इसके लिए संघर्ष कर रहा था। इस वजह से नाटक के निर्देशक बेताब हो उठे। उन्‍होंने कहा कि अगर मैं इसी तरह से संवाद करता रहा तो वे मुझे निर्देशित नहीं कर पाएंगे। PM मोदी ने आगे लिखा, ये देखकर मुझे बहुत बुरा लगा। अगले दिन मैंने उनसे अपनी तरह ये सीन करने को कहा, जब निर्देशक ने वो सीन किया तो मुझे कुछ सेकेंड में ही समझ आया कि मैं कहां गलत था।

नाटक करके स्कूल के लिए जुटाए थे पैसे

बता दें, मोदी 13-14 साल के थे जब उन्होंने वडनगर में अपने स्कूल के लिए फंड जमा करने के लिए नाटक किया था। स्कूल की कंपाउंड की दीवार कई जगहों पर टूट गई थी और स्कूल के पास इसकी मरम्मत के लिए फंड नहीं था। जिसके बाद सभी बच्चों ने मिलकर नाटक करने के बारे में सोचा।

जिसके बाद मोदी और उनके दोस्तों की टोली ने फैसला कर लिया था कि वह अपने स्कूल के पैसे जुटाएंगे और नाटक करेंगे। ये नाटक मोदी ने लिखा था। जिसका उन्होंने डायरेक्शन भी किया और नाटक में एक्टिंग भी की।

मोदी का ये नाटक गुजराती में था। जिसका नाम था 'पीलू फूल'। इसका शाब्दिक अर्थ है पीले फूल। नाटक का विषय अस्पृश्यता एक सदियों पुरानी प्रथा थी। बता दें, अस्पृश्यता की प्रथा को अनुच्छेद 17 के अंतर्गत एक दंडनीय अपराध घोषित कर किया गया है। अस्पृश्यता को अपराध घोषित करने का पहला कानून 1955 में संसद द्वारा पारित किया गया था, लेकिन जब यह नाटक लागू हुआ (1963-64), तब भी समाज में अस्पृश्यता गहरी जड़ थी।

मोदी के नाटक 'पीलू फूल' में, एक गांव में एक दलित महिला अपने बेटे के साथ रहती है। बेटा बीमार पड़ जाता है और मां उसे वैद्य (पारंपरिक चिकित्सक), डॉक्टर और तांत्रिक के पास ले जाती है लेकिन सभी बच्चे को देखने से इनकार कर देते हैं क्योंकि दोनों अछूत हैं।

किसी ने महिला को सुझाव दिया कि अगर वह गांव के मंदिर में देवताओं को चढ़ाए गए पीले फूल को उसका बेटा छू लेता है को उसकी बीमारी से ठीक हो जाएगी। महिला मंदिर की ओर में भागती है लेकिन दलित होने की वजह से उसे मंदिर में प्रवेश करने की अनुमति नहीं है। पुजारी उस पर चिल्लाता है। महिला उस पुजारी के सामने एक पीले फूल के लिए रोती- गिड़गिड़ाती है ताकि वह अपने बेटे की जान बचा सके। जिसके बाद पुजारी, अंत में उसे एक फूल देने के लिए मान जाता है। मोदी का ये नाटक एक संदेश के साथ समाप्त होता है कि हर कोई भगवान और सभी को मंदिरों में देवताओं को चढ़ाए गए फूलों पर समान अधिकार रखता है। ऐसा कहा जाता है कि मोदी का नाटक एक वास्तविक घटना से प्रेरित था जिसमें उन्होंने वडनगर में एक पुजारी को एक दलित महिला को मंदिर से दूर भागते देखा था।