किस्त डिफॉल्ट होने पर लगता था जुर्माना, रिजर्व ने लगायी लगाम, 30 जून तक जारी होंगे नए नियम

नई दिल्ली। रिजर्व बैंक ने लोन की किस्तों में डिफॉल्ट होने पर बैंकों व वित्तीय संस्थानों द्वारा वसूले जाने वाले मनमाने चार्ज पर लगाम लगा दिया है। पहले यह बदलाव नए साल की पहली तारीख से होने वाला था। अब ग्राहकों को इस राहत के लिए अप्रैल और जून 2024 का इंतजार करना होगा।

बंद हो जाएगी बैंकों की मनमानी

लोन के मामले में ग्राहकों से किस्तें चुकाने में डिफॉल्ट हो जाने पर बैंक व एनबीएफसी के द्वारा मनमाना शुल्क और ब्याज आदि वसूले जाने के कई मामले सामने आ रहे थे। इन मामलों को देखते हुए नियामक रिजर्व बैंक ने दखल करते हुए मनमानी पर लगाम लगाने का रास्ता तैयार किया। अब रिजर्व बैंक ने डिफॉल्ट के मामले में वसूले जाने वाले चार्ज को लेकर स्थिति पूरी तरह से साफ कर दी है, जिससे ग्राहकों को बड़ा फायदा होने वाला है।

जनवरी से ही होने वाला था बदलाव

पहले यह बदलाव नए साल की शुरुआत से यानी जनवरी 2024 की पहली तारीख से लागू होने वाला था। अब ग्राहकों को इसके लिए कुछ दिनों का इंतजार करना होगा। रिजर्व बैंक ने इसके लिए डेडलाइन को बढ़ाने की जानकारी दी है। अब बैंकों और एनबीएफसी को कहा गया है कि वे नए लोन के लिए नई व्यवस्था पर एक अप्रैल से अमल करें। वहीं पुराने लोन के मामले में उन्हें हर हाल में नई व्यवस्था पर 30 जून 2024 से पहले अमल करने को कहा है।



सर्कुलर ने साफ कर दिया मामला

डिफॉल्ट के मामले में वसूले जाने वाले चार्ज को लेकर रिजर्व बैंक ने सबसे पहले अगस्त 2023 में सर्कुलर जारी कर स्थिति को साफ किया था। उसमें रिजर्व बैंक ने बताया था कि बैंक व एनबीएफसी आदि किस तरह से लेवी वसूल कर सकते हैं। रिजर्व बैंक का कहना है कि कर्ज की किस्तों के भुगतान में डिफॉल्ट होने पर पीनल इंटेरेस्ट या पीनल चार्जेज वसूल करने के पीछे उद्देश्य ये था कि लोगों में क्रेडिट को लेकर डिसिप्लिन पैदा हो।

दंड में नहीं भरना पड़ेगा ब्याज

अब रिजर्व बैंक ने साफ किया है कि डिफॉल्ट होने पर बैंक जो पीनल इंटेरेस्ट यानी दंडात्मक ब्याज वसूल करते हैं, उसे बंद करना होगा। अब लेवी को सिर्फ पीनल चार्जेज कहा जाएगा यानी डिफॉल्ट होने पर अब ब्याज के रूप में पेनल्टी नहीं लगेगी। इससे ग्राहकों को फायदा होगा कि ब्याज के रूप में पेनल्टी होने से दंडात्मक जुर्माना कंपाउंड नहीं होगा, यानी दंड पर चक्रवृद्धि का भुगतान नहीं करना होगा। इससे बैंकों की मनमानी बंद होगी, जो कई मामलों में कर्ज के मूल ब्याज से कई गुना ज्यादा दंडात्मक ब्याज वसूल लेते थे।