'एक देश-एक चुनाव' : पहले भी 4 बार हो चुके हैं एकसाथ मतदान, एक नजर पक्ष और विपक्ष की दलीलों पर

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आज देश में लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराये जाने (एक देश एक चुनाव) के लिए सभी दलों के अध्यक्षों की बैठक बुलाई है। प्रधानमंत्री इस मीटिंग में पहुंच चुके हैं और उनके साथ कई राजनीतिक दलों के अध्यक्ष भी पहुंच चुके हैं। हालाकि, कुछ ही राजनीतिक पार्टियां एक देश एक चुनाव के पक्ष में हैं। ज्यादातर राजनीतिक दलों ने इसका विरोध किया है। ये तो तय है कि जब तक इस पर सहमति नहीं बनती, इसे धरातल पर उतारना मुश्किल होगा। हालांकि, पंचायत और नगरपालिकाओं के चुनावों को इसमें शामिल करने की बात नहीं है।

आखिर क्यों जरुरी है देश में एकसाथ चुनाव

लोकतंत्र की पहली सीढ़ी ही चुनाव है। लेकिन भारत जैसे बड़े देश में एक बार साफ और निष्पक्ष चुनाव कराना एक बड़ी चुनौती है। देश में औसतन हर साल किसी न किसी राज्य में चुनाव होता रहता है। लगातार चुनाव होते रहने के कारण देश हमेशा इलेक्शन मोड पर रहता है। इस वजह से प्रशासनिक और नीतिगत फैसले प्रभावित होते हैं। साथ ही, देश पर भारी आर्थिक बोझ भी पड़ता है। इसे रोकने के लिए लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराने का विचार लाया गया है।

स्वीडन और इंडोनेशिया में एकसाथ होते हैं चुनाव

स्वीडन में पिछले साल सितंबर में आम चुनाव, काउंटी और नगर निगम के चुनाव एकसाथ कराए गए थे। इंडोनेशिया, दक्षिण अफ्रीका, जर्मनी, स्पेन, हंगरी, स्लोवेनिया, अल्बानिया, पोलैंड, बेल्जियम भी एक बार चुनाव कराने की परंपरा है।

देश में पहले भी चार बार हो चुके हैं एकसाथ चुनाव

एक देश एक चुनाव नया नहीं है। साल 1952, 1957, 1962, 1967 में एकसाथ लोकसभा और विधानसभा के चुनाव हो चुके हैं। लेकिन ये सिलसिला 1968-69 में तब टूट गया, जब कुछ राज्यों की विधानसभाएं वक्त से पहले ही भंग हो गईं। हालांकि, कुछ जानकार कहते हैं कि देश की आबादी बहुत ज्यादा बढ़ गई है, इसलिए एकसाथ चुनाव कराना संभव नहीं है। वहीं, ये तर्क भी सामने आता है कि देश की आबादी के साथ ही टेक्नोलॉजी और संसाधनों का भी विकास हुआ है। इसलिए एक साथ चुनाव हो सकते हैं।

एक देश एक चुनाव के पक्ष में दी जाने वाली दलीलें

- बार-बार आदर्श आचार संहिता लागू नहीं करनी पड़ेगी। नीतिगत फैसले लिए जा सकेंगे। विकास कार्य प्रभावित नहीं होंगे। नए प्रोजेक्ट्स की घोषणा कम समय के लिए ही रुकेगी। इसके साथ ही बार-बार होने वाले चुनावी खर्चों में भी कमी आयेगी। बार-बार चुनाव कराने से देश की आर्थिक स्थिति बिगड़ती है। सरकारी खजाने पर अतिरिक्त बोझ नहीं पड़ेगा।

- कालेधन पर भी लगेगी रोक क्योंकि चुनाव के दौरान कालेधन का इस्तेमाल खुलेआम होता है।

- बार-बार चुनाव कराने से राजनेताओं और पार्टियों को सामाजिक एकता और शांति को भंग करने का मौका मिल जाता है। बेवजह तनाव का माहौल बनता है।

- एक साथ चुनाव कराने से सरकारी कर्मचारियों और सुरक्षा बलों को बार-बार चुनावी ड्यूटी पर लगाने की जरूरत नहीं पड़ेगी। इससे वे अपने तय काम को सही से पूरा कर पाएंगे।

एक देश एक चुनाव के विरोध में दिए जाने वाले तर्क

- संविधान में लोकसभा और विधानसभा चुनावों को लेकर पांच साल की अवधि तय है। संविधान की ओर से लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराने को लेकर कोई निश्चित प्रावधान का जिक्र नहीं है। इसी आधार पर यह तर्क दिया जा रहा है कि एक साथ चुनाव मूल भावना के खिलाफ है।

- एक देश एक चुनाव खुद में महंगी प्रक्रिया है। विधि आयोग की माने तो 4,500 करोड़ रु। के नए ईवीएम 2019 में ही खरीदने पड़ते अगर एक साथ चुनाव होते। 2024 में एकसाथ चुनाव कराने के लिए 1751.17 करोड़ सिर्फ ईवीएम पर खर्च करने पड़ेंगे।

- केंद्र सरकार के पास राज्य सरकारों को आर्टिकल 356 के तहत भंग करने का अधिकार है। इस अधिकार के होते हुए एक साथ चुनाव नहीं कराए जा सकते।

- लोकसभा और विधानसभाओं का चुनाव एक साथ कराने पर कुछ विधानसभाओं के खिलाफ उनके कार्यकाल को बढ़ाया या घटाया जाएगा, इससे राज्यों की स्वायत्तता प्रभावित होगी।

- एकसाथ चुनाव होने पर ज्यादा संभावना है कि राष्ट्रीय मुद्दों के सामने क्षेत्रीय मुद्दे छोटे हो जाएं या इसका उलटा हो जाए। राष्ट्रीय पार्टियों का क्षेत्र विस्तृत होता जाएगा और क्षेत्रीय पार्टियों का दायरा इससे कम होगा।


क्या है आज की बैठक का एजेंडा

बैठक के एजेंडे में पहला मुद्दा संसद के दोनों सदनों में कामकाज को बढ़ाने का है। दूसरा मुद्दा ‘एक देश एक चुनाव’ है। एजेंडे में तीसरे स्थान पर आजादी के 75 साल पूरे होने पर नये भारत के निर्माण की कार्ययोजना और चौथे स्थान पर 150वीं गांधी जयंती के आयोजन की रूपरेखा शामिल किया है। बैठक के एजेंडे का पांचवां मुद्दा विकास की दौड़ में शामिल किए गये चुनिंदा ‘आकांक्षी जिलों’ में विकास कार्यो पर चर्चा शामिल है।

बैठक के पांच सूत्री एजेंडे में ‘एक देश एक चुनाव’ और राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की 150वीं जयंती के अलावा संसद के दोनों सदनों में कामकाज का स्तर बढ़ाने, आजादी की 75वें सालगिरह पर नया भारत बनाने की कार्ययोजना और विकास की दौड़ में शामिल चुनिंदा जिलों में विकास कार्यों की समीक्षा शामिल है। इस पर सभी राजनीतिक दलों से विचार विमर्श करने के लिये प्रधानमंत्री ने ये बैठक बुलाई है।