ISIS के झंडे और ओसामा बिन लादेन की फोटो रखने मात्र से कोई आतंकी नहीं हो सकता

नई दिल्ली। दिल्ली हाईकोर्ट ने यूएपीए मामले में सोमवार को एक आरोपी को जमानत देते हुए कहा कि मोबाइल में आतंकी ओसामा बिन लादेन की फोटो या जिहादी प्रचार और ISIS झंडे रखने मात्र से यह नहीं कहा जा सकता कि वह प्रतिबंधित संगठन का सदस्य बनकर गैरकानूनी गतिविधियों में लिप्त है। कोर्ट ने कहा कि ऐसी सामग्री इंटरनेट पर सहज उपलब्ध है।

कोई ओसामा बिन लादेन की तस्वीर रखता है और आईएसआईएस के झंडे उसके पास पाए जाते हैं तो सिर्फ इसी आधार पर उसके खिलाफ UAPA के तहत ऐक्शन नहीं हो सकता। दिल्ली हाई कोर्ट ने एक केस की सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की है। आतंकवादी गतिविधियों में शामिल पाए जाने पर UAPA यानी गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम के तहत केस दर्ज किया जाता है। अदालत ने एनआईए बनाम अम्मर अब्दुल रहमान के केस की सुनवाई के दौरान कहा कि ऐसी सामग्री मिलने भर से किसी को आतंकवादी नहीं कहा जा सकता। महज इसके आधार पर ही इतना कहना ठीक नहीं होगा कि वह व्यक्ति इस्लामिक स्टेट जैसे आतंकी संगठन से जुड़ा है।

जस्टिस सुरेश कुमार कैत और जस्टिस मनोज जैन की बेंच ने कहा कि तस्वीरों, वीडियो से यह जानकारी तो मिल सकती है कि संबंधित व्यक्ति के दिमाग में क्या चल रहा है। लेकिन इससे यह साबित नहीं होता कि वह व्यक्ति इस्लामिक स्टेट जैसे आतंकी संगठन से जुड़ा है या उसके लिए काम करता है। अदालत ने टिप्पणी की, 'सिर्फ इस आधार पर अपील करने वाले व्यक्ति को आतंकवादी नहीं कहा जा सकता कि उसके मोबाइल से ओसामा बिन लादेन की तस्वीरें मिली हैं। जिहाद को प्रमोट करने वाली सामग्री मिली है। इसके अलावा इस्लामिक स्टेट का झंडा भी पाया गया। इसके अलावा कट्टरपंथियों के भाषणों को भी इसका आधार नहीं माना जा सकता।'



अदालत ने कहा कि आज के इंटरनेट के युग में ऐसी सामग्री किसी को भी आसानी से उपलब्ध हो जा रही है। यदि कोई व्यक्ति ऐसी चीजों को मोबाइल में डाउनलोड कर लेता है तो महज इस आधार पर ही उसे इस्लामिक स्टेट जैसे खूंखार आतंकी संगठन से जुड़ा नहीं माना जा सकता। बेंच ने कहा, 'कोई भी जानने की इच्छा रखने वाला व्यक्ति ऐसी चीजों को डाउनलोड कर सकता है। ऐसा करना अपराध तो नहीं है। हां यह कह सकते हैं कि यदि कोई इस तरह की चीजों को पढ़ता है तो इससे उसकी मानसिक दशा का पता चलता है। लेकिन इसे अपराध नहीं माना जा सकता। इस मामले में आरोपी जमानत का हकदार है।'

बेंच ने कहा कि इस मामले में यह साबित नहीं होता है कि आरोपी ने ऐसी चीजों को पढ़ने के बाद किसी और से साझा किया हो। उसने सोशल मीडिया अकाउंट पर शेयर किया हो। अदालत ने कहा कि ऐसी स्थिति में उसे आतंकवादी संगठन से जुड़ा हुआ कहना ठीक नहीं है। हमें ऐसी भी कोई चीज नहीं मिली है, जिससे यह साबित होता हो कि उसने किसी आतंकी संगठन की मदद की है।