PM मोदी के बचपन के वो किस्से जो सबसे ज्यादा चर्चित

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) के 69वें जन्मदिन (Narendra Modi Birthday) पर उन्हें देशभर से बधाइयों का सिलसिला जारी है। सोशल मीडिया पर पीएम मोदी का बर्थडे ट्रेंड कर रहा है। बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह से लेकर तमाम केंद्रीय मंत्री, बीजेपी नेता-कार्यकर्ता और विपक्षी दलों के नेताओं ने पीएम को बधाई दी है। बचपन से लेकर इस उम्र तक उनकी जिन्दगी के तमाम अनुभव लोगों को बहुत कुछ सिखा रहे हैं। लेकिन, इन किस्सों में सबसे खास हैं उनके बचपन के ये कुछ खास किस्से जो सबसे ज्यादा चर्चित है। आइए जानें, क्या हैं ये चर्चित किस्से...

मगरमच्छ के बच्चे को पकड़ा

नरेंद्र मोदी के बचपन को लेकर छपी बाल नरेंद्र के अनुसार वो अपने बचपन के दोस्त के साथ शर्मिष्ठा सरोवर गए थे। यहां से वो एक मगरमच्छ के बच्चे को पकड़ लाए। उनकी मां हीरा बा ने देखा तो बहुत नाराज हुईं और उनसे कहा कि इसे वापस छोड़कर आओ। बच्चे को कोई मां से अलग करता है तो दोनों को ही परेशानी होती है। मां की बात सुनकर वो बच्चे को वापस छोड़ आए।

गरीबी को करीब से देखा, बेची चाय

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का जन्म 17 सितंबर 1950 को गुजरात के वडनगर में हुआ था। वो अपने पांच भाई-बहनों में तीसरे नंबर पर थे। उनके पिता वडनगर रेलवे स्टेशन पर चाय बेचने का काम करते थे। नरेंद्र मोदी अपने पिता के काम में बराबर हाथ बंटाते थे। स्कूल से पढ़ाई पूरी करके वो स्टेशन पर चाय बेचते थे। ट्रेन आती तो उसमें घुसकर भीतर भी चाय बेचते।

पंक्षी के लिए खंभे पर चढ़ गए

PM मोदी के बारे में ये किस्सा भी प्रचलित है कि वो स्कूली दिनों में एक एनसीसी कैंप में गए थे। वहां अचानक उन्होंने एक खंभे पर पंछी को फंसा हुआ देखा। कैंप में निकलने की मनाही थी। लेकिन वो बिना सोचे समझे उसके ऊपर चढ़ गए। उनके टीचर गोवर्धनभाई पटेल ने देखा कि मोदी खंभे पर चढ़ गए तो वो क्रोधित हो गए। फिर, जब उनकी नज़र इस बात पर पड़ी कि एक फंसे हुए पक्षी को निकालने के लिए नरेंद्र खंभे पर चढ़े हैं तो उनका गुस्सा खत्म हो गया।

स्कूल की चारदीवारी का किस्सा

नरेंद्र मोदी का उनकी हाईस्कूल की पढ़ाई के दौरान का किस्सा काफी फेमस है। स्कूल का रजत जयंती वर्ष आने वाला था और स्कूल में चारदीवारी नहीं थी। जिसके बाद सभी बच्चों ने मिलकर नाटक करने के बारे में सोचा। जिसके बाद मोदी और उनके दोस्तों की टोली ने फैसला कर लिया था कि वह अपने स्कूल के पैसे जुटाएंगे और नाटक करेंगे। ये नाटक मोदी ने लिखा था। जिसका उन्होंने डायरेक्शन भी किया और नाटक में एक्टिंग भी की।

मोदी का ये नाटक गुजराती में था। जिसका नाम था 'पीलू फूल'। इसका शाब्दिक अर्थ है पीले फूल। नाटक का विषय अस्पृश्यता एक सदियों पुरानी प्रथा थी। बता दें, अस्पृश्यता की प्रथा को अनुच्छेद 17 के अंतर्गत एक दंडनीय अपराध घोषित कर किया गया है। अस्पृश्यता को अपराध घोषित करने का पहला कानून 1955 में संसद द्वारा पारित किया गया था, लेकिन जब यह नाटक लागू हुआ (1963-64), तब भी समाज में अस्पृश्यता गहरी जड़ थी।

मोदी के नाटक 'पीलू फूल' में, एक गांव में एक दलित महिला अपने बेटे के साथ रहती है। बेटा बीमार पड़ जाता है और मां उसे वैद्य (पारंपरिक चिकित्सक), डॉक्टर और तांत्रिक के पास ले जाती है लेकिन सभी बच्चे को देखने से इनकार कर देते हैं क्योंकि दोनों अछूत हैं। किसी ने महिला को सुझाव दिया कि अगर वह गांव के मंदिर में देवताओं को चढ़ाए गए पीले फूल को उसका बेटा छू लेता है को उसकी बीमारी से ठीक हो जाएगी। महिला मंदिर की ओर में भागती है लेकिन दलित होने की वजह से उसे मंदिर में प्रवेश करने की अनुमति नहीं है। पुजारी उस पर चिल्लाता है। महिला उस पुजारी के सामने एक पीले फूल के लिए रोती- गिड़गिड़ाती है ताकि वह अपने बेटे की जान बचा सके। जिसके बाद पुजारी, अंत में उसे एक फूल देने के लिए मान जाता है। मोदी का ये नाटक एक संदेश के साथ समाप्त होता है कि हर कोई भगवान और सभी को मंदिरों में देवताओं को चढ़ाए गए फूलों पर समान अधिकार रखता है। ऐसा कहा जाता है कि मोदी का नाटक एक वास्तविक घटना से प्रेरित था जिसमें उन्होंने वडनगर में एक पुजारी को एक दलित महिला को मंदिर से दूर भागते देखा था।

जूतों की कहानी

प्रधानमंत्री मोदी से जुड़ी एक कहानी ये भी है कि उनके मामा ने उन्हें सफेद कैनवस के जूते खरीद कर दिए थे। घर में नये जूते खरीदने के पैसे नहीं थे। जब नये जूते मिल गए तो उन्हें साफ रखने की जद्दोजेहद शुरू हो गई। उनके पास पॉलिश खरीदने के पैसे नहीं थे। ऐसे में उन्होंने एक अलग तरीका निकाला, और स्कूल में बची हुई चाक लेकर घर आने लगे। इसी चाक को पानी में भिगोकर वो पॉलिश बना लेते और वही लेप जूतों पर लगा देते।

प्रधानमंत्री मोदी के कहे वो वाक्य जो हर स्टूडेंट के लिए है खास

- यदि शिक्षा में लक्ष्य नहीं है, तो यह आपके कमरे की दीवार पर लटकाए गए प्रमाण पत्र से अधिक कुछ नहीं है। शिक्षा केवल पुस्तकों से नहीं आ सकती। शिक्षा का मकसद इंसान के समग्र व्यक्तित्व का संतुलित विकास करना है। हर इंसान अपने जीवन में किसी न किसी मकसद से पैदा होता है और शिक्षा इस मकसद को पूरा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

- अपने अंदर के छात्र को कभी मरने न दें। अगर हमारे अंदर का छात्र हमेशा जीवित है, तो यह हमें जीने की ताकत देता है।

- आने वाला दशक समाज के उन लोगों का है जो हाशिए पर हैं। युवाओं में अद्भुत क्षमता है और यही वो ताकत है जो राष्ट्र में बदलाव लाएगी।

- हमें हमेशा एक सपना देखना चाहिए, लेकिन एक व्यक्ति को हमेशा कुछ बनने के बजाय कुछ करने का सपना देखना चाहिए। मैं युवाओं से अनुरोध करना चाहता हूं कि जब आप ये तय करते हैं कि क्या बनना है तो आप एक कैदी बन जाते हैं। इसलिए आपको बस कुछ करने की इच्छा रखनी चाहिए, स्वतंत्रता का आनंद लें। यही आपको एक उद्देश्य देगा।

- अगर आप किसी विषय पर फोकस करना चाहते हैं तो आपको सबसे पहले डी-फोकस करना सीखना होगा। ध्यान केंद्रित करना महत्वपूर्ण है। मनोरंजन के लिए प्रकृति के संपर्क में आना और खेलना बहुत महत्वपूर्ण है।