बड़े भाई की मौत ने बदल दी थी हेमंत सोरेन की जिंदगी, 2005 में रखा था राजनीति में कदम

झारखंड विधानसभा चुनाव परिणामों के रुझान को देखते हुए राज्य की सत्ता से भाजपा की विदाई तय हो गई है और झारखंड मुक्ति मोर्चा गठबंधन (महागठबंधन) नई सरकार बनाती दिख रही है। पांच साल तक सत्ता चलाने वाली भारतीय जनता पार्टी की हार के साथ प्रादेशिक सत्ता के शीर्ष पर एक बार फिर गैर बीजेपी दल का कब्जा हुआ है। चुनाव परिणाम की घोषणा के साथ ही झारखंड मुक्ति मोर्चा के कद्दावर नेता और शिबू सोरेन के बेटे हेमंत सोरेन अब प्रदेश के नए मुख्यमंत्री बनने को तैयार हैं। हेमंत सोरेन ने हाल के चुनाव परिणामों को झारखंड के लिए एक ऐतिहासिक निर्णय बताया है और यह भी कहा है कि चुनाव के परिणामों ने उन्हें नया संकल्प लेने का मौका दिया है। ऐसे में यह जानना जरूरी है कि हेमंत सोरेन ने आखिरकार बीजेपी के गढ़ में कैसे सेंध लगा दी।

आपको बता दे, ऐसा पहली बार नहीं होगा जब हेमंत सोरेन के सिर सत्ता का ताज सजेगा। हेमंत सोरेन इससे पहले भी साल 2013 में राज्य के पांचवें सीएम बन चुके हैं। हालांकि वो बहुत दिनों तक इस पद पर नहीं रह पाए थे। मगढ़ जिले के नेमरा गांव में शिबू सोरेन और रूपी के घर 10 अगस्त, 1975 को पैदा हुए हेमंत सोरेन ने 2005 और 2009 के विधानसभा चुनाव में अपना नामांकन दाखिल करते वक्त बताया था कि उन्होंने इंटर तक पढ़ाई की है। जानकारी के मुताबिक उन्होंने 12 की परीक्षा पास करने के बाद इंजीनियरिंग के लिए बीआईटी मेसरा में एडमिशन लिया था लेकिन वो अपनी डिग्री पूरी नहीं कर पाए और परिस्थितियां ऐसी बनी की उन्हें राजनीति में आना पड़ा। 2005 में विधानसभा चुनावों के साथ उन्होंने चुनावी राजनीति में कदम रखा जब वह दुमका सीट से मैदान में उतरे हैं। हालांकि, उन्हें पार्टी के बागी नेता स्टीफन मरांडी से हार झेलनी पड़ी।

हेमंत सोरेन राजनीति में तो कई सालों से सक्रिय थे लेकिन उनकी जिंगदी में बदलाव उस वक्त आया जब साल 2009 में उनके बड़े भाई दुर्गा सोरेन की मौत हो गई। दुर्गा की मौत के बाद पार्टी की पूरी जिंदगी हेमंत सोरेन पर आ गई क्योंकि पिता शिबू सोरेन अस्वस्थ्य रहने लगे और बढ़ती उम्र ने भी उन्हें राजनीति से किनारा करने के लिए बाध्य कर दिया। उनकी मौत से पहले दुर्गा सोरेन को ही पिता का राजनीति उत्तराधिकारी माना जा रहा था।

राज्य सभा के सांसद के तौर पर वह 24 जून, 2009 से लेकर 4 जनवरी, 2010 के बीच संसद पहुंचे। सितंबर में वह बीजेपी/जेएमएम/जेडीयू/एजेएसयू गठबंधन की अर्जुन मुंडा सरकार में झारखंड के उपमुख्यमंत्री बने। इससे पहले वह 2013 में राज्य के सबसे कम उम्र के मुख्यमंत्री बने और दिसंबर 2014 तक इस पद पर रहे।

हेमंत सोरेन बीते विधानसभा चुनाव की तरह ही इस बार भी दो सीटों से चुनावी मैदान में उतरे हैं। हेमंत सोरेन ने 2014 के चुनावी रण में बरहेट और दुमका सीट से किस्मत आजमाई थी। एक सीट से हार मिली थी, लेकिन दूसरी सीट बरहेट के मतदाताओं ने सोरेन को विजयश्री दिलाकर विधानसभा भेजा और सोरेन विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष बने। बीजेपी ने इस बार सोरेन की उन्हीं के गढ़ में तगड़ी घेरेबंदी की और दुमका के साथ ही बरहेट में भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चुनावी जनसभाओं को संबोधित किया था। हालांकि बीजेपी को इसका फायदा मिलता नहीं दिख रहा है।

चुनाव प्रचार के दौरान उन्होंने आदिवासियों से जुड़े कानून में प्रस्तावित संशोधन का विरोध किया और 70,000 से ज्यादा अस्थायी शिक्षकों का नियमन करने का समर्थन किया। उन्होंने रघुबर दास सरकार पर खुदरा शराब बिक्री और सरकारी स्कूलों के विलय को लेकर निशाना साधा। बिहार के सीएम नीतीश कुमार की तरह ही हेमंत सोरेन भी शराबबंदी के पक्षधर हैं। बता दें कि बिहार में शराबबंदी के बाद झारखंड के सीमाई क्षेत्र में शराब की बिक्री में जबरदस्त इजाफा हुआ है जिससे वो काफी चिंतित हैं। उन्होंने एक बार कहा था कि राज्य में शराबबंदी के लिए पहले महिलाओं को आगे आना होगा और उन्हें इसका खुलकर विरोध करना होगा।