भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 377 को रद्द करने की मांग पर मंगलवार को पांच न्यायाधीशों की संवैधानिक पीठ ने सुनवाई शुरू कर दी है। सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच तय करेगी की समलैंगिकता अपराध है या नहीं। इस बीच बीजेपी के सीनियर नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने होमोसेक्सुअल का खुलकर विरोध किया है। स्वामी ने मंगलवार को समाचार एजेंसी एएनआई से बातचीत के दौरान कहा कि समलैंगिक होना सामान्य बात नहीं, बल्कि ये हिंदुत्व के खिलाफ है और इसके इलाज के लिए मेडिकल रिसर्च की जरूरत है।
उन्होंने कहा, "यह (समलैंगिकता) कोई सामान्य बात नहीं है। हम इसका जश्न नहीं मना सकते। स्वामी ने कहा कि होमोसेक्सुअल हिंदुत्व के खिलाफ है और ये भारतीय समाज के लिए सामान्य बात नहीं है, हम इसकी सराहना नहीं कर सकते। अगर यह ठीक हो सकता है तो हमें मेडिकल रिसर्च में निवेश करना चाहिए। केंद्र सरकार को 7 या 9 न्यायाधीशों की बेंच रखने पर विचार करना चाहिए।"
बता दें कि भाजपा नेता ने समलैंगिकता पर मंगलवार को पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ की होने वाली सुनवाई को स्थगित करने से सुप्रीम कोर्ट के इनकार के बाद यह बता कही है। केंद्र सरकार ने इस मामले की सुनवाई स्थगित का अनुरोध किया था।
दरअसल, सहमति से दो वयस्कों के बीच शारीरिक संबंधों को फिर से अपराध की श्रेणी में शामिल करने के शीर्ष अदालत के फैसले को कई याचिकाएं दाखिल करके चुनौती दी गई है। लेकिन मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने सुनवाई टालने से इनकार कर दिया। केंद्र सरकार ने समलैंगिक संबंधों पर जनहित याचिकाओं पर जवाब दाखिल करने के लिए वक्त देने का अनुरोध किया था।
पीठ ने कहा कि इसे स्थगित नहीं किया जाएगा। नए सिरे से पुनर्गठित पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ को मंगलवार से चार महत्वपूर्ण विषयों पर सुनवाई शुरू करनी है, जिनमें समलैंगिकों के बीच शारीरिक संबंधों का मुद्दा भी है। इस संविधान पीठ में प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा के साथ न्यायमूर्ति आर एफ नरिमन, न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर, न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति इंदु मल्होत्रा शामिल हैं।