कुछ अध्ययनों में पाया गया है कि कोरोना वायरस का संक्रमण ठंड के मौसम में अधिक असर कर सकता है, जबकि गर्म और आर्द्रता वाले वातावरण में इसमें कमी आने के आसार हैं। इस संबंध में एक चीनी शोध भी इसी नतीजे पर पहुंचा है। इन निष्कर्षों के पीछे वजह इस बात को बताया जा रहा है कि छींकने या खांसने के कारण जो ड्रॉपलेट्स संक्रमित मरीज से बाहर निकलते हैं, वे ठंड के मौसम में अधिक मजबूत व एयरबॉर्न (हवा के जरिये फैलने वाला) होते हैं, जो लोगों को तेजी के साथ चपेट में ले सकते हैं, क्योंकि इस दौरान उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता भी कमजोर होती है। इसके पीछे एक और संभावित कारण यह बताया जा रहा है कि यह वायरस गर्म सतह पर अधिक तेजी के साथ समाप्त होने लगता है, क्योंकि इसका ऊपरी सतह वसा से निर्मित होता है, जो बाहरी वातावरण से इसे बचाने में अहम भूमिका निभाता है और वसा से निर्मित यही ऊपरी सतह गर्म सतह पर तेजी से नष्ट हो जाता है।
इन तर्कों के सामने आने के बाद कुछ भारतीय गर्मी की शुरुआत के लिए प्रार्थना कर रहे हैं। लेकिन उनकी यह उम्मीद धराशायी हो सकती है, क्योंकि मौसम विभाग के पूर्वानुमानों से पता चला है कि गर्मियों की शुरुआत की संभावना अभी कम है।
मौसम विभाग के अनुसार, भारत के अधिकांश हिस्सों में अगले दो सप्ताहों में तापमान सामान्य से कम रहने की संभावना है। अगले 28 दिनों के पूर्वानुमान से पता चलता है कि अप्रैल के दूसरे सप्ताह तक मध्य भारत में भी पारा 40 डिग्री सेल्सियस तक पहुंचने की संभावना कम है। बता दें कि उत्तर की तुलना में दक्षिण और मध्य भारत में गर्मी पहले आती है, क्योंकि ये क्षेत्र भूमध्य रेखा के करीब हैं।
आईएमडी के प्रमुख मृत्युंजय महापात्र ने बताया कि उत्तर और मध्य भारत के कई हिस्सों में अगले दो-तीन दिनों में पश्चिमी हवाओं के साथ बारिश होने की संभावना है। यही नहीं, अगले सप्ताह भी उत्तर भारत में (विशेष रूप से हिमालय के क्षेत्र में) बारिश होने की उम्मीद है। महापात्र का कहना है कि अगले दो सप्ताह में भारत के अधिकांश हिस्सों में तापमान में उल्लेखनीय वृद्धि होने की उम्मीद कम है।
बता दे, कोरोना वायरस पूरी दुनिया पर कहर बनकर टूटा है। इस वायरस की वजह से 23 हजार से ज्यादा लोगों की जान जा चुकी है। जबकि 5 लाख से अधिक लोग इससे संक्रमित हुए है।