28 सितम्बर 1907 को जन्मे भगत सिंह देश की आजादी के लिए लड़ते हुए 23 मार्च 1931 को अपने साथियों के साथ फांसी के फंदे पर झूल गए। माना जाता था कि गांधीजी उनके पक्षधर नहीं थे क्योंकि उन्होंने हिंसा का मार्ग अपनाया था और गांधीजी अहिंसा के पुजारी थे। लेकिन उनको फांसी दिये जाने के बाद गांधीजी ने भगतसिंह औं उनके साथियों की शहादत पर कुछ कथन कहे थे। आज हम आपको गांधीजी के उन्हीं कथनों के बारे में बताने जा रहे हैं। महात्मा गांधी ने कहा था कि ‘भगत सिंह और उनके साथियों के शहीद होने से लाखों व्यक्ति दुखी हैं। मैं उनकी लगन की भूरि-भूरी प्रशंसा करता हूं।
मैं देश के नवयुवकों को इस बात की चेतावनी देता हूं कि वे उनके पथ का अवलंबन न करें। हमें भरसक उनके अभूतपूर्व त्याग, अदम्य उत्साह और विकट साहस का अनुकरण करना चाहिए, परंतु उन गुणों का उपयोग उनकी तरह न करना चाहिए। देश की स्वतंत्रता हिंसा और हत्या से प्राप्त न होगी’।
महात्मा गांधी के ये बयान छपे 1931 में इलाहाबाद से प्रकाशित होने वाले अखबार ‘भविष्य’ में। अंग्रेज सरकार फांसी की खबरों वाले अखबारों के प्रसार को रोकना चाहती थी। कई अखबारों की हजारों प्रतियां अभियान चला कर जब्त कर ली गईं, लेकिन अलीगढ़ के श्याम बिहारी लाल ने ‘भविष्य’ अखबार की उस समय की प्रतियां अपने पास रख लीं जो भविष्य में राष्ट्रीय आंदोलन के इतिहास को बयां करने का दस्तावेज बनीं।
श्याम बिहारी लाल गुप्तचर स्वतंत्रता सेनानी थे। 2005 में श्याम बिहारी लाल की मौत के बाद आईटीआई रोड स्थित इंडस्ट्रियल एस्टेट में रहने वाले इनके बेटे निरंजन लाल ने इन्हें बहुत ही हिफाजत से सहेजा। सन 1931 के इन अखबारों की सुर्खियों से पता चलता है कि जमाने ने भगत सिंह की फांसी की खबर को किस अंदाज में जाना होगा। उस समय की खबरों से पता चलता है कि अंग्रेजी हुकूमत भगत सिंह की फांसी की खबर को दबाना चाहती थी।