2 अक्टूबर विशेष : अपने साथ पूरे देशवासियों के बारे में भी सोचते थे गांधीजी, जानें यह प्रेरणात्मक कहानी

पोरबंदर में जन्में महात्मा गांधी की आज जन्मतिथि हैं और इसी उपलक्ष्य में पूरे देश में आज गांधी जयंती मनाई जा रही हैं। गांधी जी के मन में देशप्रेम और देशवासियों के प्रति प्रेम भावना हमेशा से बनी रही हैं। आज इस खास मौके पर हम आपको गांधीजी के जीवन का एक ऐसा किस्सा बताने जा रहे हैं जो उनकी अपने साथ पूरे देशवासियों को साथ लेकर चलने की सोच को दर्शाता हैं। तो आइये जानते हैं गांधीजी से जुडी इस प्रेरणात्मक कहानी के बारे में।

गांधीजी को बच्चों के साथ हंसने-खेलने में बड़ा आनंद आता था। एक बार वे छोटे बच्चों के विद्यालय गए। उन्होंने बच्चों से विनोद करना प्रारंभ कर दिया। दूर बैठा एक छोटा विद्यार्थी बीच में कुछ बोल उठा। इस पर शिक्षक ने उसे घूर कर देखा, तो बच्चा सहम कर चुप हो गया। गांधीजी यह सब देख रहे थे। वे उठे और उस बालक के पास जाकर खड़े हो गए।

बोले 'बेटा तुम मुझे बुला रहे थे न? बोलो क्या कहना है? घबराना मत'।

बालक- 'आप कुर्ता क्यों नहीं पहनते? मैं अपनी मां से कहूंगा कि आपके लिए एक कुर्ता सिल दें। आप मेरी मां का सिला हुआ कुर्ता पहनेंगे ना?'

गांधीजी- 'जरूर पहनूंगा, लेकिन मेरी एक शर्त हैं। मैं अकेला नहीं हूं।'

बालक- 'तो आप कितने आदमी हो? मां से मैं दो कुर्ते सिलने को कहूंगा'।

गांधीजी- 'मेरे तो 40 करोड़ भाई-बंद हैं। उन सबके तन कुरते से ढंकें, तभी मैं कुर्ता पहन सकता हूं। तुम्हारी मां 40 करोड़ कुर्ते सी देगी क्या?'

बालक के मुंह से कोई शब्द नहीं निकला। वह सोचने लगा इतने कुर्ते मां कहां से देगी?

गांधीजी ने उसके मन-भावो को समझ लिया प्यार से बालक की पीठ थपथपाई और हंसते-हंसते कक्षा से बाहर आ गए।