नहीं रहे उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री एनडी तिवारी, दिल्ली के मैक्स में ली आखिरी सांस

नारायण दत्‍त तिवारी का 93 वर्ष की उम्र में गुरुवार को निधन हो गया। वे लंबे समय से बीमार चल रहे थे और दिल्‍ली के साकेत स्थित मैक्‍स अस्‍पताल में उन्‍होंने आखिरी सांस ली। एनडी के निधन से राजनीति पार्टियों में शोक की लहर दौड़ गई। उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के मुख्यमंत्री रहे एनडी तिवारी को ब्रेन स्ट्रोक आने के कारण 29 सितंबर 2017 से दिल्ली के साकेत स्थित मैक्स अस्पताल में भर्ती थे। पिछले छह महीने से उनकी हालत काफी नाजुक थी। इस दौरान कई बार उनके निधन की खबरें भी आईं। लेकिन आज अपने 92वां जन्मदिन के मौके पर उन्होंने आखिरी सांस ली। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने ट्वीट कर उनके प्रति अपनी संवेदनाएं व्यक्त की और उनके निधन को राजनीतिक जगत की बड़ी क्षति बताया। कभी कांग्रेस के कद्दावर नेता रहे नारायण दत्त तिवारी के नाम एक ऐसा रिकॉर्ड है जो शायद ही टूटे। वो दो राज्यों के मुख्यमंत्री का पद संभाल चुके हैं। उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड।

अपने लंबे चौड़े पॉलिटिकल करियर के बावजूद आज नारायण दत्त तिवारी का नाम उनके और उनके बेटे रोहित शेखर के बीच चली कानूनी लड़ाई के लिए ही लिया जाता है। जब लंबे वक्त तक वो रोहित को अपना बेटा मानने से इनकार करते रहे तो अदालत में लंबी लड़ाई चली। दांव-पेंच दिखाए गए। तब जाकर तिवारी ने रोहित शेखर को अपना बेटा माना।

अब उत्तराखंड में चुनाव के शोर के बीच बेटे रोहित शेखर के लिए नारायण दत्त तिवारी ने अपने सियासी सिद्धांतों में फेरबदल किया और बीजेपी के खेमे में आ गए। नारायण दत्त तिवारी का ये कदम एक मजाक के सिवा कुछ नहीं। जनता की यादों में उस नेता की छवि लंबे वक्त तक रहती है जो ऊंचे सियासी शिखर से धरातल पर गिरता है। उत्तराखंड के कुमाऊं इलाके के लोग नारायण दत्त तिवारी को नीची धोती वाले ब्राह्मण के तौर पर जानते हैं। वो अपने दौर के बड़े नेताओं की जमात में गिने जाते थे। वी पी सिंह, अटल बिहारी वाजपेयी, जॉर्ज फर्नांडिस, पी वी नरसिम्हाराव और लालकृष्ण आडवाणी की बराबरी के नेता माने जाते थे।

आज चंद्रबाबू नायडू, नरेंद्र मोदी और नीतीश कुमार खुद को विकासवादी नेता के तौर पर पेश कर रहे हैं। मगर वर्षों पहले नारायण दत्त तिवारी ने विकास पुरुष के तौर पर अपनी छवि बनायी थी और शोहरत हासिल की थी। यानी वो वास्तविक 'विकासवादी नेता' हैं। जिन्होंने यूपी के विकास को नई दशा-दिशा दी।

मिसाल के तौर पर ये तिवारी ही थे, जिन्होंने न्यू ओखला इंडस्ट्रियल डेवेलपमेंट अथॉरिटी (नोएडा) की कल्पना की और उसकी स्थापना की। उस वक्त वो यूपी के मुख्यमंत्री हुआ करते थे। आज नोएडा, यूपी का सबसे ज्यादा राजस्व देने वाला जिला है। नोएडा की तरह ही यूपी के कई इलाकों में औद्योगिक क्षेत्र बसाए गए ताकि तरक्की को रफ्तार दी जा सके।

छोटे और मझोले कारोबारियों को मदद के जरिए उन्होंने यूपी के आर्थिक विकास में बड़ा योगदान दिया। इसी तरह यूपी और उत्तराखंड के मुख्यमंत्री के तौर पर नारायण दत्त तिवारी का कार्यकाल अगर शानदार नहीं भी रहा तो काफी अच्छा रहा था।

हालांकि उनकी जिंदगी के कुछ पहलू ऐसे भी हैं जिनसे लोग अनजान हैं। बहुत से लोगों को नहीं मालूम होगा कि तिवारी, मशहूर ब्रिटिश अर्थशास्त्री हैरॉल्ड जोसेफ लास्की के चेले थे। लास्की के आर्थिक सिद्धांतों से प्रभावित तिवारी ने उस सिद्धांत का तालमेल नेहरू के समाजवाद के साथ बिठाने की कोशिश की। तभी उन्होंने कांग्रेस ज्वाइन की।

नेहरू उन्हें पसद करते थे। वो इंदिरा गांधी के विश्वासपात्र थे। संजय गांधी के दौर में वो उनकी टीम के खास सदस्यों में गिने जाते थे, जो सरकार चला रहे थे। लेकिन उनके मीठे बर्ताव की वजह से तमाम विरोधी नेता भी उन्हें पसंद करते थे। उनकी वाजपेयी और वीपी सिंह समेत तमाम विरोधी नेताओं से खूब पटती थी।

1989 में जब वीपी सिंह ने राजीव गांधी के खिलाफ बगावत की और विश्व हिंदू परिषद ने राम मंदिर आंदोलन छेड़ा, उस वक्त तिवारी यूपी के मुख्यमंत्री थे। उनके राज में ही अयोध्या में राम मंदिर का शिला पूजन हुआ। नारायण दत्त तिवारी इसके खिलाफ थे। एक बार मुझे दिये इंटरव्यू में तिवारी ने बताया था कि राजीव गांधी और उस वक्त के गृह मंत्री बूटा सिंह के दबाव में वो इसकी इजाजत देने को राजी हुए थे।

राजीव गांधी की हत्या के वक्त नारायण दत्त तिवारी और नरसिम्हा राव, कांग्रेस के दो सबसे बड़े नेता थे। हालांकि राव कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए थे, मगर ये माना जा रहा था कि कांग्रेस की जीत की स्थिति में तिवारी ही प्रधानमंत्री पद के दावेदार होंगे। जब चुनाव के नतीजे आए तो नियति ने उन्हें धोखा दे दिया। वो नैनीताल सीट से चुनाव हार गए हालांकि वो विधानसभा चुनाव जीत गए थे। नरसिम्हा राव प्रधानमंत्री बन गए।

जब बुधवार को बेटे रोहित शेखर को टिकट दिलाने के लिए वो बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह से मिले, तो वो एक कद्दावर नेता कम एक कॉमेडी किरदार ज्यादा नजर आ रहे थे। अपनी जिंदगी के आखिरी दौर में वो एक बार फिर सियासी डगर में गलत दिशा पर खड़े दिख रहे थे। वो ऐसे असहाय इंसान मालूम होते हैं जिनका तमाम लोग अपने अपने हित के हिसाब से इस्तेमाल कर रहे हैं।

तिवारी का इतिहास शानदार रहा है। मगर उनका वर्तमान और भविष्य मजाक का विषय बन गया है। एनडी तिवारी की प्रासंगिकता इस बात में है कि वो आज के सियासी चलन की मिसाल बन गए हैं। जहां राजनीतिक हितों के लिए एक बीमार, एक बुजुर्ग का शोषण करने में भी किसी को शर्म नहीं आती।