साल 1971 के युद्ध में भारत ने पाकिस्तान को करारी शिकस्त दी, जिसके बाद पूर्वी पाकिस्तान आजाद हो गया, जो आज बांग्लादेश के नाम से जाना जाता है। देश भर में 16 दिसंबर का दिन ”विजय दिवस (Vijay Diwas)” के रूप में मनाया जाता है। इस युद्ध में 3900 भारतीय सैनिक शहीद हो गए थे और 9851 सैनिक घायल हुए थे। लेकिन सैनिकों के शौर्य का ही परिणाम था कि 93 हजार पाकिस्तानी सैनिकों ने आत्मसमर्पण किया था। जिस तरह से पाकिस्तानी लेफ्टिनेंट जनरल एके नियाजी ने 93000 सैनिकों के साथ भारतीय सेना के कमांडर ले. जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा के सामने आत्मसमर्पण कर दिया था। इस घटना से हर भारतीय का सिर गर्व से उठ जाता है।
आइए सेना के उन अफसरों-जवानों के बारे में जानते हैं, जिन्होंने इस युद्ध में जीत दिलाने के लिए बड़ी भूमिका निभाई थी।
सेनाध्यक्ष सैम मानेकशॉ3 अप्रैल, 1914 को जन्में सैम मानेकशॉ का पूरा नाम शाहजी होर्मूसजी फ्रेमजी जमशेदजी मानेकशॉ था। उनका जन्म एक पारसी परिवार में हुआ था। जानकारी के मुताबिक पहले उनका परिवार गुजरात के वलसाड शहर में रहता था, लेकिन बाद में पंजाब शिफ्ट हो गया। मानेकशॉ ने अपनी शुरुआती पढ़ाई अमृतसर से की, बाद में वे नैनीताल के शेरवुड कॉलेज में दाखिल हो गए। 1971 के भारत-पाक युद्ध के दौरान सैम ने मुख्य भूमिका निभाई थी। उनके ही नेतृत्व में भारत ने पाकिस्तान को बुरी तरह से पराजित किया था।
जनरल जगजीत सिंह अरोड़ाजनरल जगजीत सिंह अरोड़ा का जन्म 13 फरवरी 1916 में झेलम जिले के काला गुजराँ में हुआ था जो अब पाकिस्तान में है। 01 जनवरी, 1939 को उन्हें 2 पजांब रेजीमेंट की 5 बटालियन में कमीशन मिला था। बाद में उन्होंने आईएमए में 1 पैरा की कमान संभाली और क्वेटा के स्टाफ कॉलेज में पाकिस्तान के राष्ट्रपति, जनरल याहया खां उनके सहपाठी थे। जगजीत सिंह अरोड़ा भारतीय सेना के कमांडर थे। कहा जाता है कि 1971 के भारत-पाक युद्ध के दौरान उन्होंने सेना की छोटी-छोटी टुकड़ियों के सहारे ही इस युद्ध में जीत का पताका फहराया। 30 हजार पाकिस्तानी सैनिकों की तुलना में उनके पास चार हजार सैनिकों की फौज ही ढाका के बाहर थी। सेना की दूसरी टुकड़ियों को बुला लिया गया था, लेकिन उनके पहुंचने में देर हो रही थी। इस बीच लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह ढाका में पाकिस्तान के सेनानायक लेफ्टिनेंट जनरल नियाजी से मिलने पहुंचे गए और उन्होंने इस तरह दबाव डाला कि उसने आत्मसमर्पण कर दिया। इसके बाद पूरी पाकिस्तानी सेना ने आत्मसमर्पण कर दिया।
मेजर होशियार सिंहमेजर होशियार सिंह ने अपने जज्बे से पाकिस्तानी सेना को पराजित करने में बड़ी भूमिका निभाई। उन्हें जम्मू कश्मीर के दूसरी तरफ शकरगढ़ के पसारी क्षेत्र में जिम्मेदारी दी गई थी। उन्होंने अपने शौर्य का प्रदर्शन करते हुए जरवाल का मोर्चा फतह किया था। 1971 के भारत पाकिस्तान युद्ध ने भारत के दो बहादुर सिपाहियों को परमवीर चक्र का हकदार बनाया। एक तो पूना हॉर्स के सेकेण्ड लेफ्टिनेंट अरुण खेत्रपाल जिन्होंने अपने प्राण गँवा कर सबसे कम उम्र के परमवीर चक्र विजेता का सम्मान प्राप्त किया, दूसरे मेजर होशियार सिंह जिन्होंने 3 ग्रेनेडियर्स की अगुवाई करते हुए अपना अद्भुत पराक्रम दिखाया और दुश्मन को पराजय का मुँह देखना पड़ा। उन्होंने जम्मू कश्मीर की दूसरी ओर, शकरगड़ के पसारी क्षेत्र में जरवाल का मोर्चा फ़तह किया था।
लेफ्टिनेंट अरुण खेत्रपाललेफ्टिनेंट अरुण खेत्रपाल परमवीर चक्र पाने वाले भारतीय जांबाजों में से एक थे. उन्हें यह सम्मान सन 1971 में मरणोपरांत मिला। उन्होंने अपने युद्ध कौशल और पराक्रम के दम पर दुश्मनों को एक इंच आगे बढ़ने नहीं दिया था और उन्हें हार के साथ पीछे ढ़केल दिया था। वह सबसे कम उम्र में मरणोपरांत परमवीर चक्र पाने भारतीय जांबाजों में एक हैं।
लांस नायक अलबर्ट एक्काएक तरफ भारतीय जवान पाकिस्तानी सैनिकों को पीछे ढ़केल रहे थे तो दूसरी तरफ सेना के जवान बटालियन में तैनात दूसरे जवानों की रक्षा कर रहे थे। अल्बर्ट एक्का ने अदम्य साहस का परिचय देते हुए अपनी बटालियन के सैनिकों की रक्षा की थी। इस दौरान वह गंभीर रूप से घायल हो गए थे और अस्पताल में उनका निधन हो गया। सरकार ने उन्हें मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया।