Diwali 2020: इस साल ग्रीन पटाखों के संग सेलिब्रेट करें Eco-Friendly Diwali, जानें ग्रीन क्रैकर्स से जुड़ी कुछ जरुरी बातें

दिवाली का त्योहार जैसे-जैसे नजदीक आ रहा है वैसे-वैसे पटाखों से होने वाले प्रदूषण पर भी चर्चा तेज होने लगी है। पटाखों से निकलने वाली हानिकारक गैसों से वायु प्रदूषण का स्तर ऊपर जाता है और इसे देखते हुए दिल्ली सहित कुछ राज्यों में दिवाली के समय पटाखे चलाने पर बैन लगाया गया है। दिल्ली में बढ़ते प्रदूषण और कोरोना के मामलों में तेजी से हो रहे इजाफे को देखते हुए पटाखों पर बैन लगा दिया गया है। पारम्परिक पटाखों पर बैन के बाद अब ग्रीन पटाखों की बात आती है। हालांकि ग्रीन पटाखों के बारे में लोग ज्यादा नहीं जानते लेकिन पारम्परिक पटाखों की तुलना में ये कम हानिकारण माने जाते हैं।

ग्रीन पटाखे क्या होते हैं?

ग्रीन पटाखे दिखने, जलाने और आवाज़ में सामान्य पटाखों की तरह ही होते हैं, लेकिन इनसे प्रदूषण कम होता है। सामान्य पटाखों की तुलना में इन्हें जलाने पर 40 से 50% तक कम हानिकारण गैस पैदा होते हैं। ग्रीन पटाखे राष्ट्रीय अभियांत्रिकी अनुसन्धान संस्थान की एक खोज है। इस संस्थान ने ग्रीन पटाखों पर शोध शुरू किया था और इसके गुण और दोषों को देखा। ग्रीन पटाखों में इस्तेमाल होने वाले पदार्थ सामान्य पटाखों से अलग होते हैं। इनसे हानिकारक गैसें भी कम बनती है। ग्रीन पटाखों में बेरियम का इस्तेमाल नहीं होता है और यह एक ऐसा विषाक्त पदार्थ है जो मृत्यु का कारण भी बन सकता है।

ग्रीन पटाखे कौन से हैं?

ग्रीन पटाखों में सबसे सुरक्षित पटाखों के कुछ नाम आपको जरुर जानने चाहिए। इनमें सैफ वॉटर रिलिजर (SWAS), सैफ मिनिमल एल्युमिनियम (SAFAL), सैफ थर्माईट क्रैकर (STAR) आदि हैं। ये पटाखे पारम्परिक पटाखों की तरह ही जलते हैं और आवाज करते हैं। फर्क सिर्फ इतना ही है कि इनमें तुलनात्मक दृष्टि से विषैली गैसें कम निकलती हैं।

ग्रीन पटाखों का इस्तेमाल कैसे करें?

इसके लिए कोई अलग से विधि नहीं होती। जिस तरह पारंपरिक पटाखों को चलाते हैं उन सावधानियों के साथ ही ग्रीन पटाखों को चलाया जा सकता है। खुद के शरीर और घर की अन्य चीजों को बचाते हुए ग्रीन पटाखों को चलाया जाना चाहिए। सावधानी हर उस चीज में बरतनी चाहिए जिसमें खतरा हो। प्रदूषण के लिए कम हानिकारक होने के अलावा यह पटाखे ज्यादा अलग नहीं हैं। ऐसे में सेफ्टी नियमों का पालन करते हुए ग्रीन पटाखे चलाने चाहिए।

ग्रीन पटाखों से जुड़े नियम

ग्रीन पटाखों में बेरियम नाइट्रेट का प्रयोग नहीं होता है। एल्युमिनियम की मात्रा भी काफी कम होती है। इसकी वजह से इन पटाखों को जलाने पर पीएम 2.5 और पीएम 10 की मात्रा में गिरावट की बात कही जा रही है। सुप्रीम कोर्ट ने 2018 में ग्रीन पटाखों को जलाने की हिमायत की थी। इसके बाद केंद्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्री डॉक्टर हर्षवर्धन ने पहल की। राष्ट्रीय पर्यावरण अभियांत्रिकी अनुसंधान संस्थान (NEERI) ने ग्रीन पटाखे तैयार किए। यह पारंपरिक पटाखों जैसे ही होते हैं। इनके जलने से कम प्रदूषण होता है।

सुप्रीम कोर्ट की हिदायत है कि कम प्रदूषण फैलाने वाले ग्रीन पटाखे ही लाइसेंस हासिल करने वाले व्यापारियों के माध्यम से बेचे जा सकते हैं। अन्य पटाखों और लड़ियों के उत्पादन, बिक्री और प्रयोग पर रोक रहेगी। ग्रीन पटाखे दिवाली को शाम 8 बजे से रात 10 बजे तक चलाने की अनुमति होगी। जिन पटाखों को बेचा जाए, उनके ऊपर ग्रीन क्रैकर का लोगो होना चाहिए और दुकानों से बेचे जाने वाले पटाखे अधिकृत कंपनियों के होने चाहिए।

कैसे-कैसे ग्रीन पटाखे

पानी पैदा करने वाले पटाखे

ये पटाखे जलने के बाद पानी के कण पैदा करेंगे, जिसमें सल्फ़र और नाइट्रोजन के कण घुल जाएंगे। नीरी ने इन्हें सेफ़ वाटर रिलीज़र का नाम दिया है। पानी प्रदूषण को कम करने का बेहतर तरीका माना जाता है। पिछले साल दिल्ली के कई इलाक़ों में प्रदूषण का स्तर बढ़ने पर पानी के छिड़काव की बात कही जा रही थी।

सल्फ़र और नाइट्रोजन कम पैदा करने वाले पटाखे

नीरी ने इन पटाखों को STAR क्रैकर का नाम दिया है, यानी सेफ़ थर्माइट क्रैकर। इनमें ऑक्सीडाइज़िंग एजेंट का उपयोग होता है जिससे जलने के बाद सल्फ़र और नाइट्रोजन कम मात्रा में पैदा होते हैं। इसके लिए ख़ास तरह के केमिकल का इस्तेमाल होता है।

कम एल्यूमीनियम का इस्तेमाल

इस पटाखे में सामान्य पटाखों की तुलना में 50 से 60% तक कम एल्यूमीनियम का इस्तेमाल होता है। इसे संस्थान ने सेफ़ मिनिमल एल्यूमीनियम यानी SAFAL का नाम दिया है।

अरोमा क्रैकर्स

इन पटाखों को जलाने से न सिर्फ़ हानिकारण गैस कम पैदा होगी बल्कि ये बेहतर खुशबू भी बिखेरेंगे।