सुप्रीम कोर्ट Supreme Court ने कहा है कि दाऊदी बोहरा dawoodi bohra मुस्लिम समुदाय की नाबालिग लड़कियों का खतना (फीमेल जेनिटल म्यूटिलेशन) female genital mutilation करके उन्हें हमेशा के लिए एक तरह का मानसिक और भावनात्मक घाव दे दिया जाता है। इसके साथ ही कोर्ट ने कहा है कि यह प्रथा महिलाओं के सम्मान और अधिकारों के खिलाफ है, जो उन्हें संविधान से मिला है।
सोमवार को चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की बेंच ने कहा, ‘यह जरूरी नहीं है कि लंबे समय से चली आ रही किसी धार्मिक प्रथा को संवैधानिक मान लिया जाए। आप इस तरह से प्रथा के नाम पर किसी भी शख्स को जख्म नहीं दे सकते। पतियों के लिए जवान लड़कियों पर ऐसी प्रथा नहीं थोपी जा सकती हैं। इस तरह का खतना छोटी बच्चियों के लिए जीवनभर का घाव हो जाता है।’
केंद्र सरकार ने भी अपनी आपत्ति दर्ज करवाते हुए कोर्ट में कहा कि धर्म की आड़ में लड़कियों का खतना जुर्म है और ये इस पर रोक लगनी चाहिए। इससे पहले केंद्र सरकार ने यह भी कहा था कि इसके लिए कानून के दंडविधान में इस पर सात साल तक कैद की सजा का प्रावधान भी है। केंद्र सरकार ने कहा कि जिस तरह से सती और देवदासी प्रथा को खत्म को खत्म किया गया है, उसी तरह इस प्रथा को भी खत्म किया जाए क्योंकि यह प्रथा संवैधानिक प्रावधानों के विपरीत है।
इससे पहले 30 जुलाई को खतने के विरोध में दाखिल याचिका पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि महिलाओं का खतना सिर्फ इसलिए नहीं किया जा सकता कि उन्हें शादी करनी है। कोर्ट ने यह भी कहा कि महिलाओं का जीवन केवल शादी और पति के लिए नहीं होता। आपको बता दें कि सुप्रीम कोर्ट से महिलाओं का खतना किए जाने की प्रथा पर भारत में पूरी तरह से बैन लगाने की मांग की गई है।