जाने कौन है करीम लाला?, जिससे मिलने इंदिरा गांधी मुंबई आया करती थीं!

शिवसेना के वरिष्ठ नेता और सांसद संजय राउत ने पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को लेकर ऐसा बयान दिया है जिससे कांग्रेस और शिवसेना के बीच तनाव बढ़ सकता है। बुधवार को एक इंटरव्यू के दौरान संजय राउत ने दावा किया कि इंदिरा गांधी अंडरवर्ल्ड डॉन करीम लाला से मिलने मुंबई आया करती थीं। राउत ने पुणे में एक पुरस्कार समारोह के दौरान एक मीडिया समूह को दिए साक्षात्कार में यह बात कही। राउत ने इस दौरान कहा कि पूर्व पीएम इंदिरा गांधी पायधुनी (दक्षिण मुंबई का इलाका) में करीम लाला से मिलने आती थीं। राउत ने यह भी दावा किया कि हाजी मस्तान के मंत्रालय में आने पर पूरा मंत्रालय उसे देखने के लिए नीचे आ जाता था। मुंबई में अंडरवर्ल्ड की बात करते हुए राउत ने कहा कि एक दौर था जब दाऊद इब्राहिम, छोटा शकील और शरद शेट्टी मुंबई के पुलिस कमिश्नर तय किया करते थे। लेकिन अब वो यहां सिर्फ चिल्लर हैं। आइए जानते हैं कौन था करीम लाला...

आज जब मुंबई और माफिया का नाम हमारे सामने आता है, तो सबसे पहले दाऊद इब्राहिम ही याद आता है। लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि जब माफिया ने मुंबई पर राज जमाना शुरू किया था। उस समय तो दाऊद बच्चों में गिना जाता था। आज का मुंबई 30 के दशक में बम्बई हुआ करता था, जैसे आज मुंबई जाने का सपना आखों में पलता है। वैसा ही उस दौर में भी हुआ करता था। अफगानिस्तान से एक युवक आया था बम्बई। जिसकी आखों में था बड़ा आदमी बनने का सपना। नाम था अब्दुल करीम शेर खान। कोई नहीं जानता था कि एक दिन उसके नाम का सिक्का शहर में चलेगा, हर खासोआम उसे सलाम करने उसके घर जाएगा। अब्दुल करीम शेर खान आगे चल कर करीम लाला बन बैठा था। तस्करी, सुपारी किलिंग, कब्जा ये सारे काम करीम के इशारे पर होते थे। इस समय तक बम्बई में काफी बड़ी संख्या में अफगानी बस्तियां बस चुकी थी। जहां करीम के चाहने वाले उसके लिए जान लेने और देने वाले रहते थे। लाला उनके लिए मसीहा था। अब्दुल करीम शेर खान उर्फ करीम लाला ने 21 साल की उम्र में हिंदुस्तान आने का फैसला किया था। वह पाकिस्तान के पेशावर शहर के रास्ते बम्बई पहुंचा था।

करीम लाला का जन्म 1911 में अफगानिस्तान के कुनार सूबे में हुआ था। उसे पश्तून समुदाय का आखिरी राजा भी कहा जाता है। उसका परिवार काफी संपन्न था। वह कारोबारी खानदान से ताल्लुक रखता था। ज्यादा कामयाबी हासिल करने की चाह उसे बम्बई खींच लाई थी।

हाजी मस्तान मिर्जा को भले ही मुंबई अंडरवर्ल्ड का पहला डॉन कहा जाता है, लेकिन अंडरवर्ल्ड के जानकार बताते हैं कि सबसे पहला माफिया डॉन करीम लाला था। जिसे खुद हाजी मस्तान भी असली डॉन कहा करता था। करीम लाला का आतंक मुंबई में सिर चढ़कर बोलता था। मुंबई में तस्करी समते कई गैर कानूनी धंधों में उसके नाम की तूती बोलती थी। बताया जाता है कि वह जरूरतमंदों और गरीबों की मदद भी करता था।

बम्बई डॉक पर करीम का राज चलता था। उस समय उनके बिना चाहे कोई भी जहाज न तो वहां से निकल सकता और न ही आ सकता था। करीम के फंटर पहले कंटेनर से अपने हीरे और जवाहरात निकालते उसके बाद ही वहां कोई और काम होता था। 40 के दशक में करीम लाला किंग बन चुका था। इसके बाद उसने बम्बई में कई शराबखाने और जुए के अड्डे खोले। इसके बाद लाला का रहन सहन बदल गया। पठानी सूट पहनने वाला लाला अब सफेद सफारी सूट पहनने लगा था। उसके हाथ में एक छड़ी रहती, जो कि असल में एक गुप्ती थी जिसने न जाने कितनों का खून बहाया होगा।

रोज घर पर लगता था जनता दरबार

करीम अफगानी समुदाय के लिए गॉडफादर बन गया था। वो रोज दरबार लगाता, जिसमें वो लोगों की बात सुनता और उन्हें वहीं सुलझा देता। इस बात ने उसे इतना लोकप्रिय बना दिया था कि हर समाज और संप्रदाय के लोग उसके पास मदद मांगने आते थे। उसके यहां अमीर और गरीब का कोई फर्क नहीं होता था। एक रोचक बात भी है, जो लाला को अलग इंसान के तौर पर खड़ा करती है। जब कोई उसके पास तीन तलाक या तलाक का मुद्दा लेकर आता तो। वो कहा करता था कि मैं मिलुंगा लेकिन अलग नहीं करुंगा। लाला समझाता था कि तलाक समस्या का हल नहीं होता। करीम के साथ ही बम्बई में हाजी मस्तान का भी उदय हुआ था, लेकिन मस्तान क्रूर नहीं था। उसके पास दिमाग था और वो बेवजह खून बहाना पसंद नहीं करता था। इन दोनों के साथ ही तमिल डॉन वरदाराजन मुदलियार उर्फ वरदा भाई भी बम्बई के कुछ हिस्से पर काबिज था। तीनों के बीच धंधे को लेकर कुछ कहासुनी हुई। लेकिन बाद में तीनों ने हाथ मिला लिया और बम्बई को आपस में बांट लिया। तीनों में समझौता था कि कोई भी एक-दूसरे के साथ कभी झगड़ा नहीं करेगा। कुछ समय बाद दाऊद ने हाजी मस्तान के साथ काम शुरू किया और उसने करीम लाला के इलाके में सेंध लगानी शुरू कर दी। लेकिन मौत के डर की वजह से वो कभी लाला के सामने नहीं आता था।

जब लाला को इस बात का पता चला तो उसने दाऊद को सरेआम पीटा। लेकिन मस्तान से दोस्ती के कारण उसे जान से नहीं मारा। इसके बाद भी दाऊद अपनी हरकतों से बाज नहीं आया और करीम के इलाकों में धंधा करता रहा। एक दिन करीम के आदमियों ने दाऊद और उसके भाई शब्बीर को घेर लिया। दाऊद बचकर भाग गया, जबकि शब्बीर इस गैंगवार में मारा गया। शब्बीर के कत्ल से दाऊद इब्राहिम तिलमिला उठा था। मुंबई की सड़कों पर गैंगवार शुरू हो गई थी। दाऊद गैंग और पठान गैंग के बीच खूनी जंग का आगाज हो चुका था। दाऊद अपने भाई की मौत का बदला लेना चाहता था और शब्बीर की मौत के ठीक पांच साल बाद 1986 में दाऊद इब्राहिम के गुर्गों ने करीम लाला के भाई रहीम खान को मौत के घाट उतार दिया था।

जब हेलन की कमाई लेकर भाग गया था दोस्त

करीम लाला को फिल्म उद्योग के करीब माना जाता था। अभिनेत्री हेलन एक बार मदद के लिए करीम लाला के पास आई थीं। हेलन का एक दोस्त पीएन अरोड़ा उसकी सारी कमाई लेकर फरार हो गया था। वो पैसे वापस देने से मना कर रहा था। हताश होकर हेलन सुपरस्टार दिलीप कुमार के माध्यम से करीम लाला के पास पहुंचीं। दिलीप कुमार ने उन्हें करीम लाला के लिए एक खत भी लिखकर दिया। करीम लाला ने इस मामले में मध्यस्थता की और हेलन का पैसा वापस मिल गया था।

2002 में मुंबई में हुई थी मौत

80 के दशक में लाला बीमार रहने लगा था।दाऊद मजबूत हो चुका था। 81 से 85 के बीच करीम और दाऊद के बीच दिनदहाड़े खूनी खेल शुरू हो गया। बम्बई जलने लगी थी। पुलिस परेशान थी लेकिन उसके हाथ कुछ नहीं लग रहा था। दाऊद अपने भाई की मौत का बदला लेने के लिए करीम के गैंग का चुन-चुन कर सफाया कर रहा था। 90 साल की उम्र में 19 फरवरी 2002 को मुंबई में करीम लाला की मौत हुई।