दुनिया में कोरोना वायरस से अब तक एक लाख 93 हजार 866 लोगों की मौत हो चुकी है। 27 लाख 68 हजार 076 संक्रमित हैं। 7 लाख 64 हजार 793 ठीक हो चुके हैं। अमेरिका में मरने वालों का आंकड़ा 12 दिन में दोगुना हो गया। 12 अप्रैल को अमेरिका में मरने वालों का आंकड़ा 25 हजार था। 24 अप्रैल को यह 50 हजार 952 हो गया। पूरी दुनिया इस वायरस की वैक्सीन बनाने में लगी हुई है। ऐसे में यूरोप से कुछ राहत की खबर सामने आ रही है। यहां कोरोना वायरस की वैक्सीन का इंसानों पर परीक्षण शुरू किया गया है। ये टीका ब्रिटेन के ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी की एक टीम ने तीन महीने में तैयार किया है। इस टीके के परिक्षण के लिए 800 से ज्यादा लोगों को चुना गया था जिनमें से दो वॉलंटियर्स को ये टीका लगाया गया है।
बीबीसी हिंदी की खबर के अनुसार इन 800 लोगों में से आधे को कोविड-19 (Covid-19) का टीका दिया जाएगा और आधे को ऐसा टीका जो मेनिंजाइटिस से बचाता है मगर कोरोना वायरस से नहीं। मगर वॉलंटियर्स को ये नहीं पता होगा कि उन्हें दोनों में से कौन सा टीका दिया गया है। ये जानकारी डॉक्टरों के पास होगी। वॉलंटियर्स पर आने वाले महीनों में नज़र रखी जाएगी। उनसे कह दिया गया है कि उन्हें टीका लेने के कुछ दिनों के भीतर बांह फूलने, सिरदर्द या बुख़ार जैसी शिकायतें हो सकती हैं। उन्हें ये भी कहा गया है कि सैद्धांतिक तौर पर इस वायरस से गंभीर रिऐक्शन भी हो सकता है, जैसा कि सार्स के टीके के शुरूआती दौर के कुछ परीक्षणों में हुआ था। मगर ऑक्सफ़ोर्ड की टीम का कहना है कि वैक्सीन से गंभीर बीमारी होने का खतरा ना के बराबर है और जानवरों पर हुए परीक्षणों के डेटा सकारात्मक रहे हैं। यदि ये वैक्सीन कामयाब हो गई तो वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि सितंबर तक 10 लाख टीके बनाए जा सकेंगे और उनके उत्पादन में तेजी लाई जा सकेगी।
टीका लेने वाले दोनों वॉलंटियर्स में से एक ने बीबीसी से कहा, 'मैं एक वैज्ञानिक हूँ, मैं चाहती थी कि मैं किसी भी तरह से विज्ञान की प्रगति में मदद करने की कोशिश कर सकूँ'।
जेनर इंस्टीच्यूट में वैक्सीनोलॉजी की प्रोफ़ेसर सारा गिल्बर्ट इस टीके के शोध में शामिल थीं। वो कहती हैं, 'निजी तौर पर मुझे इस वैक्सीन में बहुत भरोसा है। पर हमें इसका टेस्ट करना पड़ेगा और इंसानों के डेटा हासिल करने होंगे। हमें दिखाना होगा कि ये वाकई असर करता है, इसके बाद ही हम लोगों को ये टीका दे सकेंगे।'
ये टीका कैसे काम करता है?ये टीका चिम्पैंज़ी के शरीर से लिए गए एक साधारण वायरस से तैयार किया गया है जिससे सर्दी में ज़ुकाम जैसी शिकायतें होती हैं। इसे ऐडिनोवायरस कहते हैं जो इस वायरस का एक कमजोर पड़ चुका स्वरूप है। टीके में इस वायरस में ऐसे बदलाव किए गए हैं जिससे कि ये इंसानों में विकसित नहीं हो सकता।
ऑक्सफ़ोर्ट की इस टीम ने इससे पहले मर्स के लिए टीका तैयार किया था जो एक दूसरे किस्म का कोरोना वायरस है। उन्होंने इसे ठीक इसी तरह से तैयार किया था और क्लीनिकल ट्रायल में उसके उत्साहजनक नतीजे आए थे।
कैसे पता चलेगा कि ये कारगर है?इसे जानने का एकमात्र तरीका यही है कि आने वाले महीनों में जिन्हें ये टीका दिया गया, उनमें से कितने लोग संक्रमित होते हैं। लेकिन अगर ब्रिटेन में संक्रमण के मामलों में तेज़ी से गिरावट होती है तो इससे शोध में दिक्कत आ सकती है क्योंकि तब पर्याप्त डेटा नहीं मिल सकेगा।
ऑक्सफ़ोर्ड वैक्सीन ग्रुप के निदेशक प्रोफ़ेसर एंड्र्यू पोलार्ड कहते हैं, 'हम महामारी के अंत की ओर बढ़ रहे हैं। अगर इस बीच हमने पुष्टि नहीं की तो ये जानना मुश्किल होगा कि ये टीका काम करता है या नहीं पर हमें उम्मीद है कि अभी और मामले आते रहेंगे। परीक्षण में स्थानीय स्वास्थ्यकर्मियों को शामिल करने पर ज़्यादा ज़ोर है क्योंकि अन्य लोगों की तुलना में उनके संक्रमित होने का खतरा ज्यादा रहता है।
5,000 वॉलंटियर्स पर किया जाएगा टेस्टआने वाले महीनों में परीक्षण का और विस्तार किया जाएगा जिसमें लगभग 5,000 वॉलंटियर्स पर टेस्ट किया जाएगा। इसमें हर उम्र के लोगों को शामिल किया जाएगा। ऐसा माना जाता है कि बूढ़े लोगों की प्रतिरोधी क्षमता कम होती है जिससे शोधकर्ता ये पता लगाने का प्रयास करेंगे कि क्या ऐसे लोगों को दो बार टीका देना पड़ेगा।