भारत में अनुमान से ज्यादा स्पीड से बढ़ रहा कोरोना संक्रमण, 5 दिन पहले हुए 10 लाख केस, 3 करोड़ होने की आशंका

देश में कोरोना वायरस के मरीजों की गिनती लगातार बढ़ती जा रही है। पिछले 24 घंटों की बात करे तो 34 हजार 820 नए मरीज मिले इसके साथ ही कुल मरीजों की संख्या बढ़कर 10.50 लाख के करीब पहुंच गई है। देश में 5 लाख से 10 लाख केस पहुंचने में सिर्फ 20 दिन लगे। कोरोना के मामलों को लेकर विशेषज्ञों का अनुमान था कि देश में जुलाई के आखिरी सप्ताह में यह आंकड़ा 10 लाख को पार करेगा, हालांकि यह 5 दिन पहले ही पूरा हो गया है। ऐसे में विशेषज्ञों ने चिंता जताते हुए कहा कि कोरोना की रोकथाम के लिए सही कदम नहीं उठाए गए तो अगले साल जनवरी तक कोरोना मरीजों की संख्या 3 करोड़ को पार कर सकती है।

विभिन्न गणितीय मॉडल के आधार पर कोरोना पर नजर रखने वाले विशेषज्ञों ने जून के महीने में ही कोरोना के रोजाना बढ़ रहे मामलों को लेकर चेतावनी जारी कर दी थी। बता दें कि 1 जुलाई से लेकर 16 जुलाई के बीच में ही 5 लाख से अधिक कोरोना केस सामने आ चुके हैं। विशेषज्ञों के अनुमान के मुताबिक जुलाई खत्म होने तक यह आंकड़ा एक महीने में 7 से 8 लाख के करीब पहुंच सकता है।

केरल के डेटा विशेषज्ञ जेम्स विल्सन का कहना है कि देश में केवल कोरोना से ठीक होने वाले मरीजों पर ही डेटा जारी किया जा रहा है, ज​बकि हालात काफी खराब होते जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि कोरोना का ग्राफ जिस तेजी से बढ़ रहा है उसे देखने के बाद हमारी टीम ने 26 जून को ही जुलाई की स्थिति पर अपनी रिपोर्ट पेश की थी। केवल जुलाई के महीने में ही 8 लाख के करीब कोरेाना के मरीजों का बढ़ जाना काफी चिंता का विषय है।

जोधपुर आईआईटी के पूर्व प्रोफेसर रीजो एम जॉन ने कहा कि देश में जिस तेजी से कोरोना के मरीज बढ़ रहे हैं उसे देखने के बाद सरकार की ओर से किए जा रहे उपाय फिलहाल नाकाफी दिखाई दे रहे हैं।

दिल्ली एम्स के निदेशक डॉ रणदीप गुलेरिया के मुताबिक कोरोना के मामले जिस तेजी से आगे बढ़ रहे हैं उसे देखने के बाद भले ही इसे अभी पीक न कहा जाए लेकिन उसका संकेत जरूर माना जा सकता है। देश में कोरोना अपने पीक की ओर आगे बढ़ रहा है।

सफदरजंग अस्पताल के डॉ जुगल किशोर का कहना है हम भले ही अभी 10 लाख के आंकड़े को देखकर डरे हुए हों लेकिन अभी कोरोना का पीक आना बाकी है।

कोरोना के तेजी से बढ़ते मामलों को देखते हुए बंगलूरू स्थित भारतीय विज्ञान संस्थान (आईआईएससी) के शोधार्थियों ने भी गणितीय मॉडल पेश किया है। आईआईएमसी के शोधार्थियों के मुता​बिक जिस तेजी से कोरोना के मामले बढ़ रहे हैं उसके आधार पर अगले साल जनवरी तक भारत में मरीजों की संख्या करीब 3 करोड़ होने की आशंका व्यक्त की गई है। बताया जा रहा है कि सितंबर तक देश में मरीजों की संख्या 35 लाख के करीब हो सकती है।

सख्त लॉकडाउन के बावजूद देश में बढ़े मरीज

आपको बता दे, देश में कोरोना को फैलने से रोकने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब 24 मार्च को लॉकडाउन की घोषणा की थी, तब उनका फोकस 'जान है, तो जहान है' पर था। उसके बाद जब 14 अप्रैल को दूसरे लॉकडाउन की घोषणा करने आए, तो फोकस 'जान भी, जहान भी' पर चला गया। उसके बाद से ही देश में लॉकडाउन तो लगा, लेकिन ढील भी मिलती रही। इसका नतीजा ये हुआ कि देश में कोरोना के मामलों की रफ्तार भी तेजी से बढ़ने लगी। पहले केस से लेकर 5 लाख केस तक पहुंचने में 148 दिन लगे। लेकिन, 5 लाख से 10 लाख तक मामले होने में सिर्फ 20 दिन ही लगे।

लॉकडाउन में सरकार की तरफ से हुई गलती

- लॉकडाउन किया लेकिन उसका सही इस्तेमाल नहीं हुआ, टेस्टिंग पर फोकस नहीं

कोरोना वायरस को फैलने से रोकने के लिए देशभर में लॉकडाउन तो लगा दिया, लेकिन उसका सही इस्तेमाल नहीं हुआ। दूसरे देशों में लॉकडाउन का इस्तेमाल टेस्टिंग करने के लिए किया गया। चीन ने तो वुहान में बाद में 10 दिन का लॉकडाउन इसीलिए लगाया, ताकि वहां की सारी आबादी की टेस्टिंग कर सके। इसके उलट भारत में ऐसा नहीं हुआ। टेस्ट सिर्फ उन्हीं का हुआ, जो खुद से टेस्ट कराने गए या संदिग्ध थे।

- पता नहीं था प्रवासी मजदूर सड़कों पर निकल जाएंगे

मोदी सरकार ने 25 मार्च से देश में टोटल लॉकडाउन लगा दिया। उससे तीन दिन पहले से ही ट्रेनें भी बंद कर दी थीं। लॉकडाउन में सब कुछ बंद हो गया, तो मजदूरों की कमाई भी बंद हो गई। जब देश में 21 दिन के लिए लॉकडाउन लगा, तो उसके बाद देश के कई हिस्सों से प्रवासी मजदूर अपने राज्य लौटने लगे। इसका नतीजा ये हुआ कि लॉकडाउन लगने के 5 दिन बाद ही 29-30 मार्च को दिल्ली के आनंद विहार बस टर्मिनल में 15 हजार मजदूर इकट्ठे हो गए। बाद में इस भीड़ को प्राइवेट बसों और डीटीसी की बसों से उनके गांव तक पहुंचाया गया।

- श्रमिक स्पेशल ट्रेनें निकालीं, कोरोना के मामले बढ़े

एक सरकारी रिपोर्ट के मुताबिक, 1918 में जब देश में स्पैनिश फ्लू फैला था, तब भी इस फ्लू को फैलाने में रेलवे की अहम भूमिका रही थी। 1 मई से मोदी सरकार ने प्रवासी मजदूरों को उनके घर पहुंचाने के लिए श्रमिक स्पेशल ट्रेनें शुरू कीं। इसका नतीजा ये हुआ कि कई राज्यों में कोरोना के मामले अचानक बढ़ गए। इसका एक उदाहरण गोवा भी है। गोवा 19 अप्रैल को कोविड फ्री घोषित हो गया था। लेकिन, जब ट्रेनें चलनी शुरू हुईं, तो गोवा में मामले बढ़ गए। वहां के स्वास्थ्य मंत्री विश्वजीत राणे ने इस बात को खुद माना कि श्रमिक स्पेशल ट्रेनों से आने वाले मजदूरों की वजह से राज्य में कोरोना के मामले एक बार फिर बढ़ गए।

- केस बढ़ रहे थे, शराब की दुकानें खोल दीं

लॉकडाउन-3 लागू हुआ तो उसके साथ पहले से ज्यादा रियायतें भी मिलने लगीं। सरकार ने लॉकडाउन-3 में शराब की दुकानें खोलने की इजाजत दे दी। नतीजा ये हुआ कि देशभर में शराब की दुकानों पर भीड़ जमा होने लगी। बढ़ती भीड़ को देखते हुए दिल्ली सरकार ने तो शराब पर 70% कोरोना सेस तक लगा दिया। जबकि, महाराष्ट्र में शराब की होम डिलीवरी शुरू कर दी।

भारत में 63.2% रिकवरी रेट

दुनियाभर के 22 देशों में एक लाख से ज्यादा मामले हैं। इनमें से 12 देशों में रिकवरी रेट भारत से बेहतर है। जिन 4 देशों में मामले 5 लाख से ज्यादा है, उनमें सबसे बेहतर रिकवरी रेट रूस का है। ब्राजील में भी रिकवरी रेट भारत से बेहतर हो गया है। भारत में अब तक 63.2% मरीज ठीक हुए हैं। दुनियाभर के 215 देशों तक कोरोना फैल चुका है। इनमें से 11 देशों में फिलहाल एक भी एक्टिव केस नहीं है। 204 देश ऐसे हैं, जहां कम से कम एक या एक से ज्यादा मरीज हैं। चीन जहां कोरोना की शुरुआत हुई, वहां रिकवरी रेट करीब 94% है। जिन 204 देशों में एक्टिव केस हैं, उनमें से 43 देश ऐसे हैं, जहां रिकवरी रेट 90% या उससे ज्यादा है।

भारत में बीते एक हफ्ते 2.10 लाख से ज्यादा केस आए, लेकिन इस दौरान 1.40 लाख से ज्यादा लोग ठीक हो गए। ऐसे में संक्रमितों की संख्या (एक्टिव केस) में सिर्फ 65 हजार 881 की बढ़ोतरी हो पाई।