शरिया को मानती है कांग्रेस; सुप्रीम कोर्ट के गुजारा भत्ता फैसले पर भड़की भाजपा, फिर उठा शहबानो केस का जिक्र

नई दिल्ली। सर्वोच्च न्यायालय के इस निर्णय पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कि मुस्लिम महिलाएं तलाक के बाद अपने पति से भरण-पोषण मांगने की हकदार हैं, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने बुधवार को कांग्रेस पर हमला करते हुए विवादास्पद शाहबानो मामले का हवाला दिया और कहा कि राजीव गांधी सरकार ने संविधान के ऊपर शरिया को प्राथमिकता दी थी।

1985 में सुप्रीम कोर्ट ने तलाक के बाद शाहबानो की पति से गुजारा भत्ता मांगने की याचिका मंजूर कर ली थी। हालांकि, तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने इस फैसले को पलटने के लिए संसद में कानून पारित कर दिया।

भाजपा प्रवक्ता और राज्यसभा सांसद सुधांशु त्रिवेदी ने आज कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के लिए सबसे बड़े खतरों में से एक को खत्म कर दिया है।

उन्होंने कहा, जब भी कांग्रेस सत्ता में रही है, संविधान खतरे में रहा है। यह (राजीव गांधी सरकार का) एक ऐसा फैसला था, जिसने संविधान पर शरिया को प्राथमिकता दी। कांग्रेस सरकार के दौरान संविधान की जो प्रतिष्ठा कुचली गई थी, उसे इस आदेश ने बहाल किया है। इस फैसले ने संविधान के लिए सबसे बड़े खतरों में से एक को खत्म कर दिया है।

उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले को धर्म के नजरिए से नहीं देखा जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि यह समान अधिकारों का मुद्दा है। उन्होंने दावा किया कि कोई भी धर्मनिरपेक्ष राज्य नहीं है जहां हलाला, तीन तलाक और हज सब्सिडी जैसे शरिया प्रावधानों की अनुमति हो।

त्रिवेदी ने कहा कि कांग्रेस सरकार ने भारत को आंशिक इस्लामिक राज्य में बदल दिया है।

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को फैसला सुनाया कि एक मुस्लिम महिला सीआरपीसी की धारा 125 के तहत अपने पति से भरण-पोषण की मांग कर सकती है और कहा कि धर्म-तटस्थ प्रावधान सभी विवाहित महिलाओं पर लागू होता है, चाहे उनका धर्म कुछ भी हो।

न्यायमूर्ति बी वी नागरत्ना और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने कहा कि मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 1986 धर्मनिरपेक्ष कानून पर हावी नहीं होगा। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि भरण-पोषण कोई दान नहीं है, बल्कि यह सभी विवाहित महिलाओं का अधिकार है।