कांग्रेस के संकटमोचक नहीं रहे, सोनिया के सबसे करीबी सलाहकार थे अहमद पटेल

कांग्रेस नेता अहमद पटेल का 71 साल की उम्र में बुधवार सुबह 3 बजकर 30 मिनट पर निधन हो गया। पटेल 1 अक्टूबर को कोरोना संक्रमित हुए थे। इसके बाद उनका इलाज चल रहा था। अहमद पटेल को राजनीतिक महकमे में कांग्रेस के 'चाणक्य' के रूप में माना जाता था। वे सोनिया गांधी के सबसे करीबी सलाहकारों में शामिल थे। पटेल की गिनती कांग्रेस के सबसे ताकतवर नेताओं में होती थी। कांग्रेस के तालुका पंचायत अध्यक्ष के पद से राजनीतिक सफर शुरू करने वाले अहमद पटेल आठ बार सांसद रहे। 1977 में इमरजेंसी के गुस्से को मात देकर 26 साल की उम्र में लोकसभा पहुंचे और फिर सियासत में मुड़कर नहीं देखा। यही नहीं, गांधी परिवार की तीन पीढ़ियों के साथ काम किया और उनके सबसे करीबी बनकर रहे, लेकिन वे कभी सरकार का हिस्सा नहीं रहे। गांधी परिवार से पटेल की नजदीकियां इंदिरा के जमाने से थीं। 1977 में जब वे सिर्फ 28 साल के थे, तो इंदिरा गांधी ने उन्हें भरूच से चुनाव लड़वाया।

राजीव गांधी के वक्त अहमद पटेल का कद बढ़ा था

कांग्रेस में अहमद पटेल का कद 1980 और 1984 के वक्त और बढ़ गया जब इंदिरा गांधी के बाद जिम्मेदारी संभालने के लिए राजीव गांधी को तैयार किया जा रहा था। तब अहमद पटेल राजीव गांधी के करीब आए। इंदिरा गांधी की हत्या के बाद राजीव गांधी 1984 में लोकसभा की 400 सीटों के बहुमत के साथ सत्ता में आए थे और पटेल कांग्रेस सांसद होने के अलावा पार्टी के संयुक्त सचिव बनाए गए। उन्हें कुछ समय के लिए संसदीय सचिव और फिर कांग्रेस का महासचिव भी बनाया गया। राजीव ने 1984 चुनाव के बाद अहमद को मंत्रीपद देना चाहा, लेकिन अहमद ने फिर पार्टी को चुना। राजीव के रहते उन्होंने यूथ कांग्रेस का नेशनल नेटवर्क तैयार किया। इसके अलावा 1977 से 1982 तक पटेल गुजरात की यूथ कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष रहे। सितंबर 1983 से दिसंबर 1984 तक वो कांग्रेस कमेटी के जॉइंट सेक्रेटरी रहे। 1985 में जनवरी से सितंबर तक वो प्रधानमंत्री राजीव गांधी के संसदीय सचिव रहे। उनके अलावा अरुण सिंह और ऑस्कर फर्नांडिस भी राजीव के संसदीय सचिव थे।

नरसिम्हा राव के वक्त मुश्किलों से जूझना पड़ा था

1991 में जब नरसिम्हा राव प्रधानमंत्री बने तो अहमद पटेल को किनारे कर दिया गया। कांग्रेस वर्किंग कमेटी की सदस्यता के अलावा अहमद पटेल को सभी पदों से हटा दिया गया। उस वक्त गांधी परिवार का प्रभाव भी कम हुआ था, इसलिए परिवार के वफादारों को भी मुश्किलों से जूझना पड़ा। नरसिम्हा राव ने मंत्री पद की पेशकश की तो पटेल ने ठुकरा दी। वे गुजरात से लोकसभा चुनाव भी हार गए और उन्हें सरकारी घर खाली करने के लिए लगातार नोटिस मिलने लगे, लेकिन किसी से मदद नहीं ली।

बेहद स्ट्रैटजिक तरीके से काम करते थे

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक देर रात तक काम करना और किसी भी कांग्रेस कार्यकर्ता को किसी भी वक्त फोन कर कोई भी काम सौंप देना पटेल की आदतों में शामिल था। कहा जाता है कि वे एक मोबाइल फोन हमेशा फ्री रखते थे जिस पर सिर्फ 10 जनपथ से ही फोन आते थे। वे बहुत ही स्ट्रैटजिक तरीके से काम करते थे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चुनौती का सामना करने के लिए भी बयानबाजी की बजाय स्ट्रैटजी से काम करने की बात कहते थे।

अहमद पटेल देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस की अध्यक्ष सोनिया गांधी के राजनीतिक सलाहकार रहे। गांधी परिवार के साथ-साथ उन्हें कांग्रेस का 'संकट मोचक' नेता माना जाता था। कहा जाता है कि अहमद पटेल की वजह से सोनिया गांधी भारतीय राजनीति में खुद को स्थापित कर पाई हैं। अपने प्रधानमंत्री पति राजीव गांधी की हत्या के बाद इतनी बड़ी पार्टी संभाल पाईं। गांधी परिवार के सबसे करीब और कांग्रेस के बेहद ताकतवर असर वाले अहमद लो-प्रोफाइल रहते थे और खुद को साइलेंट मोड पर रखते थे। गांधी परिवार के अलावा किसी को नहीं पता कि उनके दिमाग में क्या रहता था। 2004 से 2014 तक केंद्र की सत्ता में कांग्रेस के रहते हुए अहमद पटेल की राजनीतिक ताकत सभी ने देखी है।

अहमद पटेल के हाथ में था पार्टी का रिमोट

कांग्रेस संगठन ही नहीं बल्कि सूबे से लेकर केंद्र तक में बनने वाली सरकार में कांग्रेस नेताओं का भविष्य भी अहमट पटेल तय करते थे। यूपीए सरकार में पार्टी की बैठकों में सोनिया जब भी ये कहतीं कि वो सोचकर बताएंगी, तो मान लिया जाता कि वो अहमद पटेल से सलाह लेकर फैसला करेंगी। यहां तक कि यूपीए 1 और 2 के ढेर सारे फैसले पटेल की सहमति के बाद लिए गए। यही नहीं कांग्रेस की कमान भले ही गांधी परिवार के हाथों में रही हो, लेकिन अहमद पटेल के बिना पत्ता भी पार्टी में नहीं हिलता था। यानी रिमोट उन्हीं के पास रहता था।