बेंगलुरु। कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने रविवार, 29 सितंबर को कैबिनेट के समक्ष पेश किए गए सात महीने पहले प्रस्तुत जाति जनगणना रिपोर्ट पर कार्रवाई का वादा किया। मैसूर में पिछड़े वर्गों के छात्रावासों के पूर्व छात्र संघ द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए सिद्धारमैया ने कहा कि पिछड़े और वंचित समुदायों की पहचान के लिए जाति जनगणना आवश्यक थी।
सिद्धारमैया ने कहा, हम जिस व्यवस्था से आते हैं, उसे बदला जाना चाहिए। हम उस बदलाव को लाने की कोशिश कर रहे हैं। हमारी सरकार ने समाज के हाशिए पर पड़े वर्गों को पहचानने और उनके उत्थान के लिए सामाजिक जनगणना की। मैंने (2018 में) सत्ता खो दी और इसे लागू नहीं किया गया।
मुख्यमंत्री ने कहा, हाल ही में हमें रिपोर्ट मिली है। मैं इसे कैबिनेट के समक्ष रखूंगा और इसे लागू करवाऊंगा। उन्होंने कहा कि जाति जनगणना लंबे समय से कांग्रेस पार्टी का सिद्धांत रहा है।
सिद्धारमैया ने कहा, 1930 के बाद से राष्ट्रीय जनसंख्या जनगणना के तहत जाति आधारित डेटा एकत्र नहीं किया गया है। अब, कई राज्यों में जाति जनगणना कराने पर चर्चा जोर पकड़ रही है।
बहुप्रतीक्षित सामाजिक-आर्थिक और शिक्षा सर्वेक्षण रिपोर्ट, जिसे जाति जनगणना रिपोर्ट के नाम से जाना जाता है, 29 फरवरी को कर्नाटक राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष के. जयप्रकाश हेगड़े द्वारा सिद्धारमैया को सौंपी गई।
रिपोर्ट पर समाज के कुछ वर्गों और यहां तक कि सत्तारूढ़ कांग्रेस के भीतर भी आपत्तियां आई हैं। शिक्षा के महत्व पर चर्चा करते हुए मुख्यमंत्री ने रविवार को कहा कि सच्ची शिक्षा को वैज्ञानिक सोच को बढ़ावा देना चाहिए और जिम्मेदार व्यक्तियों को बढ़ावा देना चाहिए।
सिद्धारमैया ने सरकारी कार्यक्रमों से लाभान्वित हुए लोगों, विशेषकर छात्रावासों के पूर्व छात्रों से समाज को कुछ देने का आह्वान किया।
उन्होंने कहा, आपमें से कई लोगों ने अपने क्षेत्रों में सफलता हासिल की है। अब जरूरतमंद लोगों की मदद करने का समय आ गया है। समाज के कमजोर वर्गों की मदद करना ही समाज के प्रति हमारे ऋण को चुकाने का सही तरीका है।
उन्होंने स्वार्थ के खतरों के प्रति चेतावनी देते हुए कहा कि जो लोग केवल अपने परिवार के बारे में सोचते हैं, वे आत्म-केंद्रित हो जाते हैं और इस मानसिकता के कारण वृद्धाश्रमों की संख्या में वृद्धि हुई है। हमें अपने समाज में सकारात्मक बदलाव लाने के लिए मिलकर काम करना चाहिए।
सिद्धारमैया ने 1977 में छात्र छात्रावासों की शुरुआत का ज़िक्र किया, इस कदम ने पिछड़े वर्ग के छात्रों की शिक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने कहा, आज, इन छात्रावासों में 1,87,000 छात्र रहते हैं। इस तरह के प्रयासों से यह सुनिश्चित हुआ है कि वंचित पृष्ठभूमि के बच्चों को शिक्षा तक पहुँच मिले।