जानिए...चांद पर क्या और कैसे काम करेगा 'चंद्रयान-2'

इसरो (ISRO) की चंद्रमा पर भारत के दूसरे मिशन चंद्रयान-2 (Chandrayaan-2) के प्रक्षेपण के 20 घंटों की उलटी गिनती रविवार सुबह शुरू हो गई है। पहली बार भारत चंद्रमा की सतह पर लैंडर और रोवर उतारेगा और इसके 6 सितंबर को चंद्रमा पर पहुंचने की उम्मीद है। बता दे, 15 जुलाई को तड़के 2 बजकर 51 मिनट पर आँध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से अंतरिक्ष में छोड़ा जाएगा। इसरो ने चंद्रमा की सतह पर उतरने वाले लैंडर मॉड्यूल का नाम अंतरिक्ष वैज्ञानिक विक्रम साराभाई के नाम पर विक्रम रखा है। यह दो मिनट प्रति सेकेंड की गति से चंद्रमा की जमीन पर उतरेगा। प्रज्ञान नाम का रोवर लैंडर से अलग होकर 50 मीटर की दूरी तक चंद्रमा की सतह पर घूमकर तस्वीरें लेगा। चलिए आज हम आपको बताते है चंद्रयान-2 चांद पर क्या और कैसे काम करेगा...

ऑर्बिटरः चांद से 100 किमी ऊपर इसरो का मोबाइल कमांड सेंटर

चंद्रयान-2 (Chandrayaan-2) का ऑर्बिटर चांद से 100 किमी ऊपर चक्कर लगाते हुए लैंडर और रोवर से प्राप्त जानकारी को इसरो सेंटर पर भेजेगा। इसमें 8 पेलोड हैं। साथ ही इसरो से भेजे गए कमांड को लैंडर और रोवर तक पहुंचाएगा। इसे हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड ने बनाकर 2015 में ही इसरो को सौंप दिया था।

विक्रम लैंडरः रूस के मना करने पर इसरो ने बनाया स्वदेशी लैंडर

लैंडर का नाम इसरो के संस्थापक और भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के जनक विक्रम साराभाई के नाम पर रखा गया है। इसमें 4 पेलोड हैं। यह 15 दिनों तक वैज्ञानिक प्रयोग करेगा। इसकी शुरुआती डिजाइन इसरो के स्पेस एप्लीकेशन सेंटर अहमदाबाद ने बनाया था। बाद में इसे बेंगलुरु के यूआरएससी ने विकसित किया।

प्रज्ञान रोवरः इस रोबोट के कंधे पर पूरा मिशन, 15 मिनट में मिलेगा डाटा

27 किलो के इस रोबोट पर ही पूरे मिशन की जिम्मेदारी है। इसमें 2 पेलोड हैं। चांद की सतह पर यह करीब 400 मीटर की दूरी तय करेगा। इस दौरान यह विभिन्न वैज्ञानिक प्रयोग करेगा। फिर चांद से प्राप्त जानकारी को विक्रम लैंडर पर भेजेगा। लैंडर वहां से ऑर्बिटर को डाटा भेजेगा। फिर ऑर्बिटर उसे इसरो सेंटर पर भेजेगा। इस पूरी प्रक्रिया में करीब 15 मिनट लगेंगे। यानी प्रज्ञान से भेजी गई जानकारी धरती तक आने में 15 मिनट लगेंगे।

सबसे ताकतवर रॉकेट जीएसएलवी मार्क-3 से होगी लॉन्चिंग

चंद्रयान-2 (Chandrayaan-2) इसरो (ISRO) के सबसे ताकतवर रॉकेट जीएसएलवी MK-3 से पृथ्वी की कक्षा के बाहर छोड़ा जाएगा। फिर उसे चांद की कक्षा में पहुंचाया जाएगा। करीब 55 दिन बाद चंद्रयान-2 (Chandrayaan-2) चांद की कक्षा में पहुंचेगा। फिर लैंडर चांद की सतह पर उतरेगा। इसके बाद रोवर उसमें से निकलकर विभिन्न प्रयोग करेगा। चांद की सतह, वातावरण और मिट्टी की जांच करेगा। वहीं, ऑर्बिटर चंद्रमा के चारों तरफ चक्कर लगाते हुए लैंडर और रोवर पर नजर रखेगा। साथ ही, रोवर से मिली जानकारी को इसरो सेंटर भेजेगा।