जम्मू-कश्मीर : अनुच्छेद 370 खत्म, सच हुई पं. नेहरू की भविष्यवाणी

मोदी सरकार ने जम्मू-कश्मीर को विशेषाधिकार प्रदान करने वाले अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को खत्म करने का फैसला किया है। गृह मंत्री अमित शाह ने जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को खत्म करने संकल्प राज्यसभा में पेश किया है। इसके अलावा राज्यसभा में अमित शाह ने राज्य पुनर्गठन विधेयक को पेश किया है। जिससे जम्मू-कश्मीर अब एक केंद्र शासित प्रदेश बन गया है। वहीं इससे लद्दाख को अलग करते हुए अलग राज्य बनाने की बात कही गई है। कैबिनेट के ताजा फैसले के बाद जम्मू-कश्मीर, दो राज्यों जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में बंट जाएगा। इसके साथ ही भारत में कुल केंद्र शासित राज्यों की संख्या अब 7 से बढ़कर 9 हो गया है, जबकि पूर्ण राज्यों की संख्या घटकर 28 हो जाएगी। अमित शाह की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि लद्दाख के लोगों की लंबे समय से मांग रही है कि लद्दाख को केंद्र शासित राज्य का दर्ज दिया जाए, ताकि यहां रहने वाले लोग अपने लक्ष्यों को हासिल कर सकें। अब लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा दिया गया है, लेकिन यहां विधानसभा नहीं होगी। जम्मू-कश्मीर के मसले पर अपनी नीतियों को लेकर आलोचनाओं का शिकार होने वाले प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू भी जानते थे कि एक न एक दिन अनुच्छेद 370 को हटना ही है। उनकी इस भविष्यवाणी की झलक जम्मू-कश्मीर के तत्कालीन नेता पं. प्रेमनाथ बजाज को लिखे पत्र में दिखती है।

पं. नेहरू ने कही थी ये बात

21 अगस्त, 1962 को अनुच्छेद 370 के संबंध में पं. प्रेमनाथ बजाज के पत्र का उत्तर देते हुए जवाहर लाल नेहरू ने लिखा था, 'वास्तविकता यह है कि संविधान में इस धारा के रहते हुए भी, जो कि जम्मू-कश्मीर को एक विशेष दर्जा देती है, बहुत कुछ किया जा चुका है और जो कुछ थोड़ी बहुत बाधा है, वह भी धीरे-धीरे समाप्त हो जाएगी। सवाल भावुकता का अधिक है, बजाए कुछ और होने के। कभी-कभी भावना महत्वपूर्ण होती है लेकिन हमें दोनों पक्षों को तौलना चाहिए और मैं सोचता हूं कि वर्तमान में हमें इस संबंध में और कोई परिवर्तन नहीं करना चाहिए।'

जवाहर लाल नेहरू और पं. प्रेमनाथ बजाज के बीच हुए इस पत्र व्यवहार का जिक्र जम्मू-कश्मीर के पूर्व राज्यपाल जगमोहन ने अपनी किताब- 'दहकते अंगारे' में किया है। जगमोहन अपनी किताब में लिखते हैं कि इस पत्र से पता चलता है कि नेहरू ने स्वयं धारा 370 में भावी परिवर्तन से इनकार नहीं किया था। 'बहुत कुछ किया जा चुका है'- माना जा रहा है कि इस कथन के पीछे नेहरू का आशय था कि धारा 370 में जरूरत पड़ने पर सरकार संशोधन करती रही है। ऐसे में समय आने पर धीरे-धीरे संशोधनों के जरिए अन्य प्रावधान भी खत्म हो जाएंगे।

उन्होंने किताब में लिखा है- कश्मीर समस्या का वास्तविक हल कमजोरियों और नकारात्मक कारणों को दूर करके ही संभव है। नई दृष्टि और नया भारत का उत्साह लिए नए भारत की आवश्यकता है। कश्मीर में पाखंडी नीति अपनी सीमाएं तोड़ चुकी हैं। आज भारत के नेताओं ने सुलगती सच्चाईयों का सामना करने के बजाए भ्रमों की छाया में रहने की प्रवृत्ति अपना रखी है।

जगमोहन ने अपनी किताब दहकते अंगारे में लिखा है कि कश्मीरी अलगाववाद और फूट की सबसे मजबूत जड़ें भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 में हैं। जो जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देता है। निहित स्वार्थों द्वारा इस धारा का दुरुपयोग होता है। जगमोहन ने 15 अगस्त 1986 को अपनी डायरी में लिखा- धारा 370 इस स्वर्ग रूपी राज्य में केवल शोषकों को समृद्ध करने का ही साधन है। यह गरीबों को लूटता है। यह मृगतृष्णा की तरह उन्हें भ्रम में डालता है। यह सत्ताधारी कुलीनों की जेबें भरता है। नए सुल्तानों के अहम को बढ़ाता है।

बता दे, जगमोहन दो बार जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल रहे। पहली बार वह अप्रैल 1984 से जून 1989 तक और दूसरी बार जनवरी 1990 से मई 1990 के बीच राज्यपाल रहे। इस दौरान वह जम्मू-कश्मीर में हुई कई निर्णायक घटनाओं के गवाह भी रहे। जगमोहन की नजर में जम्मू-कश्मीर में अलगाववाद और फूट की सबसे मजबूत जड़ें भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 में रहीं।

कैसे लागू हुआ था अनुच्छेद 370

देश को आजादी मिलने के बाद रियासतों के एकीकरण की प्रक्रिया शुरू हुई। 25 जुलाई 1952 का मुख्यमंत्रियों को लिखे पंडित जवाहर लाल नेहरू के पत्र से अनुच्छेद 370 के लागू होने की जानकारी मिलती है। इस पत्र में नेहरू ने लिखा है - जब नवंबर 1949 में हम भारत के संविधान को अंतिम रूप दे रहे थे। तब सरदार पटेल ने इस मामले को देखा। तब उन्होंने जम्मू और कश्मीर को हमारे संविधान में एक विशेष किंतु संक्रमणकालीन दर्जा दिया। इस दर्जे को संविधान में धारा 370 के रूप में दर्ज किया गया। इसके अलावा 26 जनवरी 1950 को राष्ट्रपति के आदेश के माध्यम से भी इसे दर्ज किया गया। इस अनुच्छेद के माध्यम से और इस आदेश के माध्यम से हमारे संविधान के कुछ ही हिस्से कश्मीर पर लागू होते हैं।

मोदी सरकार के फैसले से घाटी में क्या बदला

मोदी सरकार के फैसले के बाद जम्मू-कश्मीर को दूसरे राज्यों से मिले ज्यादा अधिकार खत्म ही नहीं बल्कि कम भी हो गए हैं। जम्मू-कश्मीर की हालत अब दिल्ली जैसे राज्य की तरह हो गई है। अब जम्मू-कश्मीर में चुनाव होंगे और सरकारें भी होंगी, लेकिन उपराज्यपाल का दखल काफी बढ़ जाएगा। दिल्ली की तरह जिस प्रकार सरकार को सारी मंजूरी उपराज्यपाल से लेनी होती है, उसी प्रकार अब जम्मू-कश्मीर में भी होगा। मोदी सरकार के इस फैसले के बाद अब भारतीय संविधान पूरी तरह से लागू होगा। जम्मू-कश्मीर का अब अपना अलग से कोई संविधान नहीं होगा। जम्मू-कश्मीर ने 17 नवंबर 1956 को अपना संविधान पारित किया था, वह पूरी तरह से खत्म हो गई है। कश्मीर को अभी तक जो विशेषाधिकार मिले थे, उसके तहत इमरजेंसी नहीं लगाई जा सकती है। लेकिन अब सरकार के फैसले के बाद वहां इमरजेंसी लगाई जा सकती है। बता दें कि अनुच्छेद 370 के तहत जम्मू-कश्मीर विधानसभा का कार्यकाल 6 साल का था। लेकिन देश की तरह यहां भी पांच साल विधानसभा का कार्यकाल होगा। इसके अलावा जम्मू-कश्मीर में वोट का अधिकार सिर्फ वहां के स्थायी नागरिकों को था। किसी दूसरे राज्य के लोग यहां वोट नहीं दे सकते और न चुनाव में उम्मीदवार बन सकते थे। अब सरकार के फैसले के बाद भारत के नागरिक वहां के वोटर और प्रत्याशी बन सकते हैं।