अनुच्छेद 370: सुनवाई के बाद SC ने सुरक्षित रखा फैसला

नई दिल्ली। अनुच्छेद 370 मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई पूरी कर ली है। चीफ जस्टिस की अध्यक्षता वाली 5 जजों की संविधान पीठ ने 16 दिन तक दोनों पक्षों की जिरह सुनी और आज यानी 5 सितंबर 2023 को देश के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजय किशन कौल, संजीव खन्ना, बीआर गवई और सूर्यकांत की पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने 16 दिनों तक दलीलें सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया। इस दौरान दोनों पक्षों ने संवैधानिक पहलुओं से लेकर ऐतिहासिक घटनाक्रम पर चर्चा की। मामला उस वक्त खासा गर्म हुआ, जब कोर्ट ने मुख्य याचिकाकर्ता मोहम्मद अकबर लोन से इस बात का हलफनामा मांग लिया कि वह जम्मू-कश्मीर को भारत का अभिन्न हिस्सा मानते हैं।

2 याचिकाकर्ताओं ने वापस ली याचिका

मामले के पहले 2 याचिकाकर्ताओं शाह फैसल और शेहला रशीद ने सुनवाई शुरू होने से पहले ही अपनी याचिकाएं वापस ले लीं। इसलिए कोर्ट ने दोनों का नाम याचिकाकर्ताओं की लिस्ट से हटाने का निर्देश दिया। इसके बाद नेशनल कांफ्रेंस सांसद मोहम्मद अकबर लोन का नाम याचिकाकर्ताओं की लिस्ट में पहले नंबर पर आ गया।

शीर्ष अदालत ने कहा कि यदि याचिकाकर्ता या उत्तरदाता की ओर से पेश कोई वकील लिखित दलील दाखिल करना चाहता है, तो वह अगले तीन दिनों में ऐसा कर सकता है। हालांकि, कोर्ट ने कहा कि लिखित दलील दो पेज से ज्यादा की नहीं होनी चाहिए।

पिछले 16 दिनों की सुनवाई के दौरान शीर्ष अदालत ने केंद्र और हस्तक्षेपकर्ताओं की ओर से अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी, सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता, वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे, राकेश द्विवेदी, वी गिरी और अन्य को अनुच्छेद 370 निरस्त करने के सरकार के फैसले का बचाव करते हुए सुना।

याचिकाकर्ता पक्ष की दलीलें

लोन की तरफ से वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल पेश हुए. उनके अलावा राजीव धवन, गोपाल सुब्रमण्यम, जफर शाह जैसे कई वरिष्ठ वकीलों ने अनुच्छेद 370 को बेअसर करने का फैसला खारिज करने की मांग की। इन वकीलों ने कहा कि जम्मू-कश्मीर का भारत में विलय विशेष परिस्थितियों में हुआ था। इसलिए, उसे अलग दर्जा मिला। राज्य की एक अलग संविधान सभा थी, जिसका काम 1957 में पूरा हो गया। भारत के संविधान से अनुच्छेद 370 हटाने का फैसला जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा की सहमति से ही हो सकता था। इसलिए, संसद का फैसला कानूनन गलत है।

जज नहीं हुए आश्वस्त

संविधान पीठ के जज याचिकाकर्ता पक्ष की इस दलील से सहमत नज़र नहीं आए। उन्होंने कहा कि 1957 में जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा खत्म हो गई, लेकिन इसका मतलब यह नहीं हो सकता कि सिर्फ इस वजह से अनुच्छेद 370 को स्थायी मान लिया जाए। चीफ जस्टिस ने अहम टिप्पणी करते हुए कहा, यह सही है कि राज्य के कुछ विषयों पर संसद कानून नहीं बना सकता था, लेकिन इससे भारत के साथ जम्मू-कश्मीर के संबंध पर कोई असर नहीं पड़ता। भारत में विलय का मतलब ही यही था कि जम्मू-कश्मीर ने अपनी संप्रभुता भारत को सौंप दी।

केंद्र ने क्या कहा?


केंद्र ने कोर्ट को बताया कि अनुच्छेद 370 को बेअसर करने का फैसला राष्ट्रहित के साथ-साथ जम्मू-कश्मीर के लोगों की भलाई के लिए भी लिया गया था। अटॉर्नी जनरल ने राष्ट्र की अखंडता के पहलू पर ज़ोर दिया। दूसरी तरफ सॉलिसीटर जनरल ने बताया कि पुरानी व्यवस्था में जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 35-A भी लागू था। इसके चलते राज्य में बसे लोगों की एक बड़ी संख्या को दूसरे नागरिकों जैसे अधिकार नहीं उपलब्ध थे। वह संपत्ति नहीं खरीद सकते थे, मतदान भी नहीं कर सकते थे। अब वह लोग सबके बराबर हो गए हैं।

जम्मू-कश्मीर को दोबारा मिलेगा राज्य का दर्जा

सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने जम्मू-कश्मीर में लोकतांत्रिक प्रक्रिया की बहाली पर जानकारी मांगी। इस पर केंद्र सरकार ने बताया कि केंद्र शासित क्षेत्र जम्मू-कश्मीर में जल्द ही विधानसभा चुनाव करवाए जाएंगे, वहां पर वोटर लिस्ट को अपडेट करने का काम अंतिम चरण में है। केंद्र के वकील ने यह भी कहा कि जम्मू-कश्मीर को राज्य का दर्जा दिया जाएगा, लेकिन ऐसा कब होगा, यह अभी नहीं बताया जा सकता। हालांकि, सरकार ने साफ किया कि लद्दाख भविष्य में भी केंद्र शासित क्षेत्र बना रहेगा।