अमृतसर के जोड़ा फाटक के पास हुए भीषण हादसे में 62 लोगों की मौत होने के बाद रेलवे और प्रशासन एक दूसरे के ऊपर आरोप थोप रहा है। रेलवे बोर्ड के चेयरमैन अश्विनी लोहानी ने कहा कि ड्राइवर ने स्पीड कम की थी। अगर इमरजेंसी ब्रेक लगाता तो बड़ा हादसा हो सकता था। हादसे की जगह अंधेरा था और ट्रैक थोड़ा घुमावदार था।जिसकी वजह से ड्राइवर को ट्रैक पर बैठे लोग नज़र नहीं आए। उन्होंने कहा कि गेटमैन की ज़िम्मेदारी सिर्फ गेट की होती है। हादसा इंटरमीडिएट सेक्शन पर हुआ, जो कि एक गेट से 400 मीटर दूर है, वहीं दूसरे गेट से 1 किलोमीटर दूर है।
उन्होंने साफ कहा कि हमारी कोई गलती नहीं है। उन्होंने यह भी साफ किया है कि इस मामले में रेलवे की तरफ से जांच के आदेश नहीं दिए जाएंगे। वहीं रेल राज्य मंत्री मनोज सिन्हा ने भी रेलवे की गलती होने से इनकार किया है। उन्होंने कहा कि हादसे से कुछ दूर पहले ट्रैक पर कर्व है, इस वजह से संभव है कि उसे भीड़ दिखी ही नहीं हो। उन्होंने सवाल किया कि ड्राइवर गाड़ी चलाएगा या इधर-उधर देखेगा? वहीं फिरोजपुर डीआरएम ने भी कहा है कि इस हादसे में ट्रेन के ड्राइवर की कोई गलती नहीं थी। उन्होंने कहा, "ट्रेन 90 किलोमीटर प्रति घंटे की स्पीड से दौड़ रही थी।ड्राइवर ने ब्रेक लगाई। हादसे के वक़्त स्पीड 68 किलोमीटर प्रति घंटा हो गई। ट्रेन को रोकने के लिए 600 - 700 मीटर पहले ब्रेक लगाना पड़ता है। ड्राइवर ने हॉर्न भी बजाया था, शोर की वजह से लोगों ने सुना नहीं।" इतना ही नहीं रेलवे ने हादसे के दौरान ट्रैक पर खड़े लोगों को घुसपैठिया (ट्रैसपासर) तक करार दे दिया है।
रेलवे का मानना है कि संबंधित लोग घटना स्थल से 340 मीटर दूर बने लेवल क्रॉसिंग (फाटक) नंबर सी-27 से रेल पटरियों पर अनाधिकृत रूप से घुसे थे और पटरियों पर खडे़ होकर रावण दहन देख रहे थे। वहां से गुजरती ट्रेन लगातार हार्न बजा रही थी, लेकिन रावण के पुतलों में लगे पटाखों की गूंज में लोगों ने ट्रेन के हार्न को नहीं सुना। इस वजह से यह हादसा हुआ।
रेलवे ने तर्क देते हुए यह भी कहा कि हावड़ा एक्सप्रेस से पहले एक डीएमयू ट्रेन भी वहां से गुजरी थी, इसलिए डीएमयू ट्रेन के लिए लिए बाकायदा फाटक नंबर सी-27 को बंद कर ट्रैफिक रोक दिया गया था। लिहाजा इस फाटक से किसी की भी एंट्री रेलवे की ओर से अवैध थी। रेलवे ने मृतकों के परिजनों को सांत्वना भी दी है।
रेलवे का दावा है कि रावण फूंके जाना वाला मैदान और ट्रैक के बीच 2.5 मीटर ऊंची दीवार थी। फाटक बंद था और डीएमयू ट्रेन गुजरने की पूरी सूचना था। सिग्नल ग्रीन था, उसके बावजूद लोगों ने लापरवाही की। रेल प्रशासन का कहना है कि जहां रावण दहन हुआ, वह जमीन भी रेलवे की नहीं थी। लिहाजा आयोजकों को रेलवे से अनुमति लेने की जरूरत नहीं बनती, न ही रेलवे अनुमति देता। रेलवे को ट्रैक के पास संबंधित जगह दशहरे आयोजन की सूचना भी नहीं थी।
रेलवे को सूचना देता प्रशासन, तो थम जाती ‘ट्रेन’ की रफ्तारइस हादसे से खुद को दूर रखते हुए रेलवे ने अमृतसर प्रशासन पर भी निशाना साधा है। रेलवे अथारिटी ने साफ किया है कि ट्रैक के पास दशहरा आयोजन करवाया जा रहा है। इसकी भी कोई सूचना स्थानीय प्रशासन ने रेलवे अथारिटी को नहीं दी।
एक रेलवे अफसर ने बताया कि ऐसे आयोजन की सूचना होती तो उस समय ट्रेन की स्पीड संबंधित एरिया में न केवल कम करने के औपचारिक आदेश जारी किए जाते, बल्कि उस क्षेत्र में मैनुअल रेडलाइट टार्च समेत कुछ ट्रैकमैन की भी नियुक्तियां कर दी जाती। ताकि ऐसे हादसे की संभावनाएं ही न रहती।
लेकिन ऐसी सूचना न होने और सिगनल क्लीयर मिलने की वजह से ट्रेनें अपनी निर्धारित स्पीड से गुजरी और ऐसे में एकदम ट्रेन की रफ्तार कम करना बड़ा मुश्किल होता है। उधर, मौके अभी तक रेल राज्य मंत्री मनोज सिन्हा के साथ-साथ रेलवे बोर्ड के चेयरमैन अश्वनी लोहानी, उत्तर रेलवे के महाप्रबंधक विशवेश चौबे ने भी दौरा किया।