इंडस जल संधि पर रोक के बाद भारत की रणबीर नहर विस्तार योजना, चिनाब के पानी के बेहतर उपयोग की तैयारी

पाकिस्तान को चेतावनी के तहत इंडस जल संधि को फिलहाल निलंबित करने के बाद भारत ने पश्चिमी नदियों — विशेषकर चिनाब — के जल संसाधनों का अधिकतम उपयोग करने की दिशा में कदम तेज कर दिए हैं। इस कड़ी में रणबीर नहर को 120 किलोमीटर तक बढ़ाने की योजना तैयार की जा रही है।

अब तक चिनाब नदी का उपयोग भारत मुख्यतः सिंचाई के लिए करता रहा है, लेकिन अधिकारियों का मानना है कि अब इस जलधारा से ऊर्जा उत्पादन की अपार संभावनाएं हैं, जो देश की बढ़ती ऊर्जा ज़रूरतों को पूरा करने में मदद कर सकती हैं।

सरकारी सूत्रों के अनुसार, मौजूदा हाइड्रोपावर उत्पादन क्षमता (करीब 3,000 मेगावाट) को बढ़ाने के लिए विस्तृत योजना तैयार की जा रही है। इसके तहत उन नदियों पर नए प्रोजेक्ट्स का प्रस्ताव है, जिनका उपयोग संधि के तहत अब तक पाकिस्तान को सीमित रूप से करने की अनुमति थी। इसके लिए एक व्यवहार्यता अध्ययन (Feasibility Study) भी जल्द शुरू किया जाएगा।

एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया, “रणबीर नहर की लंबाई को 120 किलोमीटर तक बढ़ाने का प्रस्ताव सबसे अहम है। यह एक दीर्घकालिक अवसंरचना प्रोजेक्ट है, इसलिए सभी संबंधित विभागों को तेज़ी से काम शुरू करने का निर्देश दिया गया है।”

इसी के साथ, जल प्रबंधन को बेहतर बनाने के लिए कठुआ, रावी और परगवाल क्षेत्रों में नहरों की गाद सफाई (desilting) का कार्य भी शुरू हो चुका है।

संधि का ऐतिहासिक संदर्भ

1960 में विश्व बैंक की मध्यस्थता में हुई इंडस जल संधि ने भारत और पाकिस्तान के बीच सिंधु नदी प्रणाली के जल वितरण को तय किया था। इसमें पूर्वी नदियाँ — रावी, ब्यास और सतलुज — भारत को सौंपी गई थीं, जबकि पश्चिमी नदियाँ — सिंधु, झेलम और चिनाब — पाकिस्तान के उपयोग के लिए आरक्षित थीं, हालांकि भारत को सीमित उपयोग की अनुमति थी।

पहलगाम हमले के बाद सख्त रुख

22 अप्रैल को पाहलगाम में हुए आतंकी हमले में 26 लोगों की निर्मम हत्या के बाद — जिनमें अधिकांश पर्यटक थे — भारत ने संधि को अस्थायी रूप से निलंबित करने की घोषणा की थी। भारत ने स्पष्ट किया कि जब तक पाकिस्तान सीमा पार आतंकवाद को लेकर “विश्वसनीय और अपरिवर्तनीय” कदम नहीं उठाता, तब तक संधि पर पुनर्विचार नहीं होगा।

विशेषज्ञों का मानना है कि यह निर्णय भारत को जल संसाधनों के रणनीतिक उपयोग का एक नया मार्ग देगा, जिससे न सिर्फ कृषि और ऊर्जा क्षेत्र को लाभ मिलेगा, बल्कि पाकिस्तान पर कूटनीतिक दबाव भी बना रहेगा।