TRAI का कड़ा रुख: टीवी चैनलों पर प्रति घंटे 12 मिनट से ज्यादा विज्ञापन नहीं, नियमों के पालन के सख्त निर्देश

भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (TRAI) ने टेलीविजन प्रसारकों को स्पष्ट रूप से निर्देश दिया है कि वे प्रति घंटे अधिकतम 12 मिनट की विज्ञापन सीमा का कड़ाई से पालन करें। भले ही यह मामला फिलहाल न्यायिक प्रक्रिया के दायरे में हो, लेकिन नियामक ने साफ कर दिया है कि जब तक अदालत से कोई अंतिम फैसला नहीं आता, तब तक यह नियम पूरी तरह प्रभावी रहेगा।

दरअसल, 18 नवंबर 2025 को जारी किए गए कारण बताओ नोटिस के बाद हुई हालिया समीक्षा बैठक में ट्राई ने अपने पुराने रुख को दोहराया। नियामक संस्था का कहना है कि केवल अदालत में मामला लंबित होने के आधार पर नियमों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। जब तक किसी अदालत द्वारा स्पष्ट रूप से रोक नहीं लगाई जाती, तब तक इन प्रावधानों की वैधता बनी रहेगी।

TRAI के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार, मौजूदा समय में यह नियम पूरी तरह लागू है और सभी टेलीविजन प्रसारकों के लिए इसका पालन अनिवार्य है। हालांकि, दिल्ली उच्च न्यायालय ने फिलहाल दंडात्मक कार्रवाई पर अस्थायी रोक लगाई है, लेकिन नियम के अमल पर कोई स्पष्ट स्थगन आदेश जारी नहीं किया गया है। ऐसे में ट्राई इसे लागू मानते हुए आगे बढ़ रहा है।

नियामक संस्था ने संकेत दिया है कि वह प्रसारकों की ओर से मिली प्रतिक्रियाओं और स्पष्टीकरणों का आकलन कर रही है। इन जवाबों की समीक्षा के बाद ही यह तय किया जाएगा कि आगे किस तरह की कार्रवाई की जाएगी।

प्रति घंटे 12 मिनट की विज्ञापन सीमा का क्या मतलब है?

विज्ञापन की यह सीमा कोई नया प्रावधान नहीं है। इसकी जड़ें TRAI द्वारा वर्ष 2012 में जारी किए गए विज्ञापन कैप विनियमों और 2013 के सेवा गुणवत्ता (क्वालिटी ऑफ सर्विस) नियमों में मौजूद हैं। इन नियमों के तहत यह स्पष्ट किया गया है कि कोई भी टीवी चैनल एक घंटे के कार्यक्रम में 12 मिनट से अधिक विज्ञापन प्रसारित नहीं कर सकता।

इसके अलावा, केबल टेलीविजन नेटवर्क नियम, 1994 में भी इसी तरह का प्रावधान शामिल है। इसके अनुसार, प्रति घंटे अधिकतम 10 मिनट वाणिज्यिक विज्ञापन और 2 मिनट तक चैनल के प्रोमो या स्व-प्रचार की अनुमति दी गई है।

प्रसारकों की बढ़ती चिंता

इस फैसले ने टेलीविजन उद्योग की चिंताओं को और गहरा कर दिया है, जो पहले से ही आर्थिक दबाव का सामना कर रहा है। टीएएम एडएक्स के आंकड़ों के मुताबिक, 2025 के पहले नौ महीनों में टीवी विज्ञापन वॉल्यूम में साल-दर-साल करीब 10% की गिरावट दर्ज की गई है। उद्योग विशेषज्ञों का कहना है कि जहां एक ओर परिचालन लागत लगातार बढ़ रही है, वहीं दूसरी ओर सब्सक्रिप्शन और विज्ञापन से होने वाली आय में लगातार कमी आ रही है।

एक वरिष्ठ प्रसारण अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि मौजूदा हालात बेहद चुनौतीपूर्ण हैं। लागत में इजाफा हो रहा है, जबकि आमदनी दोनों ही स्रोतों से दबाव में है। ऐसे समय में अतिरिक्त नियामक पाबंदियां उद्योग के लिए भारी साबित हो सकती हैं। डिजिटल प्लेटफॉर्म्स से मिल रही तीखी प्रतिस्पर्धा और घटता हुआ मुद्रीकरण इस संकट को और गंभीर बना रहा है।

प्रसारकों का यह भी तर्क है कि यह नियम वर्तमान बाजार परिस्थितियों के अनुरूप नहीं है। उनका कहना है कि जहां टीवी चैनलों पर विज्ञापनों की सख्त सीमा तय की गई है, वहीं डिजिटल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर ऐसी कोई पाबंदी नहीं है। इसी असमानता को लेकर उद्योग जगत में नाराजगी और असमंजस की स्थिति बनी हुई है।