मालेगांव 2008 ब्लास्ट केस में NIA की स्पेशल कोर्ट ने गुरुवार (31 जुलाई) को एक अहम फैसला सुनाया, जिसमें सभी सातों आरोपियों को सबूतों की कमी के चलते दोषमुक्त कर दिया गया। इन आरोपियों में भाजपा सांसद प्रज्ञा सिंह ठाकुर और लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित भी शामिल थे। इस फैसले ने AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी की तीखी प्रतिक्रिया को जन्म दिया, जिन्होंने इस निर्णय पर सवालों की बौछार कर दी।
न्याय या मज़ाक? ओवैसी ने जताया आक्रोशओवैसी ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म 'एक्स' पर अपनी नाराज़गी व्यक्त करते हुए लिखा, “क्या मोदी सरकार और देवेंद्र फडणवीस की सरकार इस फैसले के खिलाफ उच्च अदालत में अपील करेंगी, जैसे उन्होंने 2006 के मुंबई लोकल ट्रेन ब्लास्ट केस में 12 बरी हुए आरोपियों के खिलाफ किया था? क्या महाराष्ट्र की धर्मनिरपेक्ष पार्टियां इस मुद्दे पर कोई ठोस प्रतिक्रिया देंगी? और सबसे अहम सवाल – उन छह मासूम लोगों की हत्या का दोष किसके सिर जाएगा?”
2016 की घटनाओं का भी दिलाया गया यादओवैसी ने 2016 में विशेष लोक अभियोजक रहीं रोहिणी सालियन के उस बयान की ओर भी ध्यान दिलाया, जिसमें उन्होंने आरोप लगाया था कि NIA ने उनसे कहा था कि वे आरोपियों के प्रति नरमी दिखाएं। ओवैसी ने लिखा, “साल 2017 में NIA ने साध्वी प्रज्ञा को निर्दोष साबित करने की कोशिश की थी, और वही प्रज्ञा 2019 में भाजपा की सांसद बनीं।”
जांच एजेंसियों की भूमिका पर भी उठे सवालओवैसी ने इस मामले में जांच एजेंसियों – NIA और ATS – की निष्पक्षता पर गहरी चिंता जताई। उन्होंने कहा, “जो सरकार आतंकवाद पर जीरो टॉलरेंस का दावा करती है, उसी ने एक आतंकी केस की आरोपी को संसद तक पहुंचाया। क्या लापरवाही बरतने वाले जांच अधिकारियों से कोई जवाबतलबी होगी?”
'सभी जवाब पहले से तय हैं' – ओवैसीओवैसी का मानना है कि इस केस ने न केवल हमारी जांच प्रणाली की कमजोरियों को उजागर किया है, बल्कि यह भी दर्शाया है कि क्या धार्मिक आधार पर हुए हमलों के पीड़ितों को कभी न्याय मिलेगा? उन्होंने कहा, “मालेगांव ब्लास्ट के पीड़ित आज भी उसी सवाल का जवाब मांग रहे हैं – आख़िर उनका दोष क्या था और उन्हें कब इंसाफ मिलेगा?”