बिहार विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की करारी हार के बाद पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने गंभीर समीक्षा शुरू कर दी है। मल्लिकार्जुन खड़गे, राहुल गांधी और के.सी. वेणुगोपाल ने लगभग 70 उम्मीदवारों और सांसदों के साथ कई दौर की बैठकें कीं, जिनमें हार के पीछे के कारणों पर खुलकर चर्चा हुई। चुनाव आयोग के आंकड़ों के मुताबिक, 2025 बिहार विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने केवल 6 सीटें जीतीं और 6.09% वोट शेयर प्राप्त किया।
स्थानीय मुद्दों की अनदेखी: कई वरिष्ठ नेताओं ने आरोप लगाया कि पार्टी ने SIR (Special Intensive Revision) और 'वोट चोरी' जैसे तकनीकी मुद्दों पर अधिक ध्यान दिया, जबकि महंगाई, पलायन और भ्रष्टाचार जैसे स्थानीय और लोगों को सीधे प्रभावित करने वाले मुद्दों की उपेक्षा की गई।
EVM और चुनाव प्रक्रिया पर सवाल: के.सी. वेणुगोपाल ने बैठक के बाद बयान में कहा कि बिहार का जनादेश वास्तविक नहीं था, बल्कि बड़े पैमाने पर प्रबंधित और मनगढ़ंत परिणाम सामने आए। उन्होंने SIR और EVM के दुरुपयोग की ओर भी इशारा किया।
गठबंधन और ध्रुवीकरण: पार्टी के कुछ नेताओं ने RJD के साथ गठबंधन पर सवाल उठाया। उनका मानना है कि सहयोगी दल कुछ वोट जरूर लाते हैं, लेकिन अन्य समुदायों में ध्रुवीकरण करते हैं। हालांकि राहुल गांधी ने इस मांग को खारिज करते हुए कहा कि जहां कांग्रेस और RJD के बीच दोस्ताना मुकाबला हुआ, वहां पार्टी की हार के अन्य कारण हैं।
AIMIM की भूमिका: सीमांचल और अन्य क्षेत्रों में AIMIM को अल्पसंख्यक वोटों के विभाजन के लिए जिम्मेदार ठहराया गया। साथ ही, सहयोगी दलों के बीच समन्वय की कमी भी हार के कारणों में शामिल मानी गई।
महिला लाभार्थियों पर असर: स्थानीय नेताओं ने आरोप लगाया कि सरकार ने चुनाव के दौरान सीधे महिलाओं को 10,000 रुपये वितरित किए, जिससे महिला मतदाताओं का रुख प्रभावित हुआ।
बूथ हेरफेर: बूथों पर हेरफेर के आरोप लगाए गए, जिसमें जीविका दीदियों की उपस्थिति और उनके मतदाताओं को एक विशेष गठबंधन के पक्ष में प्रभावित करने की घटनाएँ शामिल हैं। पार्टी ने भाजपा द्वारा SIR, EVM, वोट खरीदी और प्रशासनिक साधनों का दुरुपयोग करने का भी उल्लेख किया।
जवाबदेही की मांग: कई नेताओं ने राहुल गांधी को 2019 लोकसभा चुनाव की हार की जिम्मेदारी लेने और अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने की याद दिलाई। इसके साथ ही राज्य में भी नेताओं की जवाबदेही तय करने की मांग उठी। यह AICC प्रभारी कृष्णा अल्लवरु पर परोक्ष कटाक्ष के रूप में देखा गया।
जाति जनगणना और उम्मीदवारों का प्रदर्शन: पार्टी के कुछ सदस्यों ने जाति जनगणना के महत्व पर सवाल उठाए। उन्होंने तर्क दिया कि उच्च जातियों के उम्मीदवारों की जीत उनकी जनसंख्या हिस्सेदारी से अधिक रही, जबकि कुछ बड़ी OBC समुदायों के उम्मीदवारों की जीत उनकी संख्या के अनुसार रही। यह टिप्पणी पार्टी की ‘जनसंख्या हिस्सेदारी’ की नीति और प्रतिनिधित्व पर सवाल खड़ा करती है।