स्कूल जाना बच्चों को बहुत पसंद होता हैं क्योंकि उन्हें वहां उनके दोस्तों के साथ खेलने का मौका मिलता हैं। हांलाकि कई बार जब नहीं जाने का मन होता हैं तो बच्चे बहाने भी बनाने लग जाते हैं। यह कभी-कभार हो तो ठीक हैं, लेकिन आपका बच्चा रोज स्कूल न जाने के बहाने करे तो? ऐसे में आपको खुद से सवाल करने की जरूरत हैं कि कहीं उनके साथ स्कूल में कुछ गलत तो नहीं हो रहा हैं। अधिकतर बच्चे स्कूल की परेशानी के बारे में बताना पसंद नहीं करते हैं। साथ ही उन्हें डांट का डर होता है कि आप उनकी बात समझेंगे नहीं। ऐसे में जरूरी हैं कि बच्चों के बर्ताव में आए बदलाव को जाना जाएं और उनकी परेशानी को समझते हुए उसे दूर करने की कोशिश की जाएं। तो आइये हम बताते हैं आपको कि आखिर आप कैसे यह पता कर सकते हैं कि बच्चा स्कूल में स्ट्रगल कर रहा है।
स्कूल के बारे में बात न करनाअगर आपका बच्चा स्कूल में परेशान है तो वो स्कूल के बारे में बात करना पसंद नहीं करेगा। इस बात को तब नोटिस किया जा सकता है जब आपका बच्चा बहुत बातचीत करता हो और अचानक उसने बात करना बंद कर दिया हो। ऐसी स्थिति में आपको बच्चे और उसकी स्कूल की बातें जानने में समस्या हो सकती है।
स्कूल की शिकायत करनाअगर आपका बच्चा पहले स्कूल के बारे में केवल सकारात्मक बातें करता था और इन दिनों स्कूल की केवल शिकायत ही कर रहा है तो यह संभव है कि वह किसी परेशानियों से जूझ रहा है। हो सकता है कि यह परेशानी पढ़ाई आदि से हो या किसी के साथ खराब हुए रिश्ते के कारण या दोनों वजहों से।
शारीरिक गतिविधियों में बदलावअगर इन दिनों आपका बच्चा अच्छी नींद नहीं ले पा रहा हो, खाने में रुचि घट गई हो, खेलने नहीं जाता तो यह एक परेशानियों से भरा लक्षण हो सकता है। अगर वह अकेले में उदास रहता है और कहीं खोया खोया रहता है तो यह भी संकेत है कि स्कूल में वह किसी परेशानी से जूझ रहा है। अगर बच्चा हमेशा की तरह जल्दी जल्दी होमवर्क नहीं कर पा रहा है और घंटों तक किताब कॉपी लेकर बैठा रहता है तो यह बताता है कि वह अकेडमिक स्ट्रेस और एंग्जायटी से जूझ रहा है। इसके अलावा बच्चे का हमेशा डरा-डरा सा रहना या खुद पर से उसका आत्मविश्वास खत्म हो जाना भी चिंता का विषय है। बच्चे का मन जब पढ़ाई में मन न लगे और याद की हुई चीजें भूलने लगे। अगर आपके बच्चे में भी ये संकेत दिखाई दे, तो हो सकता है कि वह किसी परेशानी से गुजर रहा हो।
टीचर का नेगेटिव फीडबैकअक्सर पेरेंट्स टीचर का नेगेटिव फीडबैक नज़रंदाज़ कर देते हैं या बच्चे को डांटे लगते हैं। अगर टीचर आपके बच्चे के बारे में कुछ बता रही है तो उसे ध्यान से समझें। साथ ही बच्चे से उस बारे में बात करें और उसे समझने की कोशिश करें।
स्कूल में बुरा बर्ताव करनाअक्सर स्कूली छात्रों खासतौर पर कक्षा 8 से 10 के छात्र छात्रों में देखा गया है कि वे स्ट्रेस की वजह से मिसबिहेव करने लगते हैं या अनुशासन तोड़ने का काम करते हैं। दरअसल, अगर बच्चा क्लास अटेंड नहीं कर रहा तो यह भी उसके मन में चल रही परेशानियों का कारण हो सकता है। ऐसे में आप खुद को शांत रखें और उसे समझने का प्रयास करें। बच्चे के साथ दोस्ताना रिश्ता बनाएं और उसे अपनी परेशानियों को शेयर करने के लिए मोटिवेट करें।
असहज स्थिति से कैसे उभारे बच्चों को
खुलकर करें बच्चों से बात बच्चों से सभी विषयों पर खुलकर बात करें। स्कूल में होने वाली गतिविधियों के बारे में उनसे पूछें। उनके दोस्त और शिक्षिकों के बारे में भी उनकी राय जानने की कोशिश करें। बच्चों को उसके शरीर के सभी अंगों के बारे में खुलकर बताएं। बच्चों को ‘गुड टच’ और ‘बैड टच’ के बारे में जानकारी दें। उन्हें बताएं कि शरीर के कुछ प्राइवेट पार्टस हैं, जिन्हें कोई और नहीं छू सकता। टीवी देखते समय किसी प्रकार के अंतरंग दृश्य या फिर यौन शोषण के दृश्य आने पर हम अक्सर टीवी बंद कर देते हैं या बच्चों को इधर-उधर भेज देते हैं। ऐसा करने की बजाए उन्हें वह दिखाएं और उनके पूछे गए सवालों का सही जवाब दें। इससे उन्हें ‘गुड टच’ और ‘बैड टच’ का सही ज्ञान होता है।
स्कूल नियमित तौर पर जाएंआपकी जिम्मेदारी बच्चों को स्कूल भेजने के बाद खत्म नहीं हो जाती, बल्कि उसके बाद और भी अधिक बढ़ जाती है। आपको अपने बच्चे के स्कूल में हर हफ्ते या महीने में दो बार जरूर जाना चाहिए। स्कूल में जाकर सिर्फ शिक्षकों से ही न मिलें, बल्कि अपने बच्चे के दोस्तों और उसके साथ पढ़ने वाले अन्य बच्चों से भी मिलें और आपके बच्चे के साथ उनके व्यवहार को भी समझें। साथ ही स्कूल के माहौल और वहां की गतिविधियों पर भी गौर करें। देखें कहीं आपका बच्चा किसी के सामने डरा-डरा सा तो नहीं रहता। अगर ऐसा है, तो अपने बच्चे से खुलकर बात करें।
बच्चों में जागरूकता लाएं हम अक्सर अपने बच्चों को यह शिक्षा देते हैं कि बड़ों का आदर और सम्मान करें। स्कूल में अपने सीनियर्स से सीखें और शिक्षकों की हर बात मानें। इस वजह से बच्चे बुरी परिस्थिति में दूसरों को न कहने में कतराते हैं, विशेष रूप से अपने से बड़ों और शिक्षकों को न कहने में वह अच्छा महसूस नहीं करते। इसलिए उनको इन चीजों के बारे में जागरूक करने का काम आपका है। उन्हें बताएं कि हां या न कहने के लिए स्थिति बहुत मायने रखती है। बच्चों को बताएं कि असहज परिस्थितियों में बड़ों या बूढ़ों को न कहना सही है। साथ ही ऐसी परिस्थितियों के लिए आप उन्हें कोई शब्द भी दे सकती हैं, जिससे वे उस परिस्थिति के आने पर आपको संकेत दे सकें।